छागये लो बादल आकाश में
प्यास धरती को ; नल आकाश में
खींचली साड़ी ; तारों से भरी
द्रौपदी रोई; छल आकाश में
चिढ़ते पानी से ; हैरान सब
कौन ये सूं सूं ; जल आकाश में
छेड़ती आ कर आवारा हवा
लो बचा लो आँचल आकाश में
ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश में
पेड़ झूमा ; मस्ती का था नशा
फैंकता मीठा फल आकाश में
-हरिहर झा
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश में
बहुत ही सुन्दर , बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश मे
बहुत सुन्दर विमल कुमार जी को बधाई
ना उगी धरती से कोई फ़सल
वो चलाता है हल आकाश में
kya sunder soch .
bahut bahut badhai
saader
rachana
पेड़ झूमा ; मस्ती का था नशा
फैंकता मीठा फल आकाश में
आकाश में बादल को देखते ही मन प्रसन्न हो उठता है....बढ़िया भाव..बधाई
खींचली साड़ी ; तारों से भरी
द्रौपदी रोई; छल आकाश में....बहुत ही गहरे भाव,प्यारी रचना के लिये बधाई!
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