बदलते सामाजिक परिवेश के बीच किसी लड़की के जीवन की विषमताएँ और अपनी पहचान का सतत संघर्ष अक्सर हिमानी दीवान की कविताओं का केंद्र-बिंदु होता है। हिमानी दीवान की एक कविता आप जुलाई माह मे पढ़ चुके हैं। अक्टूबर माह की प्रतियोगिता मे हिमानी की प्रस्तुत कविता तीसरे स्थान पर रही है।
पुरस्कृत कविता: खोल दो
खोल दो का आग्रह
फिर मेरे सामने है
क्योंकि अब वो मुझे
अपनी जंजीरों में जकड़ना चाहते हैं
मेरी उड़ान मंजूर है उन्हें
मगर वो उसकी दिशा बदलना चाहते है
मेरी आहटों का जिक्र भी भाता है उन्हें
और मेरे कदम बढ़ाने पर भी वो ऐतराज जताते है
उनकी मीठी सी बातों में एक तीखा सा पन है
छलकती सी आँखें छल का दर्पण है
सब कुछ छिपा कर जाने क्या बताना चाहते हैं
मेरे जवान दिल में बैठे बचपने को
वो हर रोज बहकाना चाहते है
मेरी बातों की तफसील से मतलब नहीं उन्हें
मेरे बदन की तासीर को आजमाना चाहते हैं
जो नाम हिमानी है
उसमे वो क्या आग जलाएंगे
बर्फ की इस नदी को कितना पिघलायेंगे
बारिश तो ठीक है मगर
बाढ़ का कहर क्या वो सह पाएंगे
सवाल उनके भी हैं सवाल मेरे भी
मैं वि्श्वास करने में यकीं रखती हूँ
उनके सवालों में है शक के घेरे भी
देखें अब हम
भाग खड़े होंगे वो
या इन हालातों को सुलझाएंगे???
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
उनकी मीठी सी बातों में एक तीखा सा पन है
छलकती सी आँखें छल का दर्पण है
सब कुछ छिपा कर जाने क्या बताना चाहते हैं
कितनी वास्तविकता झलकती है इन पंक्तियों में ....सकारात्मक विचारधारा और आत्मविश्वास से परिपूर्ण प्रस्तुति . बधाई
सुन्दर प्रस्तुति। बधाई
छलकती सी आँखें छल का दर्पण है
सब कुछ छिपा कर जाने क्या बताना चाहते हैं
मेरी बातों की तफसील से मतलब नहीं उन्हें
मेरे बदन की तासीर को आजमाना चाहते हैं
बाढ़ का कहर क्या वो सह पाएंगे
सवाल उनके भी हैं सवाल मेरे भी
Bahut prabhavshali panktiyan--
हिमानी जी दीवान
तृतीय स्थान पर पुरस्कृत होने के लिए बहुत बहुत बधाई !
अवश्य ही आप अगली बार प्रथम स्थान के लिए सम्मानित हों , यही शुभकामना है ।
प्रस्तुत कविता आपके सृजन में उत्तरोतर आ रहे निखार का प्रमाण है ।
आपको हृदय से बधाई और मंगलकामनाएं !!
मेरी उड़ान मंजूर है उन्हें
मगर वो उसकी दिशा बदलना चाहते है
ज़माना सब पर अपनी मर्ज़ी थोपने का इच्छुक होता है । ज़रूरत है , सही दिशा चुन कर निश्चय के साथ उस पर अग्रसर होते रहने की ।
जो नाम हिमानी है
उसमे वो क्या आग जलाएंगे
बर्फ की इस नदी को कितना पिघलायेंगे
बारिश तो ठीक है मगर
बाढ़ का कहर क्या वो सह पाएंगे
आपका आत्मबल द्विगुणित होता रहे निरंतर …
आमीन !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हिमानी जी को त्रितीय स्थान पर आने के लिये बधाई। सकारात्मक सोच , अच्छा शब्द संयोजन।
बारिश तो ठीक है मगर
बाढ़ का कहर क्या वो सह पाएंगे
बहुत सुन्दर रचना ...
ऊर्जावान दृष्टि और सकारात्मकता
सुन्दर शब्द रचना ।
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