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Thursday, September 24, 2009

आँखों में बना घर कैसे छुपाऊँ


जुलाई माह की प्रतियोगिता की नौवीं कविता की रचयित्री मेयनूर खत्री की एक कविता अगस्त माह की प्रतियोगिता में भी टॉप 10 में शुमार है।

पुरस्कृत कविता- ग़म

आँखों में दिल उगा
दिल में धड़कने उगी ही थी
आँखें मेरी
मेरा दिल लिए धड़कती रही
मेरा दिल,
जो तेरा घर रहा है
वो आँखों में आ गया है
मैं कितना भी छुपाऊँ
लोग तुझे इनमें
साफ़ देख लिया करते हैं


प्रथम चरण मिला स्थान- उन्नीसवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- छठवाँ


पुरस्कार और सम्मान- मुहम्मद अहसन की ओर से इनके कविता-संग्रह 'नीम का पेड़' की एक प्रति।

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3 कविताप्रेमियों का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

Kam Shabdon me badhiya aur sundar bhav..achchi kavita..badhayi..

Manju Gupta का कहना है कि -

प्रेम की अनुभूति ने आँखों में घर बना दिया .प्रेम गीत बढिया है .बधाई

शोभना चौरे का कहना है कि -

bahut sundar kavita .
badhai.

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