प्रतियोगिता की पाँचवीं स्थान की कविता का रचनाकार भी हिन्द-युग्म के लिए नया चेहरा है। सुलभ जायसवाल का जन्म 31 अगस्त 1983, को अररिया, बिहार में हुआ। कम्प्यूटर साइंस में स्नातक सुलभ पेशे से सूचना प्रोद्योगिकी विशेषज्ञ हैं और निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं। बचपन से ही कविता-लेखन का शौक रहा है। हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण समाचार पत्रों और विभिन्न पत्रिकाओं में लिखते छपते रहे हैं। उभरते ग़ज़लकार हैं, एक ग़ज़ल संग्रह "भरी दोपहर में रात" प्रकाशनाधीन है। कविताएँ, क्षणिकाएँ और हास्य व्यंग्य लेखक के रूप में सराहे गए। हिंदी-ऊर्दू साहित्य विकास के प्रति समर्पण का भाव है। शैक्षणिक एवं सामजिक गतिविधियों में हाथ बँटाना अच्छा लगता है।
ईमेल: sulabhjaiswal@gmail.com
मो: 9811146080
पुरस्कृत कविता: ममता
माँ! मैंने लौटा दिए हैं
मैंने वापस लौटा दिए हैं सबको सब कुछ
हाँ ये आसान नहीं था की वे सारी चीज़ें
लौटा दी जाये उसी मूल रूप में वापिस
अपने सभी अपनों को
मैंने लौटा दिए हैं पिता से मिले
ईमानदार बने रहने की
नसीहत
कि यहाँ ऊँची इमारतों से
घिरे रास्तों में
खुद को समर्थ बनाने के लिए
मैंने लौटा दिए हैं बड़े भाई से मिली
प्यार भरी धौंस
कि अब ये रोज-रोज का काम है
यहाँ दफ्तरों में झूठे धमकियों के
बगैर कोई काम ठीक से
पूरा नहीं होता
मैंने लौटा दिए हैं बहन से मिली
वो तमाम बेवकूफी
कि कोई मेरे ऊपर आते जाते
किसी भी तरह हँस न पाए
मैंने लौटा दिए हैं दादा से मिली
समय पर भोजन
करने की आदत
कि यहाँ अक्सर खाने की जगह
पर न जाने कितने जरुरी ई.एम.आई
को निबटाना पड़ता है.
मैंने लौटा दिए हैं मोहल्ले के
सभी बड़े बुजुर्गों से
सुने गए किस्से
और दोस्तों से सीखे गए
आँख-कान-मुँह और
उँगलियों की अनेक कलाएँ
कि यहाँ कालोनी में बहुत
दिक्कत है खुली जगहों में
पराये बच्चों से मिलना
अब यहाँ इस बड़े से
चमचमाते जंगल में
मेरे छोटे से कोठरी में
कोई कीमती रौशनी नज़र आती है
किचेन में खुशबू कायम रहती है
बच्चे स्कूल में रंग-बिरंगे
टिफिन हँस कर ले जाते हैं।
पर माँ मैं नहीं लौटा पा रहा हूँ
तुमसे मिली वो ढेर सारी ममता
कैसे लौटाऊँगा?
उलटे बढ़ता ही जा रहा है
जो आज भी बिन माँगे ही मिल जाती है
कभी फोन लगाता हूँ।
तुम कहती हो
अपने बेटे को
पानी में ज्यादा खेलने मत देना
उसे भी तुम्हारी तरह
सर्दी जल्दी लग जाती है
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
सर्वप्रथम तो सुलभ जी को हार्दिक बधाई हिन्द युग्म पर स्थान पाने के लिये. सिलसिला कायम रहे.
कभी फोन लगाता हूँ।
तुम कहती हो
अपने बेटे को
पानी में ज्यादा खेलने मत देना
उसे भी तुम्हारी तरह
सर्दी जल्दी लग जाती है
यही तो वह ऊर्जा है जो अक्ष्क्षुण्ण होती है जिसका प्रवाह निरंतर होता रहता है जिसे लौटा पाना लगभग असम्भव होता है.
बहुत सुन्दर रचना .. बहुत सुन्दर
इंसान सब लौटा सकता है मगर ममता का कर्ज़ कभी नही चुका सकता।
लास्ट लाइन पर आके दिल से एक ही बात निकली, वाह... बहुत प्यारे भाव.बधाई
पर माँ मैं नहीं लौटा पा रहा हूँ
तुमसे मिली वो ढेर सारी ममता
कैसे लौटाऊँगा?
उलटे बढ़ता ही जा रहा है
जो आज भी बिन माँगे ही मिल जाती है
कविता अद्भुत कमाल की है। सुलभ नी आज इन्सान किस कदर रोज़ी रोटी के चक्कर मे मजबूर हो गया है कि अपने को हर जगह बेबस सा पाता है। बहुत भावमय रचना है। सुलभी को बधाई।
बहुत ही खूबसूरत कविता, बहुत दिनों बाद एक अच्छी छंद मुक्त कविता पढने को मिली जिसमे एक नयापन भी है, और कथ्य भी. इसे कहते हैं कविता वो भी बिना छंद के जो सहज ही संभव नहीं होता. ये निरा बौद्धिक व्यायाम नहीं है. यह रचनाकार के सचमुच एक कवि के रूप में समर्थ होने की घोषणा है
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामना
अरुण मित्तल अद्भुत
भाई सुलभ जायसवालजी को प्रतियोगिता में पांचवां स्थान पाने पर ढेरों शुभकामनाएं !
बहुत प्यारे और भावुक इंसान हैं ।
आपकी कविता बहुत अच्छी भावभूमि पर रची गई काव्य रचना है ।
इस कविता में हमारे इर्द गिर्द के एहसासात होने के कारण सहज संप्रेषणीयता है ।
…
… लेकिन , यहां मेरा प्रश्न सम्माननीय निर्णायकों और हिंदयुग्म के आदरणीय संपादक महोदय से है …
भाषा की शिल्पगत शृंखलाबद्ध त्रुटियों को जान बूझ कर नज़रअंदाज़ करते हैं , या ध्यान से देखते ही नहीं ?
या प्रोत्साहन के ये आपके निजी तौर तरीके हैं ?
पिछली प्रतियोगिताओं में भी आप द्वारा चयनित रचनाओं पर पाठकों के ऐतराज़ तर्कसंगत थे । पुरस्कृत रचनाओं की आलोचना हो रही थी , अपुरस्कृत रचनाएं अधिक प्रभावित कर रही थीं ।
स्थानीय स्तर पर तो , मठाधीश बने बैठे तथाकथित साहित्यकारों द्वारा ,श्रेष्ठ रचनाकार को षड़यंत्रपूर्वक सही मूल्यांकन से वंचित करने - कराने के उद्देश्य से , निजी चेले चमाटे बने ठोठ रचनाकारों को आंखें मूंद कर , या जान बूझ कर पुरस्कृत - प्रोत्साहित करते देखते ही आए हैं ।
यहां भी ऐसी विवशताएं हैं , या निर्णय - प्रक्रिया के दौरान एकदम अगंभीर रहते हुए सरसरी तौर पर ही रचनाएं परखने जैसा मात्र उपक्रम ही होता है ?
पुनः आज की पुरस्कृत कविता: ममता ("माँ मैंने लौटा दिये हैं") पर आते हैं …
1 मैंने लौटा दिए हैं पिता से मिले
ईमानदार बने रहने की नसीहत
- नसीहत लौटा दिए या नसीहतें लौटा दीं
2 मैंने लौटा दिए हैं बड़े भाई से मिली
प्यार भरी धौंस
- धौंस लौटा दिए या धौंस लौटा दी
3 मैंने लौटा दिए हैं बहन से मिली
वो तमाम बेवकूफी
- बेवकूफी लौटा दिए या बेवक़ूफ़ी लौटा दी / बेवक़ूफ़ियां लौटा दीं
4 मैंने लौटा दिए हैं दादा से मिली समय पर भोजन करने की आदत
- आदत लौटा दिए या आदत लौटा दी / आदतें लौटा दीं
5 मैंने लौटा दिए हैं मोहल्ले के
सभी बड़े बुजुर्गों से
सुने गए किस्से
और दोस्तों से सीखे गए
आँख-कान-मुँह और
उँगलियों की अनेक कलाएँ
- सीखे गए कलाएं या सीखी गई कलाएं
6 मेरे छोटे से कोठरी में
- या मेरी छोटी सी कोठरी में
7 पर माँ मैं नहीं लौटा पा रहा हूँ
तुमसे मिली वो ढेर सारी ममता
कैसे लौटाऊँगा?
उलटे बढ़ता ही जा रहा है
जो आज भी बिन माँगे ही मिल जाती है
- अर्थात ममता बढ़ता ही जा रहा है या ममता बढ़ती ही जा रही है
निवेदन इतना ही है कि अशुद्धियों वाली रचना को पुरस्कृत प्रोत्साहित करना आवश्यक ही हो , तो यथोचित परिष्करण - संपादन कर लिया करें , ताकि विश्वसनीयता पर आंच न आए ।
आशा है , सकारात्मकता से काम लेंगे ।
शुभाकांक्षी …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
कविता बिलकुल तारीफे काबिल है. माँ की ममता अनमोल होती है . बिलकुल उसी तरह माँ का कलेजा निकल लेने वाले बेटे के ठोकर लग जाने पर माँ की आवाज आती है की बेटे कहीं चोट तो नहीं लगी. माँ इस सृष्टि की वो अनमोल कृति है जिससे ईस्वर खुद सोचता होगा की फिर एक माँ मिले तो ऐसे सौ जनम न्योछावर कर दूँ. कवि को बहुत- बहुत बधाई .
किशोर कुमार जैन. गुवाहाटी असम
बहुत ही भावपूर्ण रचना, दिल को छूते शब्द रचना को परिपूर्ण बनाते हैं, बधाई के साथ आभार ।
सुलभ जी को प्यारी सुन्दर रचना के लिए बधाई! मां का प्रेम कभी लौटाया नहीं जा सकता...वह बना रहता है अपने कपूत बेटे के लिये भी उसी स्तर पर !
निंसदेह कविता के भाव अति खूबसूरत हैं...कोई शक नहीं कि कविता बताती है कि मां का स्थान क्या है....उसके प्यार को आप नहीं लौटा सकते
वैसे राजेंद्र जी के उठाए गए प्रशन एकदम सही हैं औऱ उनका निराकरण होना जरुरी है..
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