चलना एकाएक नहीं आता...
घुटने-घुटने चली
घड़ी-घड़ी गिरी
लड़खड़ाई, चोट खाई,
और धीरे-धीरे नन्हे कदमों को
चलना आ गया...
पर मेरा मन...
उसने अभी चलना नहीं सीखा
और ज़िन्दगी भी
"घर का आँगन" तो नहीं,
एक जाल-सा है यहाँ
रास्तों और मंज़िलों का
एक जंगल-सा है
'अपने' और 'परायों' का...
हर सुबह एक नयी जंग होती है
सच और झूठ की
कुछ ख्वाब हारते हैं
कुछ आदर्श ढहते हैं
कुछ विश्वास घायल होते हैं
कुछ बचपन मरता है
और हर शाम
खून से लथपथ मेरा मन
कुछ और बड़ा होता है...
कवयित्री- स्मिता पाण्डेय
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
जिंदगी घर का आँगन तो नहीं ...
एक जंगल है अपने और परायों का
क्या बात है ....भावपूर्ण रचना ...!!
ज़िन्दगी भी
"घर का आँगन" तो नहीं,
.........
हर सुबह एक नयी जंग होती है
सच और झूठ की
कुछ ख्वाब हारते हैं
कुछ आदर्श ढहते हैं
कुछ विश्वास घायल होते हैं
कुछ बचपन मरता है
और हर शाम
खून से लथपथ मेरा मन
कुछ और बड़ा होता है...
जिंदगी की जद्दोजहद को बयाँ करती बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
जिंदगी में कोई भी चीज़ हम अभ्यास के बिना नही सीख पाते है और अभ्यास और कड़ी मेहनत से हर असंभव चीज़ को संभव भी बनाया जा सकता है....कविता के माध्यम से बहुत बढ़िया बात कही आपने...बढ़िया शैली सुंदर रचना...बधाई हो इस बढ़िया रचना के लिए..
हर सुबह एक नयी जंग होती है
सच और झूठ की
कुछ ख्वाब हारते हैं
कुछ आदर्श ढहते हैं
कुछ विश्वास घायल होते हैं
कुछ बचपन मरता है
और हर शाम
खून से लथपथ मेरा मन
कुछ और बड़ा होता है...
आदमी के अन्तरदुअन्द की सुन्दर तस्वीर बहुत भावमय रचना है धन्यवाद्
और ज़िन्दगी भी
"घर का आँगन" तो नहीं,
बहुत खूब...
और..
और हर शाम
खून से लथपथ मेरा मन
कुछ और बड़ा होता है...
कमाल का लिखा है बच्चे तुमने....
तुम्हारी रचनाओं पर आना ही पड़ता है हमें...अगर पता लगे तो..
जीती रहो ..खुश रहो...हमेशा....
ढेरों आशीर्वाद... अनगिनत दुआएं...
जीयो बेटा...
puri kavita kamal ki hai
janti ho khoon se ...........
thoda aur bada ho jata hai
itni sunder baat hai ki mujhe yad rahegi ye line
rachana
आह !!!!! यही तो है
जो बेबस कर देता है लिखने के लियें....
बहुत सुंदर....
स-स्नेह
गीता
बहुत खूब ,मुबारकबाद सुन्दर भावों के लिए
किसी ने ठीक ही कहा है,
"क्या भरोसा है जिंदगानी का,
आदमी बुलबुला है पानी का"
स्मितामिश्रा
और हर शाम
खून से लथपथ मेरा मन
कुछ और बड़ा होता है...
kya baat hai smita ji.. bahut khoob...
बहुत बढ़िया
I have read all poems of Smita and it seems that she is an emerging poet
but she takes the worldly affairs more seriously than it needed.
very nice - Venkat Achanta
स्मिता,
आपमें भविष्य की कवयित्री को मैं हमेशा से देखता हूँ।
Chalana Kaisey Seekha?
Ruk-Ruk Kar, Gir-Gir kar
Ab to Doudiye Chillakar.
No one Can Catch, If Smita Run.
Ready, Steady, Go..........
*****
मन जिस नाम की चिड़िया है उसका स्वभाव ही डावांडोल होते रहना है.ये तो सुबह कुछ कहता है और शाम को कुछ और.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)