प्रतियोगिता की बारहवीं कविता मेयनुर खत्री की है। गुजरात से तअल्लुक रखने वाली मेयनुर युनिप्रतियोगिता के स्थायी प्रतिभागियों मे रही हैं। इससे पहले इनकी कविताएँ पिछले वर्ष जुलाई माह मे नवें और अगस्त माह मे छठे स्थान पर रह चुकी हैं।
कविता: चाँद
चाँद रोज़ ही निकलता है,
जाने किसको ढूंढता है,
तभी तो,
हर खिड़की,
हर छत,
वो घूमता है,
जब वो निकलता है,
बहुत छोटा होता है,
फिर जैसे जैसे
उसकी तलाश
उसे मिलने की उसकी आस
बढती जाती है,
वो भी हर रात बड़ा होता जाता है,
और,
नहीं मिलने पर, हर रात छोटा,
और
तब वो थक जाता है,
बिलकुल उदास सा हो जाता है,
एक रात,
निकलता ही नहीं ढूंढने को,
उसी रात,
उसका दिल उसे,
फिर से आस बंधाता है,
और वो फिर चला आता है,
तलाश में किसी की,
किसी रात जरा
तुम अपनी खिड़की खुली रख देना,
चाँद ने बताया है,
वो तो फलक का चाँद है,
और ज़मीं के चाँद की,
उसे तलाश है.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
6 कविताप्रेमियों का कहना है :
अँधेरे में घूमते व्यक्तित्व को इससे बेहतर कैसे वर्णित किया जा सकता है ।
सुंदर भाव और सुंदर शब्दों के माध्यम चाँद के मकसद को बखूबी दर्शाया आपने..बढ़िया रचना...मेयनुर जी इससे पहले भी आपकी रचनाएँ पढ़ चुका हूँ.. एक नये विषय से ओतप्रोत और भावों का बेहतरीन समावेश होता है..सार्थक कविता के लिए बधाई..
सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
बहुत सुन्दर एहसासों से सजी रचना मेयनूर जी को बधाई ।
"उसी रात,
उसका दिल उसे,
फिर से आस बंधाता है,
और वो फिर चला आता है,
तलाश में किसी की"
वाह वाह अद्भुत सोच - बहुत सुंदर कविता
उसी रात,
उसका दिल उसे,
फिर से आस बंधाता है,
और वो फिर चला आता है,
तलाश में किसी की,
बेह्तरीन भाव से भरी सुन्दर रचना
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)