आशीष पंत से हम सब परिचित हो चुके हैं। आज हम इन्हीं की एक कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जिसने जून 2010 की प्रतियोगिता में सोलहवाँ स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविता: आज और कल
आज कल्पना के गुलशन में
चटकी हैं अगणित कलियाँ,
कल जब काल की गर्मी से
ये सूखा मरुस्थल हो जाएगा
तब तुम मदमस्त निर्झरणी-सी
मेरे ख्यालों के सभी उपवन
फिर खिलाने प्रिये आना
आज जग का आकाश भरा है
साधनों के असंख्य तारों से
कल मेरी इच्छा पूर्ति को
जब ये सारे तारे टूटेंगे
तब तुम उन टूटे तारों की
मेरी माँगी अर्जियाँ बनकर
साथ देने प्रिये आना
आज यौवन के सौष्ठव की
लपटों का चढ़ता सूरज
कल जब ढलती उम्र की
रजनी का तम छाएगा
तब साहस की किरण लिए
पूनम का सौम्य उजाला बन
तम हरने प्रिये आना
आज ध्वनियों का कोलाहल
फैला है जीवन के मेले में
कल मरघट के सन्नाटे में
जब मूक सभी हो जायेंगे
तब तुम कोयल की कूक-सी
मेरे अंतर के राग सभी
गुंजित करने प्रिये आना
आज आरोह जो जीवन के
सुरों को ऊँचा किये जाता है
कल इस कालचक्र का अंतिम
अवरोह प्रिये जो शुरू होगा
तब बैठ काल के पुष्पक पर
मुझे जीवन स्त्रोत के शून्य में
सम्पूर्ण करने प्रिये आना
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
is baar aapki kavita mein wo baat nahi jo pichli wali mein thi, thought naya nahi hai, halaki shilp ab bhi bahut khoob rahi.
badhai. keep up the good work.
कल मरघट के सन्नाटे में
जब मूक सभी हो जायेंगे
तब तुम कोयल की कूक-सी
मेरे अंतर के राग सभी
गुंजित करने प्रिये आना
अवलम्बन ढूढते मन को कोई तो सहारा चाहिये ही.
सुन्दर शब्दों का समावेश और बिम्ब भी अच्छे
achchhaa likhaa hai..
अभी पिछली भी पढ़ी...
वो सच में ज्यादा अच्छी थी..
आज ध्वनियों का कोलाहल
फैला है जीवन के मेले में
सुन्दर पंक्तियां ।
kavita bhavnatmak bhi aur darshnik bhi hAI. LEKHAN SHAILI KA ACHHA PRAYOG! LIKHTE RAHE SUDHAAR AWYASYA HONGE! BADHAI
कितनी सुंदर कल्पना!...एक उत्कृष्ट रचना!
तुम तब आना ...
जब सौंदर्य ढलान पर हो , अँधेरा घना हो ,
ह्रदय मरुस्थल हो ...
तब ही शाखों पर फिर से नए पात जगाने तुम आना ...
सुन्दर कविता ...!
dil garden-2 ho gaya...........:d
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