उसका भ्रम
बर्फ पर बे खौफ
बहुत देर तक चलती रही
वो जानती थी
कि क़दमों के निशान
उस को लौटने की दिशा देंगे
बरसते बर्फ के फूलों को
आँचल में समेट
जब वो पलटी
समय की सर्द हवा
सारे निशान मिटा चुकी थी
हरा सिंदूर
निवस्त्र हुए पेड़
मौसम से
हरितमा की
याचना करते रहे
वो बरसा
और उनको वैधव्य के रंग से रंग गया
समय बीता
आया नई सोच का मौसम
सजा गया उसकी मांग
हरे सिन्दूर से
गर्म झोंका
ठंड से जले हाथों में
चिटके गलों को ढाँपे
बर्फ के थपेड़ों से लड़ रही थी
कि हवा का गर्म झोंका
उसे पिता की गोद-सी
गुनगुनाहट दे गया
वो जानती थी
ये हवा आई है
उसी गाँव से
जहाँ गाँठ लगे ऊन से
बुन रही थी
स्वेटर उस की माँ
सर्द धुआँ
मेरे अंदर
जल रहा था
जज्बात का दिया
रिश्तों की ठंडक ने
उसे जमा दिया
सर्द-सा धुआँ उठा
मै स्वयं बर्फ बन गई
-रचना श्रीवास्तव
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
मनमोहक सर्दी की झाकियां... बधाई.
कुछ कमियाँ..मेरी नज़र से..
१-'वो जानती थी' के स्थान पर ..'वो समझती थी' अधिक अच्छा लगता.
२-समय बीता
३-गालों
...........बहुत दिनों के बाद रचना जी की कविताएँ पढ़ने को मिलीं...बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप.
बहुत बढ़िया रचनाये , बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
बहुत बढिया रचनायें मनमोहक सर्दियों जैसी । शुभकामनायें
बरसते बर्फ के फूलों को
आँचल में समेट
जब वो पलटी
समय की सर्द हवा
सारे निशान मिटा चुकी थी
कि हवा का गर्म झोंका
उसे पिता की गोद-सी
गुनगुनाहट दे गया
वो जानती थी
ये हवा आई है
उसी गाँव से
जहाँ गाँठ लगे ऊन से
बुन रही थी
स्वेटर उस की माँ
sardi ki jhalkiyon ke pasandeeda ansh wo jo hmne churakar upar rakh diye hain .
rachna bahut badhiya .........
सारी क्षणिकाएँ अच्छी हैं।
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक
चारों क्षणिकाएं गहरे भाव लिए:
"जब वो पलटी
समय की सर्द हवा
सारे निशान मिटा चुकी थी"
"आया नई सोच का मौसम
सजा गया उसकी मांग
हरे सिन्दूर से"
"हवा का गर्म झोंका
उसे पिता की गोद-सी
गुनगुनाहट दे गया
वो जानती थी
ये हवा आई है
उसी गाँव से
जहाँ गाँठ लगे ऊन से
बुन रही थी
स्वेटर उस की माँ"
"सर्द-सा धुआँ उठा
मै स्वयं बर्फ बन गई"
शानदार प्रस्तुति के लिए रचना जी बधाई स्वीकारें
कविता से ज़रा छोटी..और क्षणिकाओं से ज़रा लम्बी लग रही है रचनाएँ....
या हमीं शायद काफी दिन बाद क्षणिका पढ़ रहे हैं...
वो जानती ही रही होगी.....जब वो गयी...
हाँ,
वापस लौटी तो जाना उसने..के उसने गलत समझा था....
वो बरसा
और उनको वैधव्य के रंग से रंग गया .... कमाल का सोचा है...
ये हवा आई है
उसी गाँव से
जहाँ गाँठ लगे ऊन से
बुन रही थी
स्वेटर उस की माँ......... मन को काफी देर तक खींचा इस गाँठ लगी उन ने...बचपन याद आ गया..
अंतिम रचना...
''सर्द धुंआ'' के लिए बिलकुल भी शब्द नहीं हैं हमारे पास....
सादर
मनु...
देवेन्द्र जी
आप की बात सही है गालों ही है .वो जानती इस किये लिखा की वो निश्चित थी की वो निशान रास्ता दिखायेंगे .पर उसकी इस सोच को भी गलत हुई .पर आप की बात भी सही है .
आप ने पसंद किया और लिखा आप का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
रचना
नीलम जी ,निर्मला कपिला जी ,विश्व दीपक जी ,ह्रदय पुष्प जी ,विमल जी ,संजय जी आप ने पढ़ा पसंद किया और अपने विचार लिखे आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद .
मनु जी आप ने जो कहा की ये थोड़ी बड़ी है सही होसकता है क्यों की जब मैने लिखा था तो छोटी कवितायेँ ही सोचा था .आप ने कविताओं को पसंद किया आप का भी बहुत बहुत धन्यवाद
आप सभी जो लिखते हैं वो मुझे सदा ही सकारात्मक सोच की ओर लेजाता है .आशा है आप का स्नेह इसी तरह से मिलता रहेगा
सादर
रचना
ठंड से जले हाथों में
चिटके गलों को ढाँपे
बर्फ के थपेड़ों से लड़ रही थी
कि हवा का गर्म झोंका
उसे पिता की गोद-सी
गुनगुनाहट दे गया
सुंदर झलकियाँ....धन्यवाद रचना जी!!
bahut sunder sardi ki yeh jhalkiyan sardi main garmahat de gain badhai rachna ji
बहुत अच्छी क्षणिकाएं,
दो या तीन और हो सकती थी
कुछ कम लगी, मन नहीं भरा, फिर बाल उद्यान पर जाकर "स्वेटर पर स्वेटर पहनाती है माँ" एक बार और पढ़ी, तब कही गर्मी आई
अच्छी रचनाओं के लिए बधाई,
सादर,
विनय के जोशी
behtreen likha hai aapne.
thoda pahle likha jana chahiye tha ...
agli sardi ke lye sambhal kar rakh li hai aapki rachnaaye.
pahli line padte hi laga ki rachna ji ki kavitaye hai. neech naam dekha to lagne laga ki main bhi accha pathak hoon , sirf kavita se rachnakaar ko pahchanna suru kar diya hai maine.
badhayee
गहरे भाव, सुन्दर मौसमी रचना
आदरनीय रचना जी
बहुत सार्थक रचनाएं . ये कहना गलत नहीं होगा कि यदि इन्हें और लम्बा किया जाता तो शायद टीस कम हो जाती .
बहुत सुन्दर . लिखती रहें . शुभकामनाएं .
रवीन्द्र शर्मा 'रवि '
सुंदर झलकियाँ....धन्यवाद रचना जी!!
amita ji, varma ji ,sanjy ji aap ka bhaut bahut dhnyavad .
vinay ji ravindra ji me aap ki baat.
ka dhanayan rakhungi .
akhilesh ji aap ki bat ne mujhe bhav vibhor kar diya
aap sabhi ne apni baat kahi hai aap sabhi ka aabhar.
saader
rachana
Sardi aur barf mein gungune ehsaas aur use kavita mein abhiyakt karna kitni manviya aur jijiivisha se poorn hai...wah... very well done Rachna....likhtee rahoo aur sindoori kalpanaaon ko haritima se rangtee rahoo...bahut achchi kavitayein hain...
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