फटाफट (25 नई पोस्ट):

Tuesday, August 25, 2009

बोझ


अलसुबह
दरवाजे पर दस्तक हुई !
देखा-
सामने यमराज खड़ा है।

मारे डर के घिघ्घी बंध गई
बोला-
अभी तो मैं जवान हूँ
कवि सम्मेलनों का नया-नया पहलवान हूँ
आपको कोई दूसरा दिखा नहीं !
जानते हैं, मैने अभी तक कुछ लिखा नहीं।
क्या गज़ब करते हैं !
कवि क्या बिना लिखे मरते हैं?

यमराज सकपकाया
मेरा परिचय जान घबड़ाया
मैं तुझे नहीं झेल सकता
नर्क में भी, नहीं ठेल सकता
मगर आया हूँ तो खाली हाथ नहीं जाऊँगा
अभी तेरे बालों की कालिमा लिये जा रहा हूँ
भगवान ने आदेश दिया तो फिर आऊँगा !

सुनते ही मैं खुश हो गया
सोचा वाह कितना अच्छा है कि कवि हो गया
बोला-
जा, ले जा, तू भी क्या याद करेगा !
मैं सफेद बालों से ही काम चला लूँगा
स्पेशल हेयर डाई लगा लूँगा।

कुछ वर्षों के बाद
दरवाजे पर फिर दस्तक हुई
खोला, देखा, काँप गया
वही यमराज खड़ा है भांप गया।

हिम्मत जुटा कर बोला-
आइये-आइये
मैंने दो-चार कविता लिखी है
सुनते जाइये
वह सुनते ही रोने लगा
मुझे लगा उसे भी कुछ-कुछ होने लगा।
दुःखी होकर बोला यमराज
मुझे माफ करना कविराज
मैं आना नहीं चाहता
मगर तेरी मौत यहाँ खींच लाती है
पता नहीं आदमी को पहचानने में
भगवान से बार-बार क्यों चूक हो जाती है !

मगर आया हूँ तो खाली हाथ नहीं जाऊँगा
इस बार तेरे आँखों की थोड़ी रोशनी ले जाऊँगा !

मैने कहा
जा, ले जा, मैं चश्में से काम चला लूँगा
मगर फिर आया तो अपनी सारी नई कविता तुझे सुना दूँगा
सुनते ही यमराज भाग गया
इस तरह मेरा भाग्य, फिर जाग गया।
कुछ वर्षों बाद वह फिर आया
अबकी बार मेरे दो दांत उखाड़ ले गया
मैंने तुरंत नकली दांत लगा लिया।

सोचता हूँ
फिर आया तो क्या करूँगा
कौन सा अंग दे उसे संतुष्ट करूँगा !

सोचता हूँ
अब आए तो उसके साथ चल दूँ
हाथ-पैर सलामत रहे तभी जाना अच्छा है
आज बेटा भी तभी तक प्यार करता है
जब तक छोटा बच्चा है।

सुना है
समाज में लाचार जिस्म
परिवार वालों के लिए बोझ होता है
अब कौन उसे ताउम्र प्रेम से ढोता है
उड़ने लगे गगन में रिश्ते जमीन से
डरने लगे प्रमोद अपने प्रवीन से।

सुना है
यहाँ पती, पत्नी को -- पत्नी, पती को -- भाई, भाई को -- बेटा, बाप को
धोखा देता है
किस्मत वालों को ही ईश्वर
सही सलामत जाने का मौका देता है।

सोचता हूँ
अब आये तो चल दूँ।

हाथ-पैर सलामत रहे तभी जाना अच्छा है
आज बेटा भी
तभी तक प्यार करता है
जब तक छोटा बच्चा है।

--देवेन्द्र कुमार पाण्डेय

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

20 कविताप्रेमियों का कहना है :

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' का कहना है कि -

बहुत सुन्दर,
बधाई!

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

बेहतरीन कविता...हास्य से गंभीरता की ओर ले कर जाता हुआ यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी..
बधाई!!!

Ravi Mishra का कहना है कि -

अच्छा लगा ...बधाई

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अपने बारे में दूर दृष्टि रखकर लिखी हुई सुंदर हास्य कविता.

Pooja Anil का कहना है कि -

शुरुआत पढ़कर लगा कि आप शायद कोई हास्य-व्यंग्य की कविता कहने जा रहे हैं, पर बाद में जीवन की एक कड़वी सच्चाई को सामने ले आये. अक्सर अपने बुजुर्गों को कहते सुनती हूँ कि हाथ पैर सलामत रहते ही जीवन से मुक्ति मिले तो कभी किसी पर बोझ पर बनकर नहीं जीना पड़ेगा, और यही सच्चाई है.

बहुत बढ़िया लिखा . बधाई.

Anonymous का कहना है कि -

hasya ar gambhirta ka put liye ek achhi kavita ke liye badhai.

Kamlakant Shukla का कहना है कि -

Dil Khush kar diya apne. Jindgi ki sacchai Dikha di. Dhanyawad.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

भाई बहुत बढ़िया.

हाथ-पैर सलामत रहे तभी जाना अच्छा है
आज बेटा भी
तभी तक प्यार करता है
जब तक छोटा बच्चा है।

Harihar का कहना है कि -

समाज में लाचार जिस्म
परिवार वालों के लिए बोझ होता है
अब कौन उसे ताउम्र प्रेम से ढोता है
उड़ने लगे गगन में रिश्ते जमीन से
डरने लगे प्रमोद अपने प्रवीन से।
वाह देवेन्द्र जी ! हास्य भी गम्भीरता भी !

वाणी गीत का कहना है कि -

हंसी हंसी में दुनिया की सच्चाई बता दी ..!!

neelam का कहना है कि -

ये तो कोई बात ही नहीं हुई ,पहले तो यमराज को बाल दिए ,फिर दांत दिए फिर नजर भी दे दी ,अब जब किसी काम के नहीं बचे ,जब यमराज भी ले जाने से दर रहा है ,तो बच्चों का प्यार याद आने लगा ,इंसान भी कितना स्वार्थी है ,(यह तो थी हसने हसाने की बात )
ब्रिधावास्था वाकई एक कड़वा ,कठोर सच है हमारे सामने ,अगर हर इंसान ये समझने लगे की ये तो उसके साथ भी होना है तो शायद इस उम्र के लोगों की लाचारी कुछ कम हो सकती है ,कल मिलाकर ठीक -ठाक रचना

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

प्रशंसा के लिए सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद।
नीलमजी ऐसा मत कहिए हम अभी भी आदमी हैं काम के ---
दरअसल यह कविता इस दर्शन पर आधारित है कि यमराज अचानक से नहीं ले जाते ---आने से पहले सभी का व्दार (कुछ दुर्भाग्यशाली व्यक्तियों को छोड़कर) बार-बार खटखटाते हैं और सचेत करते हैं कि अब बस, अब तो संभल जाओ लेकिन हम हैं कि किसी न किसी बहाने से उनकी चेतावनी को अनदेखा करते जाते हैं।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Manju Gupta का कहना है कि -

जीवन की हकीकत है .अति सुंदर भाव .बधाई

rachana का कहना है कि -

प्रारंभ में कविता पढ़ के हसी आरही थी पर जैसे जैसे आगे पढ़ते गए कड़वी सच्चाई सामने आती गई .बहुत सुंदर मोड़ दिया कविता को
बधाई
रचना

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' का कहना है कि -

देवेन्द्र पाण्डेय जी,
बहुत ही अच्छी लगी ये रचना...आजकल की सच्चाई को प्रदर्शित करती रचना....

Akhilesh का कहना है कि -

davendra sahab
acchi rachna lagi. padh kar accha laga.
aapke srimukh se sunne ka mauka milta to sukh aur badh jata.

saader

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

हा हा हा मजा आ गया |

अवनीश तिवारी

manu का कहना है कि -

बड़े ही हल्के फुल्के मूड से पढ़ना शुरू किया था जी
मगर
मुझे माफ करना कविराज
मैं आना नहीं चाहता
मगर तेरी मौत यहाँ खींच लाती है
पता नहीं आदमी को पहचानने में
भगवान से बार-बार क्यों चूक हो जाती है !

यहाँ पर आकर अचानक ही खयालात नया मोड़ ले गए...
और ही कहीं को मुड गया मूड ...
बहुत मार्मिक अंत किया है आपने कविता का....!

prem ballabh pandey का कहना है कि -

It`s a poem telling the truth....all relations sustain until one has "hath pair salamat"

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)