लोकतंत्र ने अब दिया, यह कैसा सन्देश
हंसों के दरबार में, कव्वों के उपदेश
धर्म न्याय कानून सब, रखे दाँव पर आज
इस कुर्सी की होड़ में, लुटी देश की लाज
जिन गुंडों ने देश में, सदा लगाई आग
राजनीति में मिट गए, उनके सारे दाग
मानवता की हो गयी, अब ऐसी तस्वीर
आँसू से भीगा हुआ, जर्जर सकल शरीर
धूल धुआँ आकाश में, धरती पर संग्राम
अमन चैन के गीत हम, गायें कैसे राम
लहू बारूदों ने किया, धरती का श्रृंगार
अत्याचारी लोग हैं, इस युग के अवतार
आग द्वेष की आजकल, जलती है चहुँ ओर
सत्य, प्रेम, सदभाव को, नहीं कहीं भी ठौर
डूब गयी हर आस्था, धर्म ओर ईमान
ढूँढ रहा हूँ आज मैं, अपना हिन्दुस्तान
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
भ्रष्टाचार में हमारी पूरी राजनीति चौपट हो गयी है..इंसान ही इंसान के जान लेने को आतुर है बहुत बढ़िया भाव पिरोया है आपने इस कविता के माध्यम से..मुझे आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी..आभार!!! इतनी सुंदर कविता प्रस्तुत करने के लिए बधाई!!
u r really thirdclass writer.....
hindiyugm is hopeless
आज की असलियत तो यही है। हम फ़िर भी इन्हें सह्ते हैं ये कैसी विडंबना है ? बेहद सशक्त रचना है। बधाई !
आज की राजनीति पर तीखा व्यंग्य है .
आज तो नोटों की राजनीति है .बधाई .
na nayee baat ,na kahne ka naya dhang.
matra ginne mein to aap parangat hai hi toda bhaav bhi late to behter hota.
Dhohe mein prayas ke liye badhayee.
सही चित्रण है
कुछ ऐसी ही है राजनीती.
बहुत सुंदर लिखा है आप ने
सादर
रचना
आपके बात कहने का ढंग निराला है और कटु सत्य बयां करता है। कुछ पंक्तियां आपके समथॅन में
बापू के सुन्दर सपनों का,
हमने ख़ूब किया अभिनंदन।
नाम कलंकित किया देश का,
टीक भाल पर ख़ूनी चंदन।
चोरों ने भी पहन रखा देखो
साधू-संतों का पहनावा है।
मुंह में राम बगल में छूरी
हर मन में एक छलावा है।
न आंखों में बची है लज्या,
ना मन में कोई पछतावा है।
किसी की रचना को थर्डक्लास कहने से पहले हमें बहुत कुछ सोच लेना चाहिए,,अगर हिम्मत की कविता को थर्डक्लास कहने की तो,उतनी ही हिम्मत करते और अपना नाम भी हिम्मत के साथ प्रस्तुत करते ,,,मुझे कविता बहुत अच्छी लगी बधाई!
नीति जी,,
चूहा है ये...
नाम तो ये कभी लिखेगा नहीं...
इसे हमने तरह-तरह से चैलेंज कर के देख लिया है....
पागल है ..( पर इतना भी नहीं..)
इसके जीवन का एकमात्र मकसद हिंद युग्म की मजबूत दीवार में टक्कर मारना है....
सो अपना काम कर रहा है...
आग द्वेष की आजकल, जलती है चहुँ ओर
सत्य, प्रेम, सदभाव को, नहीं कहीं भी ठौर
बस..
अरुण जी के इस दोहे से ही आप इस अनाम की सही हालत समझ सकते हैं..
इस के अलावा सभी दोहो में आज के हालत को खूबसूरती से पेश किया गया है....
काबिले-तारीफ़ पोस्ट है...
जिन गुंडों ने देश में, सदा लगाई आग
राजनीति में मिट गए, उनके सारे दाग
बिलकुल सही तस्वीर पेश कि है आज के हालात कि |
एक अच्छी रचना बधाई |
अरुण जी,
आज के युग का बदलता हुआ रूप और समाज में बढ़ती हुई लोगों की जैसी विकट भावनाएँ और प्रवृतियां हैं उनका आपने इस दोहा-कविता में अत्यंत सुंदर चित्रण किया है. मुझे यह कविता बहुत ही अच्छी लगी. इसे लिखने के लिए बधाई!
manu ji 'chuhe (Any Mouse)' ki baat pe to aapse sehmat hoon par post ki nahi !!
:(
bhav pax ki to 'vaat' lagi hui hai....
haan last doha theek thaak hai...
"डूब गयी हर आस्था, धर्म ओर ईमान
ढूँढ रहा हूँ आज मैं, अपना हिन्दुस्तान
"
(This is my personal comment no need to generalised it and no discussion please)
:)
डूब गयी हर आस्था, धर्म ओर ईमान
ढूँढ रहा हूँ आज मैं, अपना हिन्दुस्तान
पूरी की पूरी कविता बहुत अच्छी है, इसके लिए बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
दोहा छंद में लिखना बहुत जिम्मेदारी का काम है, वैसे सिर्फ मात्राओं के जोड़ तोड़ से अच्छी कविता नहीं बन सकती लेकिन अरुण 'अद्भुत' ने इसे बखूबी निभाया है, .. थोड़ी और कसावट कथ्य में लाने की जरूरत मुझे महसूस होती है .. मुझे लगता है की अरुण भाई कविता प्रकाशित करने में थोड़ी सी जल्दबाजी कर जाते हैं इस चीज़ से उन्हें बचना होगा उनमे अच्छे लेखन की असीम प्रतिभा और संभावनाएं है
दीपक सैनी
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