अनुज शुक्ला की एक कविता हम पिछले महीने भी प्रकाशित कर चुके हैं। इस बार इनकी कविता बारहवें स्थान पर आई है।
कविता- औरत होने का मतलब
दूर करी जाती है हमेशा
अपनी व्यक्तिगत पहचान से,
दबाई जाती है हमेशा, कि पुरुष के-
अहं से कई गुना ऊपर
न उठ जाये
वहाँ तक जहाँ से
सम्हाली जाती हैं शासन और प्रशासन की लगाम
एक चुप्पी, शख्शियत ऐसी जो उम्र बिता देती है
बस एक अदद नाम के लिये
कभी लपोसरा की बेटी
फिर हरिचरना की मेहर
और अन्त तक रह जाती है
सिर्फ़ कलुआ-मलुआ की महतारी......
नहीं उतार पाती आदिम युगीन केचुल
कुछ करना होगा
खुद तुमको,
खुद तुम्हारे लिये
ढूँढ़ना ही होगा तुम्हें
औरत होने का मतलब?
प्रथम चरण मिला स्थान- सोलहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- बारहवाँ
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
आज ९०%नारी की यही दशा है .मैथलीशरण जी की कविता है -
अबला जीवन हाय
तेरी यही कहानी
आंचल में है दूध
आँखों में पानी .बधाई .
बेहद सम्वेदनशील रचना .......औरत के लिये जो आपने कविता लिखी है ......बहुत उर्जा सम्प्रेशित कर रही है .......बहुत बहुत आभार
त्याग की प्रतिरूप होती है औरत,
औरत के बलिदान और महानता की गाथा व्यक्त करता सुंदर भाव पूर्ण कविता..
बधाई!!!
pite pitaae wichaar, koi naya pan nahi. aaj kal har doosri kavita gender issue par isi tareh ki hoti hai.yeh bhi faishon hai.
haan, nirnaayak zaroor pighal jaate hain.
shukr hai ke jyaadaa lambi kavitaa nahi thi...
padhi gayee...
:)
acchi rachna ke liye badhai
एक चुप्पी, शख्शियत ऐसी जो उम्र बिता देती है
बस एक अदद नाम के लिये
शुक्ला जी ! सच कहा आपने !
बात अच्छी कही लेकिन कहने में कोई नया ढंग नहीं लगा. यह लाइन कुछ ठीक लगी.
दूर करी जाती है हमेशा
अपनी व्यक्तिगत पहचान से,
दबाई जाती है हमेशा, कि पुरुष के-
अहं से कई गुना ऊपर
न उठ जाये
वहाँ तक जहाँ से
सम्हाली जाती हैं शासन और प्रशासन की लगाम
दूर करी जाती है हमेशा
अपनी व्यक्तिगत पहचान से,
बहुत ही गहरे भावों के साथ संवेदनशील प्रस्तुति के लिये आभार्
shukla ji
is visay per itna likha ja chuka hai aur ab bhi itna likha ja raha hai ki yeh vimersh hi rukh sa gaya hai.
pichale 50 saalo main aurat ki dasha mein caahe jitna sudhar aa chuka ho per kavi use abla hi bata rahe hai.
kaash kavita aurat mein parivertan ka bhi muyankan kerti.
saadhubaad.
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