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Saturday, December 26, 2009

ओ पुरुष !


नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की आठवीं कविता संगीता सेठी की हैं। संगीता सेठी स्त्रीवादी साहित्य सृजन में सक्रिय है और सौभाग्य से हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में भी लम्बे समय से कविता भेजती रही हैं।

पुरस्कृत कविता- हर नस की रक्षा में हूँ ओ ! पुरुष !

तूने सदा मुझे
अपनी जूती तले दबाया
और मैंने हमेशा
तुम्हारी धमनियों में
बहना चाहा
तू न जाने क्यों
मुझे देखते रहे
बेचारी समझ कर
और बंद करके
उस कोठरी में
वीरता के परचम
फहराते रहे
इतना दंभ था
पुरुष तुझमें
फिर भी तेरा माथा
झुकता रहा
कभी तिलक के बहाने
तो कभी
आर्शीवाद के बहाने
कभी तेरी कलाई
मेरे सामने आ गयी
याचना बन कर
रक्षा की
मैं तेरी रक्षा के लिए
तेरे सिर से लेकर
पाँव तक
बहती रही
और जब पहुंची पाँव तक
तो तू समझ बैठा
मुझे पाँव की चीज़
पर मैं तो
तेरे हर अंग की
हर नस की
रक्षा में हूँ
ओ ! पुरुष!


पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

सुंदर भाव..स्त्री और पुरुष के बीच चलती एक बढ़िया कविता ..नारी का सुंदर और सशक्त चरित्र चित्रण ..कविता बड़े ही सुंदर भाव को समेटे हुए है संगीत जी इस बार हम आपकी कविता के लिए बेहतरीन शब्द का प्रयोग करते है....निसंदेह कविता इसी शब्द की हक़दार है..बहुत बहुत बधाई

वाणी गीत का कहना है कि -

हे नर ....तेरे हर अंग की रक्षा में है नारी ...!!
वाह ...बहुत खूबसूरत कविता ...!!

neelam का कहना है कि -

इतना दंभ था
पुरुष तुझमें
फिर भी तेरा माथा
झुकता रहा
कभी तिलक के बहाने
तो कभी
आर्शीवाद के बहाने
कभी तेरी कलाई
मेरे सामने आ गयी
याचना बन कर
रक्षा की
मैं तेरी रक्षा के लिए
तेरे सिर से लेकर

poori tarah to sahmat nahi hoon par in panktiyon me sabd sanyojan aur bhavon ki mukhrata ekhta hi banti hai ,sangeeta ji ek baat aur sabhi purush dambhi nahi hote .aap
bhi maanti hi hongi .

Anonymous का कहना है कि -

कभी तेरी कलाई
मेरे सामने आ गयी
याचना बन कर
रक्षा की
बहुत सुंदर भाव संगीता जी बधाई!

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुन्दर रचना | बधाई |
अवनीश तिवारी

amita का कहना है कि -

मैं तेरी रक्षा के लिए
तेरे सिर से लेकर
पाँव तक
बहती रही
और जब पहुंची पाँव तक
तो तू समझ बैठा
मुझे पाँव की चीज़
पर मैं तो
तेरे हर अंग की
हर नस की
रक्षा में हूँ
ओ ! पुरुष!

bahut sunder rachna hai badhai

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