दिसंबर प्रतियोगिता की चौदहवीं रचना राजेश पंकज की है। हिंद-युग्म पर यह उनकी दूसरी कविता है। इससे पहले इनकी एक कविता जुलाई माह प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रकाशित हो चुकी है।
कविता: भूख
भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।
मोह, लिप्सा व क्षुधा,
काम, प्रेम, आसक्ति के
कितने ही अवतरण लेकर...।
भूख ही पलती रही
घृणा, ईर्ष्या, द्वेष और
लोभ के आवरण लेकर....।
देवासुर संग्राम क्या था?
राम का बनवास क्या था?
सीता-हरण, लंका विजय के
गर्भ में संत्रास क्या था?
यह चिरंतन सत्य है
प्रगति और खोज का आधार है...।
भूतली पर, भूगर्भ और आकाश में,
ऊर्जा के स्रोत और प्रकाश में,
झलकता बस भूख का संसार है...।
भूख न होती तो आदि पुरूष
अग्नि, चक्र को, क्या खोज पाता?
भूख के कारण ही कान्हा,
नाचता, मुरली बजाता...।
भूख के कारण ही भक्ति,
भूख के कारण ही भय है,
भूख ही देती है शक्ति,
भूख ही देती विजय है।
भूख बिन सब ज्ञान कैसा?
तपस्या और ध्यान कैसा?
धर्म कैसा, कर्म कैसा,
भूख बिन विज्ञान कैसा?
भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
बिना भूख विश्व कैसे चलेगा?
सत्य है,भूख से ही तो जगत का सब व्यवहार है...
सार्थक चिंतन,बहुत ही सुन्दर रचना...
Quite interesting imagination !
सुंदर रचना, बधाई।
achhi kavita
भूख कल थी,
भूख है अब,
भूख तो कल भी रहेगी.....
कैसा वह दिन,
अजब होगा सोचिए,
भूख न जिस दिन रहेगी....।
तब तो सब कुछ थम जाएगा ...।
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