मई महीने की प्रतियोगिता में संगीठा सेठी की कविता 'मानव के अश्रु स्रोत' जजों द्वारा अनुशंसित हुई थी। जुलाई महीने की प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता को जजों ने काफ़ी पसंद किया।
कविता- आतंक किसी कोख में नहीं पलता
कौन कहता है
भ्रूण हत्या पाप है?
चल जाता पता
गर माँ को
कि पल रहा है
कोख में आतंक...
तो कर देती वो
खुद ही
उस भ्रूण की हत्या...
बताओ क्या तुम
ठहरा पाते
उसे दोषी?
कह दो
उन वैज्ञानिकों से....
किये हैं ईजाद
जिन्होंने
भ्रूण जानने के
उपकरण.....
ईजाद करें अब
कोख में पलने वाले
आतंकवादी भ्रूण...
पर कहाँ?
आतंक
किसी कोख में
नहीं पलता।
माँ तो क्या
माँ के
साए से भी
दूर.......
ईर्ष्या-द्वेष की
धरती पर.....
जहां
ममता नहीं
घृणा बरसती है...
हाँ ! आतंक
किसी कोख में नहीं पलता
प्रथम चरण मिला स्थान- पच्चीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- सोलहवाँ
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut accha
Avaneesh
बेहद सुंदर विचार से भरा आपकी कविता एक संदेश देती है...
बधाई...
मार्मिक रचना ने गागर में सागर भर दिया .बधाई .
बहुत ही शानदार कविता. लेकिन मुझे लगता है कि शब्दों पर थोडा और ध्यान देना चाहिए था. यह पंक्तियाँ अच्छी लगीं.
घृणा बरसती है...
हाँ ! आतंक
किसी कोख में नहीं पलता
सच आतंक किसी कोख में नहीं पलता ..पालती हैं परिस्थितियां ..!!
बहुत मार्मिक रचना ..!!
bahut shaandar kavita.
badhai
haardik badhayee...
गहराई लिये हुये बहुत ही सुन्दर भावों से युक्त रचना के लिये बधाई
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