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Wednesday, March 03, 2010

थे महल चुप,हवेलियां भी चुप---गजल श्याम


ढूंढ़ते हम कहां गये घर थे

झोंपड़ी में छुपे मिले घर थे

थे महल चुप,हवेलियां भी चुप
बस चहकते हरे भरे घर थे

दादी नाई बुआ हुईं गाइब
सहमे बैठे हरे भरे घर थे

खिड़कियां,ताख और दरवाजे
बाट सब जोहते रहे घर थे

हाट मक्कार और झूठी थी
थामकर सच खड़े घर थे

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Neha का कहना है कि -

behtarin rachna......khamoshi ka ehsaas

M VERMA का कहना है कि -

हाट मक्कार और झूठी थी
थामकर सच खड़े घर थे
घर अगर घर हो तो घर, घर जैसा लगता है

manu का कहना है कि -

sundar...
bahut khoob.......

aakhiri line par dhyaan dijiye..

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

थे महल चुप,हवेलियां भी चुप
बस चहकते हरे भरे घर थे,

बहुत खूब श्याम जी..बढ़िया रचना...धन्यवाद

'शफक़' का कहना है कि -

"हाट मक्कार और झूठी थी
थामकर सच खड़े घर थे"

kya aakhiri misre misre mein koi
lafz chhoot gaya hai? Shayad aapka takhallus

Anjana Bakshi का कहना है कि -

surendr ji ko hamari or se badhayi .........................behd hi khubsoort kavita hain
lagatarrrrrrrrrrrrrr likhte or chapte rahne ki shubhkamnaye
anjana

rachana का कहना है कि -

खिड़कियां,ताख और दरवाजे
बाट सब जोहते रहे घर थे
bahut achchha likha hai aap ne
badhai
saader
rachana

रचना प्रवेश का कहना है कि -

mahal ,haveliyo ki khamoshi ,or rishto ke ahsaaso se bhare chote chote ghar ........bahut lajwaab abhivyakti hai....badhai

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