जीना था या मरना था
आखिर कुछ तो करना था
भीतर दफ्तर था खाली
बाहर बैठा धरना था
दर्द न था जब कोई भी
क्यों अश्को का झरना था
मेरे बदले मरता कौन
मुझको ही तो मरना था
डूब गये वो दरिया में
जिनको पार उतरना था
पछताना मत 'श्याम सखा
आखिर कुछ तो करना था
भीतर दफ्तर था खाली
बाहर बैठा धरना था
दर्द न था जब कोई भी
क्यों अश्को का झरना था
मेरे बदले मरता कौन
मुझको ही तो मरना था
डूब गये वो दरिया में
जिनको पार उतरना था
पछताना मत 'श्याम सखा
उनको कहाँ सुधरना था
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
भीतर दफ्तर था खाली
बाहर बैठा धरना था
डूब गये वो दरिया मे
नको पार उररना था
वाह लाजवाब गज़ल है । आज मेरी गज़ल को भी अपना स्नेह दें धन्यवादी हूँगी।
कहि पते की बात गजल में
मुझको निश्चित पढ़ना था
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
कहि पते की बात गजल में
मुझको निश्चित पढ़ना था
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
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भीतर दफ्तर था खाली
बाहर बैठा धरना था
वाह श्याम जी, बहुत खूब....हर शेर कमाल का लगा
बहुत ही बढ़िया गजल, बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
प्यारी ग़ज़ल ....वाह वाह
रवीन्द्र शर्मा 'रवि '
बहुत सुन्दर गज़ल
मेरे बदले मरता कौन,
मुझको ही तो मरना था........
थोड़े शब्दों में जिंदगी की सच्चाई...बहुत सुंदर।
भीतर दफ्तर था खाली
बाहर बैठा धरना था
sahi kaha aap ne
मेरे बदले मरता कौन
मुझको ही तो मरना था
kitni unchi baat aur kitni sadgi se kah di aap ne ye to aap hi kar sakte hain
bahut sunder
saader
rachana
मेरे बदले मरता कौन
मुझको ही तो मरना था..
बहुत सुन्दर श्याम जी..
बहुत खूब....खूब संवारा है आपने भावों को...धन्यवाद सुंदर ग़ज़ल के लिए..
धन्यवाद्
जो जैसा करके आया है
उसको वैसा भरना था
goodone
मेरे बदले मरता कौन
मुझको ही तो मरना था
बहुत सही बत कही आपने ...सुंदर और हर उम्दा शेर के लिये बहुत-बहुत बधाई! शाम सखा जी आपसे मुलाकात करनी थी वह रह गई इसका अफ़सोस रह गया। बाद में आप दिखायी नहीं दिये। सोचा तो यह था कि आप सभी को मिलूं जो हिन्दयुग्म से जुडे हैं लेकिन यह मुराद पूरी न हो सकी...!
Jindagi jinda dili ye kis bla ka naam hai
Jindagi jinda dili ye kis bla ka naam hai
Gam Ko Chupana Aur Mehfil me muskurana yahi toh hum asshiqo ka kaam hai
regards,
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भीतर दफ्तर था खाली
बाहर बैठा धरना था
कहि पते की बात गजल में
मुझको निश्चित पढ़ना था
Varun Jain
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