प्रतियोगिता की सत्रहवीं कविता नवोदित रचनाकार की है। 24 वर्षीय, अभितान्त्रिकी में स्नातक आशीष पंत मूलतः नैनिताल से हैं और इन दिनों मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) में हैं। सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत हैं और एक बैंक के लिए काम करते हैं। कविता लिखना हाल में ही शुरू किया है। इनका मानना है कि अपने बारे में गहराई से जानने की कोशिश बदस्तूर ज़ारी रहती है पर फिलहाल जानने को बहुत कुछ बाकी है। खुद को पूरा जान लें तो और बाकी रह क्या जायेगा। किताबें और लोगों को पढना, घूमना-फिरना, संगीत सुनना, विचाराधीन रहना और दोस्तों से बातें करना इन्हें अच्छा लगता है।
कविता: वो वक्त
किस्सों भरा प्रेम ग्रन्थ नहीं गढ़ा हमने
पर उस अल्प कथा का हर वरक था
मेरी हर कॉपी के आखरी पन्ने जैसा
सच्चा, मौलिक, - अपना
ना था पूरी उम्र का साथ अपने नसीब में
पर उस ज़रा से वक़्त का हर दिन था
गर्मियों की छुट्टियों के पहले दिन जैसा
उत्साहित, उतावला, - चंचल
कहने की बात नहीं कि कहा नहीं कुछ
पर अपनी खामोशियों का सबब था
एकांत हरे उपवन में कोयल की कूक सा
सुरमयी, मीठा, - गुंजित
चाहत, यारी, इश्क, मोहब्बत पता नहीं
पर वो रिश्ता कुछ तो ख़ास था
छन के आती धूप और सूरजमुखी सा
अतुल्य, अनकहा, - अंजान
अंजाम से तो सदा वाकिफ थे ही हम
पर अदभुत वो विदाई का क्षण था
अंतिम परीक्षा की आखरी घंटी जैसा
आज़ाद, निश्चिन्त, - अंतिम
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये संयोग ही है कि ऑस्ट्रेलिया से हिंदयुग्म को कवि मिल ही जाते हैं....लिखिए, अभी और लिखिए....अभी 17 वें पायदान से काफी ऊपर उठना है...
अंजाम से तो सदा वाकिफ थे ही हम
पर अदभुत वो विदाई का क्षण था
अंतिम परीक्षा की आखरी घंटी जैसा
आज़ाद, निश्चिन्त, - अंतिम
वाह बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।
Superb Bro.... Keep up d good work... Long way to go...
Bhaai, ek baar fir teri kavita padh kar kuchh yaadein taaza ho gayi, kuchh jakhm hare ho gaye, kuchh boondein chhalak padi...
Kaafi sehi aur vaastavik likha hai... Mubaarak ho 17th paaydaan ke liye, aur jaanta hu ki tu aur upar jaayega...
:-)-)-)
चाहत, यारी, इश्क, मोहब्बत पता नहीं
पर वो रिश्ता कुछ तो ख़ास था
छन के आती धूप और सूरजमुखी सा
अतुल्य, अनकहा, - अंजान
....सुंदर अभिव्यक्ति!
ना था पूरी उम्र का साथ अपने नसीब में
पर उस ज़रा से वक़्त का हर दिन था
गर्मियों की छुट्टियों के पहले दिन जैसा
गर्मियों की छुट्टियों का पहला दिन हरेक के लिये एक जैसा नही होता है
सुन्दर दृष्टांत हैं
बहुत अच्छी कविता है बधाई।
bahut khoob.. Kavita ki shilp bahut acchi lagi. Badhai.. Kavita ko upar ke paydaan mein rakha jana chahiye tha..halaki m almost never satisfied wid the results..so it's become normal thing for me.. Lolz.. Otherwise a fresh poem indeed. Keep up the good work, n keep improving as it is the only thing which gives u satisfaction when u read ur own work.
Oops i think i saidd too much.. Never mind.
रचना के भाव बेहद भोले है..meri tarah..:)....अति सुन्दर...waah ..
yahan jaada likhunga to u bolega ki sab padh lete hain ye sab mat likha kar!!!!!........
in short...mubarakan.............
pani ki tarah swach(clean) hai teri poem....
ना था पूरी उम्र का साथ अपने नसीब में
पर उस ज़रा से वक़्त का हर दिन था
गर्मियों की छुट्टियों के पहले दिन जैसा ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ना था पूरी उम्र का साथ अपने नसीब में
पर उस ज़रा से वक़्त का हर दिन था
गर्मियों की छुट्टियों के पहले दिन जैसा
उत्साहित, उतावला, - चंचल
भाई! उस जरा से वक्त की यादें ही काफ़ी हैं. अंजाम से कौन डरता है?
हाय रे...!
एक शे'र याद आ गया..
हरिक किताब के आखिर सफे के पिछली तरफ
मुझी को रूह, मुझी को बदन लिखा होगा..
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