मुझे डर था बस इसी बात का,
कि ये हश्र न हो मुलाकात का।
तूने मन को मार के क्या पाया,
बुझा ध्रुवतारा तेरी रात का।
हँसी अब जो काटती है तुझको,
है ये असर नेक ख्यालात का।
वो जो किस्मत बाँटते हैं उनके,
शनि घर में है साढे सात का।
जिसे कमतर आँकते थे सारे,
वो था अंतर शह और मात का।
-विश्व दीपक
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
जिसे कमतर आँकते थे सारे,
वो था अंतर शह और मात का।
विश्व दीपक जी ! सुन्दर गज़ल है !
जिसे कमतर आँकते थे सारे,
वो था अंतर शह और मात का।
सुन्दर रचना , बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
वो जो किस्मत बाँटते हैं उनके,
शनि घर में है साढे सात का।
जिसे कमतर आँकते थे सारे,
वो था अंतर शह और मात का।
लाजवाब गज़ल विश्वदीपजी को बधाई
विश्व दीपक जी ! सुन्दर गज़ल है !
jyotisshiya bhasha ke saath shabdo ka tol mol accha laga
तूने मन को मार के क्या पाया,
बुझा ध्रुवतारा तेरी रात का।
kya khoob
वो जो किस्मत बाँटते हैं उनके,
शनि घर में है साढे सात का।
sunder vichar
bahut khoob
saader
rachana
वो जो किस्मत बाँटते हैं उनके,
शनि घर में है साढे सात का।
एक छोटी पर लाज़वाब ग़ज़ल खूब बढ़िया से पिरोइ है आपने यह सुंदर ग़ज़ल हर एक पंक्ति बेहतरीन वैसे ये कोई पहली ग़ज़ल नही है आपकी ग़ज़ल होती ही बेहतरीन है..
वो जो किस्मत बाँटते हैं उनके,
शनि घर में है साढे सात का।
बहुत सटीक कहा आपने ऐसे बाबाओं की कमी नहीं जिनकी किस्मत के ही ठिकाने नहीं। बधाई उम्दा रचना के लिये!
gazab..
आपके स्तर की नहीं है।
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