जैसे ही जागता हूँ
सो जाता हूँ !
सोते हुए देखता हूँ
अपनी नींद टूटने का ख्वाब !
ख्वाब टूटता है हर रोज़
और नींद में बिखर जाता है
टूटे ख्वाब के चुभने से
नहीं टूटती नींद..
क्यों नहीं होता कुछ ऐसा
कि कभी सोते हुए
नींद भूल जाये
आंखें बन्द करना..
फिर कोई ख्वाब
मशाल लेकर
घुस जाये आंखों में
और लगा डाले आग
कम्बख्त नींद को !
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
Bahut badiya vipul bhai.....
tumhari lekhani k to hum purane prasansk hai....
एकदम नयी कल्पना, सुन्दर रचना।
bahut sundar
कुछ ऐसा ही एक बार, कई साल पहले, ओशो के एक प्रवचन में सुनने को मिला था
मैं तो सिर्फ़ एक ही शब्द कहना चाहूँगा:- "बेहतरीन"
sunder soch
badhai
rachana
सुंदर रचना, बधाई
behad khubsaurat kaviraj
aapka perfect signature he isme aur antim panktiyaan bahhutttttttttttttttt khubsurat hain--
yamini
फिर कोई ख्वाब
मशाल लेकर
घुस जाये आंखों में
और लगा डाले आग
कम्बख्त नींद को !
Kya baat hai Vipul ji.. Bahut hi umda rachna. Aapki kavitao ki mashal jalate raha kijiye. Kuch roshni hme b mil jaya karegi.. Badhai...
Ruchita
बहुत सुन्दर...
हालांकि कहीं कुछ कमी जरूर मह्सूस हुई, मगर फिर भी आपकी रचना अपने आप में एक अलग पहचान रखती है...
ख्वाब टूटता है हर रोज़
और नींद में बिखर जाता है
टूटे ख्वाब के चुभने से
नहीं टूटती नींद..
सुन्दर शब्द रचना ।
सचमुच यदि ऐसा हो तो उसी दिन होगा जागरण!
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