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Friday, February 05, 2010

आकाश में


छागये लो बादल आकाश में
प्यास धरती को ; नल आकाश में

खींचली साड़ी ; तारों से भरी
द्रौपदी रोई; छल आकाश में

चिढ़ते पानी से ; हैरान सब
कौन ये सूं सूं ; जल आकाश में

छेड़ती आ कर आवारा हवा
लो बचा लो आँचल आकाश में

ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश में

पेड़ झूमा ; मस्ती का था नशा
फैंकता मीठा फल आकाश में

-हरिहर झा

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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश में
बहुत ही सुन्दर , बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

निर्मला कपिला का कहना है कि -

ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश मे
बहुत सुन्दर विमल कुमार जी को बधाई

rachana का कहना है कि -

ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश में
kya sunder soch .
bahut bahut badhai
saader
rachana

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

पेड़ झूमा ; मस्ती का था नशा
फैंकता मीठा फल आकाश में

आकाश में बादल को देखते ही मन प्रसन्न हो उठता है....बढ़िया भाव..बधाई

Anonymous का कहना है कि -

खींचली साड़ी ; तारों से भरी
द्रौपदी रोई; छल आकाश में....बहुत ही गहरे भाव,प्यारी रचना के लिये बधाई!

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