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Wednesday, January 27, 2010

जीवन हुआ, पिटा सा मोहरा है


धुंध है
कोहरा है 

ठिठुर-ठिठुर 
बदन हुआ दोहरा है

झीलों में दुबके
बैठे हैं हंस
मौसम झेल रहा
मौसम का दंश
हर और ठिठुरन का पहरा है


परिजन घर में हैं
चोर इसी डर में हैं
राहगीर सभी
बटमारों की जद में हैं

टोपी पहन चौकीदार हुआ बहरा है

कोहरा
झल्ला गया
सब तरफ़ है
छा गया
जन जीवन हुआ, पिटा सा मोहरा है


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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

कोहरा का अच्छा चित्रण किया है मज़ा आ गया , बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद

विमल कुमार हेडा

Anonymous का कहना है कि -

कोहरा तो छट गया कुछ बाकी है वो भी जल्दी ही छट जायेगा लेकिन आदरणीय श्याम जी की चिंता तो
"झीलों में दुबके
बैठे हैं हंस
मौसम झेल रहा
मौसम का दंश
हर और ठिठुरन का पहरा है

"परिजन घर में हैं
चोर इसी डर में हैं
राहगीर सभी
बटमारों की जद में हैं
टोपी पहन चौकीदार हुआ बहरा है"

है जो यथार्थ और जायज है इसको भागने का उपाय कौन करेगा?

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत अच्छा चित्र खीँ चा है कोहरे का शुभकामनायें

रंजना का कहना है कि -

Waaaahhh !!! Sheet ka adbhud manohari varnan kiya hai aapne apni is sundar kavita me...Bahut bahut sundar !!!

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

जाड़े की एक सुबह का सुंदर वर्णन...कोहरे में तो दिन भी रात जैसा नज़र आता है...सुंदर रचना..बधाई श्याम जी

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