तेरी बेसबब हँसी
माहौल बन गई,
सारी बलाओं की
माखौल बन गई..
रूत उभरी तेरे गालों से
"डिंपल" खुदे गुलज़ारों से
रोगन-भरे कचनारों से
अधरों के दो रखवालों से...
रूत छाई तो कुछ यूँ हुआ,
हर सब्र हीं धूँ धूँ हुआ,
पतझड़ का सर कलम करके
दिल से अलग अलम करके
हम सहर नई जगा आए,
कलम वसंत की लगा आए....
तेरी बेसबब हँसी
एक ढब हो गई,
सज़दों से भी परे
मज़हब हो गई,
खुतबे न माँगे जो
ऐसा रब हो गई,
मेरे लिए मेरे होने का
मतलब हो गई.....
-विश्व दीपक
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
रूत छाई तो कुछ यूँ हुआ,
हर सब्र हीं धूँ धूँ हुआ,
पतझड़ का सर कलम करके
दिल से अलग अलम करके
हम सहर नई जगा आए,
कलम वसंत की लगा आए....
----नई राह चलते ही नई सहर जग जाय और वसंत की कलम लग जाय इससे अच्छा और क्या हो सकता है.... अच्छी कविता के लिए बधाई.
रूत उभरी तेरे गालों से
"डिंपल" खुदे गुलज़ारों से
रोगन-भरे कचनारों से
अधरों के दो रखवालों से...
सुन्दर चित्रण!
बधाई!
तेरी बेसबब हँसी
माहौल बन गई,
सारी बलाओं की
माखौल बन गई..
एक खूबसूरत कविता!!!
पतझड़ का सर कलम करके
दिल से अलग अलम करके
तेरी बेसबब हँसी
एक ढब हो गई,
सज़दों से भी परे
मज़हब हो गई,
खुतबे न माँगे जो
ऐसा रब हो गई,
मेरे लिए मेरे होने का
मतलब हो गई....
कविता क्या ये तो प्यारी सी रूहानी ग़ज़ल हो गई. विश्व दीपक जी बधाई. सर्द मौसम और नए साल में नए अहसास कराने के लिए आभार.
तेरी बेसबब हँसी
एक ढब हो गई,
सज़दों से भी परे
मज़हब हो गई,
खुतबे न माँगे जो
ऐसा रब हो गई,
मेरे लिए मेरे होने का
मतलब हो गई....
वाह तारीफ करूँ क्या उसकी जिसने इसे शब्दों से सजाया बधाई सुन्दर कविता के लिये
तेरी बेसबब हँसी
एक ढब हो गई,
सज़दों से भी परे
मज़हब हो गई,
खुतबे न माँगे जो
ऐसा रब हो गई,
मेरे लिए मेरे होने का
मतलब हो गई.....
kya hi pyare shbd sunder bhav
bahut achchha likha hai aap ne
saader
rachana
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