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Saturday, January 09, 2010

अफ़सोस के लिये कुछ शब्द


प्रतियोगिता के पाँचवें पायदान की कविता के रचनाकार अरविंद श्रीवास्तव बिहार मे मधेपुरा से तअल्लुक रखते हैं। २ जनवरी १९६४ को जन्मे अरविंद जी ने इतिहास तथा राजनीति शास्त्र मे स्नातकोत्तर तथा तत्पश्चात पी एच डी की उपाधि हासिल की है। इनके दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं तथा हंस, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, वसुधा, साक्षात्कार इत्यादि प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं व समाचार पत्रों मे कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। अरविंद जी ’कोसी खबर’ तथा ’जनशब्द’ नामक दो ब्लॉगों का संचालन भी करते हैं। हिंदयुग्म मे यह उनकी प्रथम कविता है।

पुरस्कृत कविता: अफ़सोस के लिये कुछ शब्द

हमें सभी के लिए बनना था
और शामिल होना था सभी में

हमें हाथ बढ़ाना था
सूरज को डूबने से बचाने के लिए
और रोकना था अंधकार से
कम से कम आधे गोलार्द्ध को

हमे बातें करनी थीं पत्तियों से
और तितलियों के लिए इकट्ठा करना था
ढेर सारा पराग

हमें बचाना था नारियल के लिए पानी
और चूल्हे के लिए आग

पहनाना था हमें
नग्न होते पहाड़ों को
पेड़ों का लिबास
और बचानी थी हमें
परिन्दों की चहचहाहट
हमें रहना था
अनार में दाने की तरह
मेंहदी में रंग
और गन्ने में रस बनकर

हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगश्ती भरे दिनो सा
और दौड़ना था लहू बनकर
सबों की नब्ज में
लेकिन अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये
जैसा करना था हमें !


पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

लेकिन अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये
जैसा करना था हमें
बहुत सुन्दर रचना है । अरविन्द जी को बधाई

Anonymous का कहना है कि -

मानवीय मूल्यों और पर्यावरण के प्रति सजग रहने का सन्देश देती सटीक और सुन्दर रचना. अरविंद श्रीवास्तव जी को बधाई और धन्यवाद.

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

आधुनिकता की होड़ में इस कदर डूबे जा रहे है की अब कहा से यह सब याद करे यह मनुष्य..संदेश से ओट-प्रोत एक बेहतरीन कविता..बधाई अरविंद जी !!!

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

एक बेहतरीन रचना |
बधाई |


अवनीश तिवारी

Unknown का कहना है कि -

पहनाना था हमें
नग्न होते पहाड़ों को
पेड़ों का लिबास
आज की जरुरत को बखूबी निभाया कविता के रुप मे अरविन्द जी को बधाई!

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

लेकिन अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये
जैसा करना था हमें !
.. अच्छे भाव जगाती कविता के लिए बधाई .

rachana का कहना है कि -

पहनाना था हमें
नग्न होते पहाड़ों को
पेड़ों का लिबास
और बचानी थी हमें
परिन्दों की चहचहाहट
हमें रहना था
अनार में दाने की तरह
मेंहदी में रंग
और गन्ने में रस बनकर
sabse pahle to aap ko panchve sthan ke liye bahut bahut badhai .
aap ki kavita ke bare me kya kahun is vishya pr itni sunder kavita padhne ko bahut hi kam milti hai
badhai
saader
rachana

avenindra का कहना है कि -

behatareen mujhe is manch pe aake bahut khushi hui hai yahan wo sab kuch hai jo mere din ko sukoon de sake ek se ek rachanaye man praffullit kar deti hain

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