अलसुबह
दरवाजे पर दस्तक हुई !
देखा-
सामने यमराज खड़ा है।
मारे डर के घिघ्घी बंध गई
बोला-
अभी तो मैं जवान हूँ
कवि सम्मेलनों का नया-नया पहलवान हूँ
आपको कोई दूसरा दिखा नहीं !
जानते हैं, मैने अभी तक कुछ लिखा नहीं।
क्या गज़ब करते हैं !
कवि क्या बिना लिखे मरते हैं?
यमराज सकपकाया
मेरा परिचय जान घबड़ाया
मैं तुझे नहीं झेल सकता
नर्क में भी, नहीं ठेल सकता
मगर आया हूँ तो खाली हाथ नहीं जाऊँगा
अभी तेरे बालों की कालिमा लिये जा रहा हूँ
भगवान ने आदेश दिया तो फिर आऊँगा !
सुनते ही मैं खुश हो गया
सोचा वाह कितना अच्छा है कि कवि हो गया
बोला-
जा, ले जा, तू भी क्या याद करेगा !
मैं सफेद बालों से ही काम चला लूँगा
स्पेशल हेयर डाई लगा लूँगा।
कुछ वर्षों के बाद
दरवाजे पर फिर दस्तक हुई
खोला, देखा, काँप गया
वही यमराज खड़ा है भांप गया।
हिम्मत जुटा कर बोला-
आइये-आइये
मैंने दो-चार कविता लिखी है
सुनते जाइये
वह सुनते ही रोने लगा
मुझे लगा उसे भी कुछ-कुछ होने लगा।
दुःखी होकर बोला यमराज
मुझे माफ करना कविराज
मैं आना नहीं चाहता
मगर तेरी मौत यहाँ खींच लाती है
पता नहीं आदमी को पहचानने में
भगवान से बार-बार क्यों चूक हो जाती है !
मगर आया हूँ तो खाली हाथ नहीं जाऊँगा
इस बार तेरे आँखों की थोड़ी रोशनी ले जाऊँगा !
मैने कहा
जा, ले जा, मैं चश्में से काम चला लूँगा
मगर फिर आया तो अपनी सारी नई कविता तुझे सुना दूँगा
सुनते ही यमराज भाग गया
इस तरह मेरा भाग्य, फिर जाग गया।
कुछ वर्षों बाद वह फिर आया
अबकी बार मेरे दो दांत उखाड़ ले गया
मैंने तुरंत नकली दांत लगा लिया।
सोचता हूँ
फिर आया तो क्या करूँगा
कौन सा अंग दे उसे संतुष्ट करूँगा !
सोचता हूँ
अब आए तो उसके साथ चल दूँ
हाथ-पैर सलामत रहे तभी जाना अच्छा है
आज बेटा भी तभी तक प्यार करता है
जब तक छोटा बच्चा है।
सुना है
समाज में लाचार जिस्म
परिवार वालों के लिए बोझ होता है
अब कौन उसे ताउम्र प्रेम से ढोता है
उड़ने लगे गगन में रिश्ते जमीन से
डरने लगे प्रमोद अपने प्रवीन से।
सुना है
यहाँ पती, पत्नी को -- पत्नी, पती को -- भाई, भाई को -- बेटा, बाप को
धोखा देता है
किस्मत वालों को ही ईश्वर
सही सलामत जाने का मौका देता है।
सोचता हूँ
अब आये तो चल दूँ।
हाथ-पैर सलामत रहे तभी जाना अच्छा है
आज बेटा भी
तभी तक प्यार करता है
जब तक छोटा बच्चा है।
--देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर,
बधाई!
बेहतरीन कविता...हास्य से गंभीरता की ओर ले कर जाता हुआ यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी..
बधाई!!!
अच्छा लगा ...बधाई
अपने बारे में दूर दृष्टि रखकर लिखी हुई सुंदर हास्य कविता.
शुरुआत पढ़कर लगा कि आप शायद कोई हास्य-व्यंग्य की कविता कहने जा रहे हैं, पर बाद में जीवन की एक कड़वी सच्चाई को सामने ले आये. अक्सर अपने बुजुर्गों को कहते सुनती हूँ कि हाथ पैर सलामत रहते ही जीवन से मुक्ति मिले तो कभी किसी पर बोझ पर बनकर नहीं जीना पड़ेगा, और यही सच्चाई है.
बहुत बढ़िया लिखा . बधाई.
hasya ar gambhirta ka put liye ek achhi kavita ke liye badhai.
Dil Khush kar diya apne. Jindgi ki sacchai Dikha di. Dhanyawad.
भाई बहुत बढ़िया.
हाथ-पैर सलामत रहे तभी जाना अच्छा है
आज बेटा भी
तभी तक प्यार करता है
जब तक छोटा बच्चा है।
समाज में लाचार जिस्म
परिवार वालों के लिए बोझ होता है
अब कौन उसे ताउम्र प्रेम से ढोता है
उड़ने लगे गगन में रिश्ते जमीन से
डरने लगे प्रमोद अपने प्रवीन से।
वाह देवेन्द्र जी ! हास्य भी गम्भीरता भी !
हंसी हंसी में दुनिया की सच्चाई बता दी ..!!
ये तो कोई बात ही नहीं हुई ,पहले तो यमराज को बाल दिए ,फिर दांत दिए फिर नजर भी दे दी ,अब जब किसी काम के नहीं बचे ,जब यमराज भी ले जाने से दर रहा है ,तो बच्चों का प्यार याद आने लगा ,इंसान भी कितना स्वार्थी है ,(यह तो थी हसने हसाने की बात )
ब्रिधावास्था वाकई एक कड़वा ,कठोर सच है हमारे सामने ,अगर हर इंसान ये समझने लगे की ये तो उसके साथ भी होना है तो शायद इस उम्र के लोगों की लाचारी कुछ कम हो सकती है ,कल मिलाकर ठीक -ठाक रचना
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
प्रशंसा के लिए सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद।
नीलमजी ऐसा मत कहिए हम अभी भी आदमी हैं काम के ---
दरअसल यह कविता इस दर्शन पर आधारित है कि यमराज अचानक से नहीं ले जाते ---आने से पहले सभी का व्दार (कुछ दुर्भाग्यशाली व्यक्तियों को छोड़कर) बार-बार खटखटाते हैं और सचेत करते हैं कि अब बस, अब तो संभल जाओ लेकिन हम हैं कि किसी न किसी बहाने से उनकी चेतावनी को अनदेखा करते जाते हैं।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
जीवन की हकीकत है .अति सुंदर भाव .बधाई
प्रारंभ में कविता पढ़ के हसी आरही थी पर जैसे जैसे आगे पढ़ते गए कड़वी सच्चाई सामने आती गई .बहुत सुंदर मोड़ दिया कविता को
बधाई
रचना
देवेन्द्र पाण्डेय जी,
बहुत ही अच्छी लगी ये रचना...आजकल की सच्चाई को प्रदर्शित करती रचना....
davendra sahab
acchi rachna lagi. padh kar accha laga.
aapke srimukh se sunne ka mauka milta to sukh aur badh jata.
saader
हा हा हा मजा आ गया |
अवनीश तिवारी
बड़े ही हल्के फुल्के मूड से पढ़ना शुरू किया था जी
मगर
मुझे माफ करना कविराज
मैं आना नहीं चाहता
मगर तेरी मौत यहाँ खींच लाती है
पता नहीं आदमी को पहचानने में
भगवान से बार-बार क्यों चूक हो जाती है !
यहाँ पर आकर अचानक ही खयालात नया मोड़ ले गए...
और ही कहीं को मुड गया मूड ...
बहुत मार्मिक अंत किया है आपने कविता का....!
It`s a poem telling the truth....all relations sustain until one has "hath pair salamat"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)