1. चाँद-1
सुना है..
चाँद
पर मिला है पानी
मैं तो सोचता था वो पत्थर है !
2. चाँद-2
दिनभर रहता है मेरे साथ,
रात को चला जाता है
खुद को
सूरज समझता है मेरा चाँद !
3. चाँद-3
सुन..
अपने चाँद होने पर
इतना गुरूर मत कर
बार-बार तेरे चक्कर लगाकर
हमने भी वो जगह पा ली है !
4. सपना -1
जाने कितनी बार
मैं जागा हूँ तमाम रात
तेरा सपना देखने को सुबह-सुबह
माँ कहती है..
‘सुबह का सपना सच होता है’
झूठ कहती है !
5. सपना -2
कुछ दिखाई नहीं दे रहा आज....
सुबह सोकर उठा तो पता चला,
कल रात,
कुछ सपनों ने चुरा ली मेरी आंखें !
6. तुम -1
जो तुम हो, मैं वो चाहता हूँ
तुम जो हो, वो होना नहीं चाहतीं
आती हो तो कहती हो रात हूँ
जाती हो तो कहती हो सुबह थी !
7. तुम -2
तुम
आंख हो
आंख, जिसे कहते हैं शायर
जाम, कमल और समन्दर।
जो होती है
हर प्रेम कविता की अनिवार्य सुन्दरता !
अरे नहीं..
तुम तो आंख हो !
आंख,
जो लग जाती है बेवक़्त
और दिखा देती है
कुछ नामुराद सपने !
8. तुम -3
तुम
मिठास हो..
किसी खुशी पर बांटी जाने वाली
मिठाई में घुली मिठास
दिल में उतरी
और दिमाग पर चढी मिठास ।
अरे नहीं..
तुम तो मिठास हो !
मिठास,
जिसे चाहता है मधुमेह का रोगी
जानते हुए भी
यही है
सारी तक़लीफों का सबब !
9. तुम -4
तुम
सिक्का हो..
जिसकी झनझनाहट सुनकर,
चमक उठती हैं
अन्धे भिखारी की आंखे
सिक्के की गोलाई में
वो महसूस करता है
रोटी का आकार।
अरे नहीं..
तुम तो सिक्का हो !
अत्यंत श्रद्धा के साथ
किसी पवित्र नदी में फेंका गया सिक्का
जो अब किसी के
कुछ भी काम का नहीं !
10. तुम -5
तुम
नींद हो..
जो मुझे नहीं आती
मैं जागता हूं रात भर
कि आ जाओ !
अरे नहीं..
तुम तो नींद हो !
जो दिन भर आती है मुझे
और मैं सो नहीं पाता
जागता रहता हूँ जम्हाइयाँ लेकर !
11. दर्द
आज किसी ने बताया
दर्द रहता है ज़ख्म में
मैं तो सोचता था
मुझ में रहता है !
12. सज़ा
चोर चाहता है
कोई खूबसूरत सज़ा पाना
देखो..
अपनी दाढी में
तिनका उलझा कर लाया है !
-विपुल शुक्ला
(विपुल की यह रचना मैं प्रकाशित कर रहा हूँ)
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
गज़ब की क्षणिकायें हैं…………सभी एक से बढकर एक्।
बहुत ही स्तरीय कवितायें ।
सुना है..
चाँद
पर मिला है पानी
मैं तो सोचता था वो पत्थर है !
और फिर सच ही तो है कि पानी पत्थरों के बीच से ही निकलता है
बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ
भाई क्षणिकाएं तो .......क्षणिकाएं ही हैं.................... क्षण में ही इतना कुछ कह डाला.
lovely...
''सुन..
अपने चाँद होने पर
इतना गुरूर मत कर
बार-बार तेरे चक्कर लगाकर
हमने भी वो जगह पा ली है !''
कौन-सी जगह?
तुम
सिक्का हो..
जिसकी झनझनाहट सुनकर,
चमक उठती हैं
अन्धे भिखारी की आंखे
सिक्के की गोलाई में
वो महसूस करता है
रोटी का आकार।
अरे नहीं..
तुम तो सिक्का हो !
अत्यंत श्रद्धा के साथ
किसी पवित्र नदी में फेंका गया सिक्का
जो अब किसी के
कुछ भी काम का नहीं !
10. तुम -5
तुम
नींद हो..
जो मुझे नहीं आती
मैं जागता हूं रात भर
कि आ जाओ !
अरे नहीं..
तुम तो नींद हो !
जो दिन भर आती है मुझे
और मैं सो नहीं पाता
जागता रहता हूँ जम्हाइयाँ लेकर !
11. दर्द
आज किसी ने बताया
दर्द रहता है ज़ख्म में
मैं तो सोचता था
मुझ में रहता है !
सुनो..सुनो...सुनो...विपुल बाबू को प्यार हो गया है....वो पागल होने करीब हैं....
अच्छी रचनायें ।
चांद, सपना और तुम्..सभी है लाजवाब!... सुंदर क्षणिकाएं!
mujhe kewal dard (11th) stariya lagi..baaki ek bhi khshanika mein wo baat nahi jo honi chahiye... Sorry
लग रहा है किसी इंजिनियर ने लिखी हैं....सांकेतिकता और तार्कीकता के प्रति अत्यधिक मोह तथा आग्रह दीख पड़ा है....खास कर चाँद की कुछ क्षनिकाओं मे..
.सुन..
अपने चाँद होने पर
इतना गुरूर मत कर
बार-बार तेरे चक्कर लगाकर
हमने भी वो जगह पा ली है !...
रूपक एवं बिंब अच्छे प्रयुक्त है पर भावों के स्तर को नही छू पाएँ है जो उनसे अभीष्ट था......कुछेक कविताएँ बहुत सुंदर है और उन्हे पद कर लगता है की उन्हे किसी और समय लिखा गया है तथा इस संकलन की नही है...
मुझे ये पंक्तियाँ बहुत सुंदर लगी.....
कुछ दिखाई नहीं दे रहा आज....
सुबह सोकर उठा तो पता चला,
कल रात,
कुछ सपनों ने चुरा ली मेरी आंखें !
साधुवाद एवं शुभकामनाएँ....
पीयूष भाई.. निस्सन्देह यह क्षणिकायें एक इंजीनियर ने लिखी हैं तथा इनमें "सांकेतिकता और तार्कीकता के प्रति अत्यधिक मोह" नहीं बल्कि इनके प्रति एक "स्वाभाविक झुकाव" है! और यह अनजाने ही नही बल्कि जानबूझकर किया गया काम है। मेरा मानना है कि हवा में कही गयी बात उतनी मारक नहीं होती परंतु जब भावो और विचारो को तर्क का आधार मिलता है तो वे ज्यादा मारक हो जाते हैं।
वैसे आपका सूक्ष्म विश्लेषण एकदम कमाल का था। यह सारी क्षणिकायें एक साथ नही बल्कि पिछले 7 माह में अलग अलग समय लिखी या कहना चाहिये सोची गयी हैं! ऐसी ही बेबाक राय की आपसे अपेक्षा रह्ती है। :) बहुत बहुत धन्यवाद ।
निखिल जी.. विपुल बाबू को प्यार हुआ नही है वो पागल होने के करीब भी नहीं बल्कि वो तो पूरी तरह पागल होकर ठीक भी हो चुके हैं।
जब कांटा गडता है तब इतनी पीडा होती है कि कविता नहीं लिखी जा सकती। तब तो हम ढंग से कराह लें यही बहुत होता है । हां.. जब कांटा गड कर निकल जाता है य बहुत देर तक ग़डा रहता है और हम दर्द के आदि हो जाते हैं तब ज़रूर कविता लिखी जा सकती है!
:)
बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी की टिप्पणियों के लिये खासकर दीपाली जी को ।
दीपाली जी.. क्षणिकायें सच्ची तो हैं यह मैं जानता हूं मगर अच्छी भी हों ऐसा दावा मैं नहीं कर सकता। अपनी बात खुल कर कहने के लिये शुक्रिया। अच्छी क्षणिकाओं का इंतज़ार रहेगा । :)
ik aadh ko chod kar sabhi chadikaye acchi hai.
vipul ko badhayee.
बेहतरीन शब्दों का समन्दर उड़ेला है आपने, लाजवाब प्रस्तुति ।
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