उपेन्द्र कुमार की एक कविता
उपेन्द्र कुमार हिन्दी के ऐसे कवि हैं, जो साहित्य की मुख्यधारा में रहे लेकिन उनका मूल्यांकन कम हुआ। वे पानी में प्यासी मछली की तरह रहे हैं। बुद्ध ने रोहिणी नदी के जल बँटवारे को लेकर कोलियों और शाक्यों के बीच चलने वाली लड़ाइयों को जब देखा और उनके बीच मध्यस्थ के रूप में गये तो एक सवाल किया- पानी ज्यादा मूल्यवान है या ख़ून? दोनों ने ख़ून को ज्यादा मूल्यवान माना। लेकिन दोनों समुदायों की तक़लीफ़ों को देखकर उन्होंने एक पद कहा जिसका भावार्थ था- सीमित जल में तड़पती इन मछलियों को देखकर मेरा हृदय करूणा से भर उठा। दरअस्ल उपेन्द्र के आसपास भी साहित्य के तालाब के सीमित जल की कुछ मछलियाँ थीं, जिनको देखकर उनका हृदय करूणा से भर उठता था। वे नहीं चाहते थे कि मछलियाँ उनका मूल्यांकन करें। सो, वे उनको चारा खिलाते रहे। लेकिन अपनी भावनाओं, तरंगों और विचारों को चुपचाप शब्दों में व्यक्त करते रहे। उनके भीतर एक सजग और संवेदनशील कवि लगातार मौज़ूद रहा है, जो अनेक सीमांतों को तोड़कर जनसामान्य के दुखदर्द तक पहुँचता रहा है। प्रस्तुत है उनकी एक कविता ‘सत्तू’-------
उपेन्द्र कुमार हिन्दी के ऐसे कवि हैं, जो साहित्य की मुख्यधारा में रहे लेकिन उनका मूल्यांकन कम हुआ। वे पानी में प्यासी मछली की तरह रहे हैं। बुद्ध ने रोहिणी नदी के जल बँटवारे को लेकर कोलियों और शाक्यों के बीच चलने वाली लड़ाइयों को जब देखा और उनके बीच मध्यस्थ के रूप में गये तो एक सवाल किया- पानी ज्यादा मूल्यवान है या ख़ून? दोनों ने ख़ून को ज्यादा मूल्यवान माना। लेकिन दोनों समुदायों की तक़लीफ़ों को देखकर उन्होंने एक पद कहा जिसका भावार्थ था- सीमित जल में तड़पती इन मछलियों को देखकर मेरा हृदय करूणा से भर उठा। दरअस्ल उपेन्द्र के आसपास भी साहित्य के तालाब के सीमित जल की कुछ मछलियाँ थीं, जिनको देखकर उनका हृदय करूणा से भर उठता था। वे नहीं चाहते थे कि मछलियाँ उनका मूल्यांकन करें। सो, वे उनको चारा खिलाते रहे। लेकिन अपनी भावनाओं, तरंगों और विचारों को चुपचाप शब्दों में व्यक्त करते रहे। उनके भीतर एक सजग और संवेदनशील कवि लगातार मौज़ूद रहा है, जो अनेक सीमांतों को तोड़कर जनसामान्य के दुखदर्द तक पहुँचता रहा है। प्रस्तुत है उनकी एक कविता ‘सत्तू’-------
सत्तू
कोशल और मगध के
घुड़सवारों
और पालकीयुत वाहनों के
अवशेष
चाहे न हों
आज भी पूर्व की
यात्राओं का अपूर्व
विषय है राजनीति
राजनीति से ऊपर भी
कुछ है
और वह है सत्तू
जिसकी सजी है आज भी
मौके की जगह
सड़कों के किनारे
दूकानें
तिकोनी
छोटी पर परचम टिकाये
हरी मिर्च
खींचती है ध्यान
बैठें हैं
ज़मीं पर ही
सन्नद्ध
आस्वादक
पूरब में सबसे सहज
सबसे लुभावना
कैसेट का गाना
सत्तू का खाना
अनाज को भुनाना पीसना
सही अनुपात में मिलाना
कला है वैसी ही
जैसे पंच सितारा होटल में
खाना बनाना
अथवा
बनाना ही क्यों
ठीक-ठीक नमक पानी मिलाना
कायदे से सानना
चॉप-स्टिक या काँटे छुरी द्वारा
खाने से कमतर कला नहीं
हाथ से सत्तू खाना
भले ही हो हुसैन की
कामकला से लेकर
चित्रकला तक के
प्रशंसक और कलाकार
माने या न माने
मानते हैं इसे सच
भड़-भूजे से चक्की तक की
सत्तू की यात्रा के जानकार
और बड़े -बड़े कलाकार
जिनमें शामिल हैं--
रामू लोहार
भोलू चर्मकार
दमड़ी बढ़ई
और सरजू कुम्हार
ऐसी यात्राओं में
कभी-कभी तो सत्तू
आ बैठता है एकदम बगल में
किसी पोटली में बँधा
किसी झोली में ठुँसा
अब बौड़म जैसा
सवाल नहीं दागना है
कि पोटली में बँधा है सत्तू ही
कैसे पता
अरे भाई!
ताज़ा पिसे सत्तू की सोंधी खुशबू
कभी कैद हो सकती है क्या
किसी पोटली या एयर बैग में
सत्तू को
केवल सत्तू
समझने वालों के लिए
जरूरी है जानना
कि सत्तू का भी
अपना एक इतिहास है
गौरवशाली और महान
मगध साम्राज्य जैसा
स्वाद लाज़वाब
पौष्टिकता बेहिसाब
न बर्तन-बासन की खटपट
न चूल्हे-चौके की तक़रार
न पकाने का झंझट
न पानी
न उबाल
थोड़ा नमक
और हरी मिर्च हो तो बात ही क्या
बस
गमछे में ही साना
और खा लिया
निर्विघ्न
सत्तू के इन्हीं गुणों ने
बना डाला था इसे
सर्वोत्तम मार्शल फ़ूड
और मगध साम्राज्य की सेना
इसी के भरोसे निकलती थी
अपने विजय अभियानों पर
बिना सत्तू
जहाँ मुश्किल है गरीब का खाना
वहीं यह भी सच है
कि नहीं कर सकते आप शामिल
सत्तू को शाही दावतों में
परंतु प्रत्येक शाही तामझाम
चाहे वह प्रजातंत्र का ही क्यों न हो
निश्चय ही टिका होता
सत्तू खानेवालों पर
सत्तू पर पले पेटों का ही दम है
जो दौड़ता चला जाता है
दहकते सूरज की ओर
फाँदता चला जाता है
ठिठुरते कोहरे की दीवारों के पार
मचाता रहता है घमासान
करता है जीना आसान
सत्तू की प्रशंसा
प्रशंसा है इन्हीं करोड़ों की
जिनके लिए सत्तू
महज साधन नहीं है
भूख मिटाने का
सत्तू ब्रह्म है
राम राज्य का
यथार्थ है और
गारंटी है
कि कमजोर आदमी
न केवल रहेंगे जिन्दा
तमाम अभावों के बरक्स
वरन जीतेंगे
आनेवाले एक दिन
अपनी तमाम हारी हुई लड़ाइयाँ
और उसी दिन लड़ना पड़ेगा
फिर से
मामूलीपन के वेश में
असाधारण संग्राम
सत्तू की पक्षधरता में।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
उपेन्द्र कुमार जी का परिचय पढ़ा और किंचित मात्र उनके बारे में जाना "जो साहित्य की मुख्यधारा में रहे लेकिन उनका मूल्यांकन कम हुआ। वे पानी में प्यासी मछली की तरह रहे हैं।" - कोई बात नहीं.
आपकी कविता ने इस तथ्य को बौना साबित कर दिया.
"गारंटी है
कि कमजोर आदमी
न केवल रहेंगे जिन्दा
तमाम अभावों के बरक्स
वरन जीतेंगे
आनेवाले एक दिन
अपनी तमाम हारी हुई लड़ाइयाँ"
वाह वाह, कहाँ से शुरू और कहाँ पर ख़त्म. ज्ञानवर्धक, संदेशों का पिटारा लिए यह रचना मेरे लिए तो अद्भुत और अविस्मरणीय है. उपेन्द्र जी आपकी लेखनी को सादर नमन और हिंद युग्म का इस रचना के प्रस्तुतीकरण के लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार.
आह सत्तू! वाह सत्तू!
घुघूती बासूती
ाम आदमी की कहानी कहती सुन्दर अभिव्यक्ति। उपेन्द्र जी का परिचय जान कर बहुत खुशी हुई उन्हें बहुत बहुत बधाई। आपका धन्यवाद्
सत्तू कि यात्रा बहुत ही सोंधी रही अबुत ही अच्छी लगी यह कविता जीवन के सत्य जैसी |
बधाई
ऐसे विषय वस्तु पढ़ने को बहुत कम मिलते है..सत्तू की पक्ष निहित कविता बहुत बढ़िया लगी..उपेंद्र जी की लेखनी को नमन..
यह सोचना कि कोई सत्तू जैसे विषय पर भी इस तरह की कविता लिख सकता है, खुद में हीं एक साहस का काम है। उपेन्द्र जी, इस रचना के बारे में क्या कहूँ... सत्तू के दम पर बहुतों को आपने कटघरे में उतार दिया है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
बहुत सुन्दर सार्थक ह्रदय्स्पर्शी रचना । ग्यान वर्धक सन्देश , सामाज़िक सरोकार युक्त, इतिहास से जोडती हुई , भविष्य का सन्देश देती हुई ।
गमछे में ही साना
और खा लिया
निर्विघ्न
वाह सतू की महिमा...बहुत सुन्दर रचना..उपेन्द्र जी बहुत बधाईया!
Sattu ka ek pakshdhar main bhi hoon...mera to naam aur kaam dono 'sattu' se juda hai. Upendra ji, nishint rahiye..Sattu ab poori duniya ke sar par sawaar hoone wala hai...tanik naya FOOD LAWS lago to hoone dijiye....
Ye zaroor hai ki tab chinese, japanese, Korean Sattu...dilchasp packing mein uplabdh hooga..aur naam bhi hooga kuch..."Instant Khana"
मुझे लगता है कि सत्तू बिहारी और पूर्वांचली विश्वास का भी प्रतीक है। जब मैं गाँव से दिल्ली के लिए चलने लगता हूँ तो मेरी माँ कुछ और देने से पहले कहती है कि बाबू सतुआ ले जइबऽ का। मैं समझता हूँ कि माँ को लगता हूँ कि मिलावट के इस दौर में कम से कम अपने प्रतीक तो शुद्ध रहें।
उपेन्द्र जी सत्तू की ताकत को दुनिया के सामने रखने के लिए बधाई के साथ धन्यवाद देना चाहूंगा . मगघ और कोशल साम्राज्य के बिस्तार में इस मार्शल फ़ूड से हमें अभिब्यक्तकराने वाले पहले ब्यक्ति हैं.आज भी वही सत्तू बिहार और उ.प . के गरीब श्रम जीवी लोगों को पोषित कर देल्ही, मुंबई , और कोल्कता जैसे शहरों की सड़कें और आलिशान इमारतें बनाने का श्रेय ले सकता है. सत्तू केवल सात्विक ही नहीं राजसी और तामसी भोजन भी बन चुका है .
नमक पानी ही में क्यों , घी चीनी और दुद्ध में सना 'घेन्वाडा' मुझे याद है.सत्तू भरा पराठा की मांग मेरे पंजाबी दोस्त मेरे घर करते हैं. सत्तू भरी लिटी को फूटेहरी कहते हैं . कुछ लोगों का कहना है की फूटे हरी नाम इसका इस लिए पडा क्योकि इसे पाने के लिए हरी लोग (देवता लोग ) आपस में लड़ पड़े .
'पंचअनजा सत्तू ' आज भी मेरी पत्नी भारत से अमेरिका लाती हैं.
सोंधी गंध मन मस्तिष्क तक पहुचने के लिए धन्यवाद. और ऐसी कवितायों की इन्तजार रहेगी .
सादर
डा . कमल किशोर सिंह , रिवर हेड , न्यू योर्क.
कमल जी
सत्तू पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
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