प्रतियोगिता की छठवीं कविता हिमानी दीवान की है। हिमानी दीवान पहली बार कविता-मंच पर प्रकाशित हो रही हैं। बैठक पर स्थाई तौर पर लिखती हैं। अपने बारे में बताते हुए कहती हैं- "ये जानते हुए भी की संघर्ष ही जीवन है, माँ ने एक सरल जीवन की योजना बनाई थी मेरे लिए। बारहवीं की पढ़ाई के बाद बीटीसी कराकर शादी करवा देने की एक सरल और सधी हुई योजना। लेकिन मेरे दिमाग पर बचपन से जो लेखिका बनने का फितूर था, वो पत्रकार बनने की परिणति के रूप में फूट पड़ा और घर पर किसी को बिना बताये पत्रकारिता का फार्म भर दिया और दाखिला मिल जाने पर घर में बताया। इकलौती संतान होने का फायदा कह सकते हैं इसे कि न चाहते हुए भी सहयोग और सहमति दोनों मिल गई। पिछले ही साल पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की है और तब से सपनों को जमीन देने की कोशिश में हूँ। फिलहाल गाजियाबाद के एक टेबलॉयड में अपने अरमानों को आकाश देने का प्रयास हो रहा है। दुनियादारी की तमाम विसंगतियों से जुड़े हो जाने के बावजूद भी गैरदुनियादार हो जाने की चाह में तमाम विषयों पर लिखना-पढ़ना जारी है।"
पुरस्कृत कविता: एक अभागी लड़की
बच्ची से बड़ी होती है वो
सीखती है घर के काम-काज
रोटियाँ बेलना
तवे पे डालना
तरकारी छीलना
पकाना
अक्सर
उँगली जल जाती है
कट जाती है
पर बात
आग और चाकू से आगे निकलकर
उसके ग्रहों की चाल पर चल जाती है
छत पर सूखते कपड़ों में
जब सब लत्ते रहते है अपनी जगह पर
और बस उसकी ही चुनरी उड़ जाती है
तो बात हवा के झोंको और तेज आँधी
को छोड
उसके नसीब के पन्नो को पलट आती है
वो भी बढ़ाती है कदम आगे
फासला कम भी हो जाता है मंजिलों का
मगर जब उसके ही रस्ते में हरे-भरे बूढ़े हो चुके
किसी पेड़ की शाख गिर जाती है तो
ये बात किसी प्रख्यात पंडित
तक पहुँच जाती है
सोलह, सात और एक सौ आठ
हर संख्या के उपवास रख चुकी है वो
अपनी पहुँच से पैर बाहर निकालकर
न जाने कितने मंदिरों की सीडियाँ
चढ़ चुकी है वो
मगर जब उसकी ही मन्नत अधूरी रह जाती है
तो बात भगवान के कच्चे कानों का नजर अंदाज कर
उसके कर्मों को कोस आती है
मौसम बदलते हैं हर बरस
मगर जब पतझड़ ही बस
उसके आँगन में रुक जाता है तो
बात मौसम से बदलकर
मुक़द्दर की तरफ मुड़ जाती है
फिर जब कभी किसी दिन सखियों के बीच
जिक्र होता है
उसकी प्रेम कहानी का तो
दिल की दहलीज से निकलकर
बात उसके हाथ की लकीरों तक पहुँच जाती है
एक लड़की
जब लड़की होने के साथ
एक अभागी लड़की बन जाती है
तब जिंदगी के सारे धागों में जैसे कोई
गिरह पड़
जाती है........
न कोई अदालत
न वकील
न सबूत
न गवाह
मुक़द्दर के इस मुक़दमे की सुनवाई
में हर बार होता है एक ऐतिहासिक फैसला
और फिर
जीते जी मरने की सजा सुनाई जाती है
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
मुक़द्दर के इस मुक़दमे की सुनवाई
में हर बार होता है एक ऐतिहासिक फैसला
और फिर
जीते जी मरने की सजा सुनाई जाती है'
और तो और मुकद्दर के इस फैसले में एक पक्षीय सुनवाई और एकतरफा फैसला होता है
और फिर मुकदमा जिसके खिलाफ होता है वही फैसला सुनाता है.
सुन्दर कविता
बहुत सुन्दर ... पुरस्कार के योग्य.
Kai jagah pe kavita dil ko chu gayi..
Shuruvat madhya ant ..har jagah kuch na kuch aisa hai jo dhyan hatne nahi deta..ek achhi kavita ke liye badhai aapko
सुन्दर अभिव्यक्ति
मेरा एक सीधा सा सवाल है हिमानी जी से
बच्ची से बड़ी होती है वो
सीखती है घर के काम-काज
रोटियाँ बेलना
तवे पे डालना
तरकारी छीलना
पकाना
अक्सर
उँगली जल जाती है
कट जाती है
पर बात
आग और चाकू से आगे निकलकर
उसके ग्रहों की चाल पर चल जाती है
यह जो सारी बातें आपने अपनी कविता में कही, इनमें से कितनी बातें आपके अपने जीवन में घटी हैं..
सच्चा सा जवाब चाहूंगी, बिना किसी लग लपेट के..उसके बाद मैं कुछ कहने के लायक हो पाऊँगी...जवाब जरुर दीजियेगा.
इस कविता पर मैने आज ही कमेन्ट दिया था। पता नही आजकल कमेन्ट क्यों पोस्ट नही हो रहे। अब इतना कि कविता अच्छी लगी। आभार।
हिमानी दीवान जी !
हिंदुस्तान की लड़कियों !
माताओं !
बहनों !
हे समस्त मातृ शक्ति !
क़लम थामते ही क्यों स्वयं को निरीह , लाचार , पीड़िता , कमजोर और अभागी घोषित करने लग जाती हो ?
परिस्थितियां सर्वत्र , सबके साथ ऐसी तो नहीं ।
… बल्कि कई जगह तो इससे विपरीत भी हैं ।
क्या ऐसी ख़बरें ध्यान से अनदेखी , विस्मृत ही रहती हैं ?
- हरियाणा के एक नेता के पूरे परिवार को क़त्ल कर देती है उसकी अपनी विवाहिता बेटी सम्पत्ति के लालच में ।
- कच्ची उम्र , कच्ची बुद्धि के प्यार में बाधा समझने के कारण गंगानगर की लड़की छोटे भाई बहनों सहित मां बाप और परिवार के पांच पांच सदस्यों की हत्या कर देती है ।
- भले चंगे युवक को प्यार में उलझाने के बाद किसी और की चाहत में कितनी होशियारी और हिम्मत से मार कर लाश के सैंकड़ों टुकड़े करके फिर से अपने क्रिया कलापों में व्यस्त हो जाती है मुंबई की मॉडल ।
- … और विवाह के बाद माल मत्ता ले'कर फ़रार हो जाने वाली आवारा लड़कियों की हर दिन आने वाली नित नयी ख़बरें
- … शादी करते ही ससुराल को नर्क बना देने वाली नकचढ़ी युवतियों की रोज़ रोज़ होने वाली घटनाएं
- …और इनसे मिलती जुलती अन्य अनेक अनेक अनेक घटनाएं !!!
ऐसा मत करो !
देवियों ! यह भी क़लम का दुरुपयोग ही है ।
हर मां बाप अपनी बेटी को भी उतना ही प्यार करते हैं जितना बेटे को !
हर घर में बहू घर की लक्ष्मी ही होती है !
किसी इक्की दुक्की घटना को ही शाश्वत् मत मानो , प्लीज़ !
उपरोक्त ख़बरों के सहारे , मेरे विचार में किसी पुरुष लेखक कवि शायर ने समूची या अधिसंख्य नारी जाति पर आक्षेप लगाते हुए क़लम नहीं चलाई होगी ।
क्षमा चाहूंगा , हिमानी जी के बहाने बात हर लेखन से जुड़ी बहनों , माताओं से है ।
हिमानी जी की कविता में शिल्प सौष्ठव और अन्य काव्य गुण किसी से कम नहीं । …और इसके लिए मैं उन्हें हृदय से बधाई देता हूं ।
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवसर मिले तो अवश्य आइएगा…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
tats exactly wat i wanted to say..
Agar aap ek patrakaar hain, ghar par bataye bina apne career ka chunav kar sakti hain, aur aap khud kehti hain ki aapko family ka support mila.. Fir aap kaise likh sakti hain aisi baatein..
Mat kijiye us nari ka apmaan jo shakti hai swayam..
Apni kshamata ko pehchaniye..
Mujhe samajh nahi aata koi bhi yeh kyun nahi likhta ki yeh ladki maa ki ladli hai, use yeh mila, usne yeh haasil kiya..
Jiske haath mein kalam hai wo abla kaise hui..
Apwaad har jagah hain, par fir bhi aaj stithi kabu mein hai.. Log prayasrat hain.. Aur aankde iske gawaah hain.. Aaj nari abla nahi hai, sabla hai.
Aaj ladkiyan bus ki seat se lekar bade se bade mudde par bhid jati hain.. Wo akeli hi kafi hain.. Police, public sab support karte hain use.. Govt ne use itni azaadi tak di hai ki wo sham ke baad arrest nahi ki ja sakti agar koi mahila police available nahi hai.
Kuch apvaadon ko chhod kar bahut se aise examples hain, agar anandi doctor ban sakti hai itni problems dkhne ke baad to aurat kuch bhi kar sakti hai, apna vishwas banaye rakhiye, aur azaad kijiye apne man mein basi nari ko, fir dekhiye uski udaan.
Ab to is poem ka sequel likhna padhega himaniji...NAARI 2010
निखिल जी ने सही कहा मुझे इस कविता का सिक्वल लिखना पड़ेगा....जब तक नही लिख पाती तब तक के लिए कुछ सवालों का जवाब देना जरूरी है। दिपाली जी ने पूछा ऐसी कितनी घटनाएं मेरे साथ घटित हुईं है। तो किसी खास घटना का जिक्र न करते हुए मैं यही कहूंगी कि इसका हर शब्द मैंने वास्तविकता में घटित होते देखा है कभी अपने जीवन में कभी किसी दूसरी लड़की की जिंदगी में।
राजेंद्र जी ने तमाम खबरों का जिक् कर लड़की का एक अलग रूप दिखाया जिसमें वो खुद अभागी नहीं है दूसरों को अभागा बना रही है और मैं इस सच से कतई इनकार नहीं करती लेकिन ये कविता उन लड़कियों के बारे में हैं जो अभागी हैं जिन्हें भाग्य के नाम पर कोसा जाता है। ऐसी लड़कियों का फीसद भी कम नहीं हैं। दरअसल लड़का या लड़की नामक शब्द वय्वहार या चरितर की कोई परिभाषा तय नहीं करते। अच्छे और बुरे दोनों ही कामों में दोनों का प्रतिशत बदलता रहता है।
अभागी लड़की ...उन लड़कियों को समरपित है जिनके जीवन में घटी अनचाही अनसोची घटनाओं ने उन्हें कभी चरितर हीन बना दिया औऱ कभी भाग्यहीन।
कविता पर अपनी राय देकर उसे सारथक बनाने के लिए आप सबका शुक्रिया
अंत में बस इतना ही कि
मेरा सच ही बस मेरी कविता में उतरे तो वो कविता क्या है
क्यूं न समेटू उन भावनाओं को भी जिनका मुझसे वास्ता कुछ नया है।
हिमानी की इस कविता मे हर उस मध्यवर्गीय लडकी की कहानी झलकती है जो अपनी तमाम सीमाओं और सीमितताओं के बावजूद ख्वाब देखने को विवश अथवा अभिशप्त है.
आकाश छूने के अरमान लिये एक लड्की की जमीनी हकीकत, पीडा, यंत्रणा बहुत की मार्मिक/ प्रभाव शील तरीके से अभिव्यक्त हुई है.
बधाई
himani deewan ji aap bahut jawan hain. kintu kavita narashya purn bhav mein likhi gayi hai. sahitikta ki drishti se dekhein to kavita sanrachna achhi lagti hai. kintu aapne ladki ko abhaagi banakar purane dehati vicharon ko bal diya hai. aaj ancha mein doodh aur aakhon mein paani ka jamana nahi raha. ab to anchal bhi najar nahi aata. sabhi jeans aur t shirt ka prayuog karte hai. to sahityakaar kyo ladki ko kamjor banane par lage hue hain. purush ka jab abhaga pan darkata hai to us par koi kavita nahi banata hai. bhagy to sshayad prarabhdh se taya hota hai . ham log to use prayaog karte hain. narashyta ke bhav mein sahitya ka srijan jivan mein bhi narashyta evm bhaya ko badhata hai.
तो बात हवा के झोंको और तेज आँधी
को छोड
उसके नसीब के पन्नो को पलट आती है
गहरे भावों के साथ बेहतरीन शब्द रचना ।
हकीकत बयान कर दी।
गिरधारी जी ने कविता को संपूरण साहित्य के एवज में ले लिया है। कविता में समाज की एक हकीकत को बताया गया है जिसे नकारा नहीं जा सकता। निराशा हो या आशा निराधार नही होनी चाहिए और कविता में वयक्त किए गए भाव निराशाजनक जान पड़ते हैं तो ये साधार निराशावाद है। आजकल लड़कियां ये कर रही हैं, वो कर रही हैं तक पहुंचकर पीछे मुड़ना भी तो जरूरी है उन्हे देखने के लिए जो आजकल में रहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रही हैं।
भाव पक्ष को जाने दें तो बात आती है ...
शिल्प पक्ष पर...
कविता पर...
जाने कितना वक़्त हुआ एक भी शे'र कहे हुए...
लेकिन एक नजर अखबार पर डाल दें , या १० मिनट न्यूज देख लें...
तो कविता हम भी कह सकते हैं...
पर ना हम अखबार देखते हैं, ना न्यूज़...और..
ना ही कविता कहते हैं....
kavita paksh ko bhi jane dein...
jaane dijiye ji,
kyaa nahin kar rakhaa hai ..samaaj ne..sarkaar ne....
kal is baare mein baat karte hain...hindi mein...
ek saadharan rachnaa ka achchhaa prayaas....
मैं ज्यादा नहीं जानता पर इतना जरूर कहूँगा कि भावनाओं का सदुपयोग करना चाहिए था... रचना अन्दर प्रवेश करती नजर आई पर अमृत की तरह नहीं, गरल सामान .
एक प्रभावशाली कविता पढ़ने को मिली. हिमानी जी की प्रतिभा साफ़ द्रष्टव्य होती है. धन्यवाद.
what i say u r realy very immosnal writer. and u r .............
i have no words for u.
outstanding....
thanks
“न कोई अदालत न वकील न सबूत न गवाह
मुक़द्दर के इस मुक़दमे की सुनवाई
में हर बार होता है एक ऐतिहासिक फैसला
और फिर जीते जी मरने की सजा सुनाई जाती है” सुन्दर कृति है यह ! ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी लड़की की आपबीती का ही सजीव चित्रण हो गया हो. बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी रॉय
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