दोहा गाथा सनातन में अब तक हम दोहोंके २१ प्रकारों से परिचित हो चुके हैं. आज तथा अगली कड़ी में दो ऐसे प्रकारों की चर्चा है जो दोहा के सम चरणान्त में गुरु-लघु की सामान्यतः मान्य शर्त का पालन नहीं करते. इन में गुरु मात्रा क्रमशः १ तथा ० होती है.
आइये, हम परिचित हों उदर दोहा से-
लघु-गुरु छियालिस-एक मिल, दोहा रचते मीत.
गुरु-लघु सम चरणान्त की, खंडित होती रीत..
'उदर' न देखे रात-दिन, चाहे केवल तृप्ति.
नियम-भंग हो भले ही, चाहे नहीं अतृप्ति..
छ्यालिस लघु गुरु एक ले, दोहा उदर सुनाम.
सुषमा सुरभि बिखेरता, अपनी ललित-ललाम..
सूत्र: उदर १ गुरु + ४६ लघु = ४७ अक्षर
उदाहरण:
१.
घट-घट नित अघटित घटित, लख धक्-धक् मन मगन.
चपल चकित चित चुप 'सलिल', निरख लगन की अगन.- सलिल
२.
भरत-भरत रुचिकर लवण, उदर रहत नित तरल.
अधिक चखत उलटत सभी, लवण बनत जब गरल. -आचार्य रामदेव लाल 'विभोर'
३.
कदम-कदम अनवरत चल, अनथक नत रख नयन.
कर मधु रस वर्षण 'सलिल', मनहर कह मृदु बयन..
पाठकगण उदर दोहा की रचना करने का प्रयास करें.
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुंदर जानकारी..
हम जैसे नये कवियों के लिए बहुत महत्व रखता है यह ज्ञान.
आचार्य जी का आभार व्यक्त करता हूँ,निरंतर ऐसी जानकारीओं से हमारा ज्ञान बढ़ाते रहे..
आचार्य जी
पाठ में तो हम समझ जाएंगे कि यह उदर दोहा है लेकिन सामान्य रूप से जब बिना गुरु और लघु के दोहा लिखा जाएगा तब उसे अशुद्ध दोहा ही समझा जाएगा। कृपया सभी की जानकारी के लिए मेरे प्रश्न को स्पष्ट करें।
सुन्दर जानकारी के लिये आभार आपकी कलम को सलाम
प्रणाम गुरुदेव,
दो उदर दोहे लिखने का प्रयास किया है:
सुधि-बुधि नहि उछलत फिरत, भटकत फिरें वन-वन
निरखत रहत इधर-उधर, चकित - चकित मृग-नयन.
बढ़त लगन-अगन जब-जब, सरस-भाव भरत मन
अनुपम मन-कमल खिल-खिल, झुकत करत नित नमन.
सलिल जी आपने बहुत ही अच्छी तरह से समझाया. बधाई.
गुरु जी को प्रणाम ,
नई जानकारी के साथ दोहे के प्रकार पता लगे .
आभार .
अजित जी!
आपका कहना सही है. कुछ साहित्यविद दोहे के २१ प्रकारों को ही मान्यता देते हैं किन्तु हिंदी पिंगल की पुस्तकों में २३ प्रकार वर्णित हैं इसलिए यहाँ इन्हें बताना उचित है. आप उपयुक्त समझें तो इसे लिखने का अभ्यास तो कर ही लें, बाद में अन्यत्र लिखें या न लिखें यह आप को ही तय करना है.
शन्नो जी!
उदर दोहा लेखन में आप प्रथम ही नहीं एकमात्र भी हैं. बधाई. मुझे 'खिल-खिल अनुपम मन-कमल' में अधिक प्रवाह मिला.
गुरु जी,
धन्यबाद. मेरे दोहे के तीसरे चरण के शब्दों को आपने सही ढंग से संजो दिया है, और सही भी कहा है आपने. क्योंकि अब इसको पढ़ने से अधिक प्रवाह का अनुभव हो रहा है. आपकी उंगली पकड़ कर ही तो दोहे के संसार में चलना सीखा है. आपकी guidance के बिना मैं कुछ नहीं कर सकती थी और अब भी नहीं.
डगमग-डगमग पग रखे, गुरु ने पकड़ा हाथ
गुरु वचन हैं सर माथे, जब तक मिलता साथ.
आपकी मैं सदैव आभारी हूँ व रहूंगी. दोहे के बारे में और भी कितना कुछ सीखना है लेकिन जो भी अब तक मैं सीख पायी उसका सारा श्रेय आपको जाता है. हर दिन आपको मेरा नमन.
आपकी विनीत शिष्या
शन्नो
अजित जी!
आपके समाधान हेतु 'छंद क्षीरधि' -डॉ. ॐ प्रकाश बरसैंया पृष्ठ ८६ से उदर दोहा संबंधी जानकारी प्रस्तुत है-
'' सूत्र:
उदर एक गुरु छयालिस लघु, पूरे दोहे में रहें.
विषम चरण तेरह कला, सम ग्यारह मात्रा रहें..
उदाहरण:
पद-सँग रज लिपटत विनत, चढ़े पवन-सँग गगन.
जल-सँगदल-दल बनत जब, जलज-सुदल खिल मगन..
टिप्पणी: गगन, मगन को गग्न, मग्न पढें. ऐसे दोहे कम पाए जाते हैं. परिपाटी निभाने के लिए मैंने यह दोहा बना दिया है. ''
आचार्य जी
आपने मेरी जिज्ञासा को समाधान दिया, आभार। आज मैं प्रवास पर जा रही हूँ, वापस 1 सितम्बर को आ पाऊँगी, तभी इस दोहे का अभ्यास करूँगी या फिर सफर में करूँगी। इसके लिए क्षमा चाहती हूँ।
अजित जी,
आपकी शुभ यात्रा हो ! लेकिन please, जल्दी आइयेगा वापस. आपके दोहे और comments के बिना कक्षा में सूना लगेगा. ले दे कर हम कुछ छात्र ही बचे हैं. पूजा जी भी गायब हो जाती हैं अक्सर. मनु जी ने तो इधर से संन्यास ले लिया है, और तो और इन दिनों बेचारे खुद लेथन में फंसे हुए हैं. He doesn't deserve this severe trial (I am talking about ghazal section). खुदा खैर करे.
बहुत ही अच्छे दोहे और उतनी ही अच्छी रहीं साथ में दी गई जानकारी आभार.
अजित जी!
शुभास्ते पन्थानः सन्तु.
शन्नो जी!
कभी गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था 'सवा लाख से एक लडाऊँ...' आप संख्या की चिंता न करें.
आचार्य जी,
उदर दोहे को समझाने हेतु बहुत बहुत आभार .
शन्नो जी को उदर दोहा रचने के लिए हार्दिक बधाई....
आपने याद किया और हम हाज़िर हो गए... :) दर असल, उदर दोहा लिखने का प्रयास कर रहे थे, पर आपकी तरह नहीं रच पाए :(, इसलिए आने में इतनी देर हो गयी....
आदरणीय गुरु जी,
शायद मैं आपके सन्देश का अभिप्राय समझ रही हूँ, और यह जानकर बहुत ख़ुशी हो रही है. इससे मुझे और आत्म-मनोबल मिल रहा है.
और पूजा जी,
आपको कक्षा में पाकर बड़ी ही ख़ुशी हुई. और बधाई के लिये धन्यबाद. आप अपने प्रयास पर जुटी रहें.
गुरु जी,
आपके समक्ष एक और उदर दोहा प्रस्तुत कर रही हूँ:
लिखत उदर कर अति थकत, मन तनिक नहि विचलित
अक्षर लिख कर जुड़त होत, सृजन पल-पल विकसित.
अच्छा प्रयास. पूजा जी के लिए उपहार:
डगमग-डगमग पग पडत, गिर-उठ-चलकर कहत.
टुक रुक-झुक मत रे 'सलिल', लख जल अनथक बहत..
pranaam aachaarya,
kewal haajiri hai bas...
aajkal kahin bahut jyaadaa hi vyast hoon....
balki..
kai jagah.....
shanno ji bataa bhi rahi hain...
:)
मनु जी,
Welcome back, even though it was only your brief 'haajiri'.
And I am sorry that I happened to mention about the fuss going on......you know what....It was only out of sympathy for you as you have been going through such hard times......and my fingers just slipped on the keyboard, but hope you don't mind about it. You know there are sayings:
''सब दिन जात ना एक समाना''
Or
'' Beyond every dark cloud there is a silver lining''
So, cheer up and look forward to the better times ahead.
Hope to see you in the kaksha soon.
मनु जी,
अभी याद आया की कक्षा: दोहा गाथा 16 में अपने गुरु जी ने कहा था की:
दोहा जन-गण मन बसा, सुख-दुख में दे साथ
संकट में संबल बने, बढ़कर थामे हाथ.
तो आप भी बिचार करें इस दोहा के बारे में.
आचार्य जी,
आभारी गुरु आपकी, शुभ दोहा उपहार,
दिव्य, सलोना, मन भावन, अद्भुत शब्द विचार,
आचार्य जी, एक उदर दोहा लिखने का भी प्रयत्न किया है, कृपया इसे भी देख कर बताइये---
अहम् तज, गुरु शरण पकड़, अपरिमित रूप गुरु सम,
निज छवि परिचय जगत कर, पथ जगमग, हरे तम.
अहम् तज, गुरु शरण पकड़, अपरिमित रूप गुरु सम,
निज छवि परिचय जगत कर, पथ जगमग, हरे तम.
वर्तमान रूप में यह श्वान है चूंकि इसमें दो गुरु मात्राएँ 'रू' तथा 'रे' हैं. उदर में केवल एक गुरु चाहिए. 'शरण' के साथ 'पकड़' का प्रयोग इस ओर नहीं चलता. 'शरण' गही, माँगी या दी जाती है अस्तु...
धन्यवाद आचार्य जी
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