कवयित्री संगीता सेठी पिछले कई महिनों से हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग ले रही है। इससे पहले नवंबर माह की प्रतियोगिता मे इनकी एक कविता ने आठवाँ स्थान बनाया था।
दिसंबर की यूनिप्रतियोगिता मे इनकी कविता सातवें स्थान पर रही है।
पुरस्कृत कविता: माँ जानती है
माँ जानती है
नन्हा सीखा है चलना
घुटरुं-घुटरुं
चलेगा दौड़ेगा
लग ना जाये चोट
इसलिए हटा लेती है
घर के सभी फर्नीचर
रास्ते से
बना देती पूरे घर को
खेल का मैदान
माँ जानती है
बेटा सीखने लगा है अक्षर
जाने लगा है स्कूल
हाथ मे पेंसिल लिए
खींचेगा लकीरें
इसलिए ठोक देती है बोर्ड
घर की सारी दीवारो पर
बना देती है पूरे घर को
स्कूल को ब्लैक बोर्ड
माँ जानती है
बेटा लेने लगा है सपने
आँखों ही आँखों मे
बसने लगी है अप्सरा
इसलिए बांधकर
उसके सिर पर सेहरा
कमरों की दीवारो पर
लिख देती है प्रेम-कविताएँ
और खींच कर परदे दरवाजों पर
खुद छिप जाती है परदों के पार
माँ जानती है
बेटा बन गया है पिता
दो बच्चो का
गृहस्थाश्रम के भंवर मे
फंस गया है इस कदर
कि उठा नहीं सकता बोझ
बूढी माँ की खांसती देह का
इसलिए माँ छोड देती है
अपनी देह भी हौले-हौले
और मुक्त हो जाती है
हर जिम्मे से
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
दुनियां में सिर्फ एक माँ ही है जो ऐसा कर सकती है. सहज और सरल भाषा में सुंदर रचना. कवियत्री को बधाई.
वाह ! क्या खूब रचना...मां कितनी जरुरी है हमारी जिदगी मे, बनी रहती है कवच की तरह...बहुत-बहुत बधाई उम्दा कविता के लिए संगीता जी!
ek naarishakti ke kar kamlon se ek maa kee katha; nissandeh maa sarswati ki aseem krupa evam aasheerwad ka phal hai ye kavita. Aap hum kavita premiyon ke liye purane vishay par ek nai vichardhara lekar aai hai. koti koti sadhuvad.
हाँ, माँ सब जानती है. वही तो है जो सब जानती है ..
बेटा भी सब जानता है
न जाने क्यूं जानबूझकर नादाँ बना फिरता है.
--अच्छी कविता के लिए बधाई .
aap ne bahut sunder likha hai maa to sab janti hai pr kuchh kahti nahi kar jati hai aur beta///////
maa hi hai jo aesi hai itna tyag koi aur shayad hi kar sakta hai
mujhe aap ki kavita bahut achchhi lagi
rachana
माँ सब कुछ जानती है और अंत तक सहारा देना माँ का काम है पुत्र किसी भी तरह की संकट में हो माँ का आशीर्वाद सदैव पुत्र की मदद करता है...एक अलग अंदाज में माँ की महिमा बयाँ करती एक सुंदर कविता..धन्यवाद संगीता जी बहुत बहुत बधाई!!!
बहुत दिनों बाद एक सवेदनशील रचना पढ़ी . मुबारकबाद .अब्बास ताबिश की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं
एक मुद्दत से मेरी माँ नहीं सोयी ताबिश,
मैंने एक बार कहा था,मुझे डर लगता है.
स्मितामिश्रा
maa sab jaanti hai..is vishay pr bahut kuch kaha ja sakta hai.. Thoda aur kehti aap to accha lagta
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