धुंध है
कोहरा है
ठिठुर-ठिठुर
बदन हुआ दोहरा है
झीलों में दुबके
बैठे हैं हंस
मौसम झेल रहा
मौसम का दंश
हर और ठिठुरन का पहरा है
परिजन घर में हैं
चोर इसी डर में हैं
राहगीर सभी
बटमारों की जद में हैं
टोपी पहन चौकीदार हुआ बहरा है
कोहरा
झल्ला गया
सब तरफ़ है
छा गया
जन जीवन हुआ, पिटा सा मोहरा है
कोहरा
झल्ला गया
सब तरफ़ है
छा गया
जन जीवन हुआ, पिटा सा मोहरा है
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
कोहरा का अच्छा चित्रण किया है मज़ा आ गया , बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
कोहरा तो छट गया कुछ बाकी है वो भी जल्दी ही छट जायेगा लेकिन आदरणीय श्याम जी की चिंता तो
"झीलों में दुबके
बैठे हैं हंस
मौसम झेल रहा
मौसम का दंश
हर और ठिठुरन का पहरा है
"परिजन घर में हैं
चोर इसी डर में हैं
राहगीर सभी
बटमारों की जद में हैं
टोपी पहन चौकीदार हुआ बहरा है"
है जो यथार्थ और जायज है इसको भागने का उपाय कौन करेगा?
बहुत अच्छा चित्र खीँ चा है कोहरे का शुभकामनायें
Waaaahhh !!! Sheet ka adbhud manohari varnan kiya hai aapne apni is sundar kavita me...Bahut bahut sundar !!!
जाड़े की एक सुबह का सुंदर वर्णन...कोहरे में तो दिन भी रात जैसा नज़र आता है...सुंदर रचना..बधाई श्याम जी
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