उठ रहा कैसा दिल से धुआं देखिये
हो गया इश्क शायद जवां देखिये
आप ही आप बस आ रहे हैं नजर
शौक से अब तो चाहे जहां देखिये
बात अपनी भले ही पुरानी सही
आप बस मेरा तर्जे-बयां देखिये
रहबरों रहजनों में हुई दोस्ती
अब जो लुटने लगे कारवां देखिये
आपकी तो ये ठहरी अदा ही मगर
लुट गया अपना तो कुल जहां देखिये
शोर कैसा खुदाया !ये बस्ती में है
उठ रहा है ये कैसा धुआं?देखिये
खत्म होने को ही है ये दौरे-खिजां
अब आप रौनके-गुलिस्तां देखिये
गर ये ऐसी ही रफ्तार कायम रही
कुछ दिनों बाद हिन्दोस्तां देखिये
दुल्हने सुब्ह अब सो के उठने को है
अब जरा सूरते आसमां देखिये
जाने वाला तो कब का चला भी गया
पांव के सिर्फ बाकी निशां देखिये
गोपियां मुझसे गोकुल की हैं पूछतीं
श्याम’को अपने ढूंढे कहां देखिये
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26 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपके लिखने का अंदाज़ पसंद आया , बहुत अच्छा लिखा , बहुत बहुत बधाई
वीमल कुमार हेडा
आपकी गज़ल पढते हुये सोच रही थी कि किस किस गज़ल की तारीफ करूँ मगर हर शेर एक से बढ कर एक है\ लाजवाब गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई
shyaamji sakhaa saaheb,
mazaa hi aagaya
behtareen ghazai.........umdaa she'r....
waah !
बात अपनी भले ही पुरानी सही
आप बस मेरा तर्जे-बयां देखिये
जाने वाला तो कब का चला भी गया
पांव के सिर्फ बाकी निशां देखिये
bahut khoob bhai. bahut acchhe sher kahe haiN.
गर ये ऐसी ही रफ्तार कायम रही
कुछ दिनों बाद हिन्दोस्तां देखिये
दुल्हने सुब्ह अब सो के उठने को है
अब जरा सूरते आसमां देखिये
जाने वाला तो कब का चला भी गया
पांव के सिर्फ बाकी निशां देखिये
गोपियां मुझसे गोकुल की हैं पूछतीं
श्याम’को अपने ढूंढे कहां देखिये
शब्द वाकई निराले पिरोये !
बात अपनी भले ही पुरानी सही
आप बस मेरा तर्जे-बयां देखिये
लाजवाब गज़ल!!!
खत्म होने को ही है ये दौरे-खिजां
अब आप रौनके-गुलिस्तां देखिये
गर ये ऐसी ही रफ्तार कायम रही
कुछ दिनों बाद हिन्दोस्तां देखिये
ye dono kuch jiyaadah hi man ko bhaaye .
उठ रहा कैसा दिल से धुआं देखिये
हो गया इश्क शायद जवां देखिये
वाह वाह ......क्या अन्दाजे व्यान है ......हम भी ळुट गये इस कविता पर जनाब
खूब लड़ियों में पिरोये भाव सब
श्यामजी का अन्दाजे-बयां देखिये ।
बधाई श्यामजी
बहुत उम्दा रचना है!
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
aap ne bahut umda ghazal likhi hai
जाने वाला तो कब का चला भी गया
पांव के सिर्फ बाकी निशां देखिये ।
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति, बधाई ।
श्याम जी बहुत ही खुबसूरत गज़ल.. यह शे'र बहुत ही सुन्दर लगे.
उठ रहा कैसा दिल से धुआं देखिये
हो गया इश्क शायद जवां देखिये
बात अपनी भले ही पुरानी सही
आप बस मेरा तर्जे-बयां देखिये
BhaiSaheb....Behtreen GAZAL ke liye BADHAI swikaren.
where are you ? Italy me?
Gazal acchee lagee. But please make more effort still you are a kid
हमेशा की तरह सिद्ध हस्त ,लाजवाब गज़ल . बधाई .
By and large a good ghazal in traditional concept. You seem to have vindicated your earlier position.
bahut khoobsoorat ghazal kahi hai shyaam ji...
har she'r laajwaab......!!!!!
दोस्तो,आप सभी ने जिस तरह इस गज़ल को लपक कर अपनाया है मं अभिभूत व आभारी हूं
श्याम सखा श्याम
खत्म होने को ही है ये दौरे-खिजां
अब आप रौनके-गुलिस्तां देखिये
वाह ! बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
bahut khoob
venus kesari
श्याम जी,
क्या खूब लिखते हैं आप! बहुत ही सुंदर.
जाने वाला तो कब का चला भी गया
पांव के सिर्फ बाकी निशां देखिये.
श्याम जी,
ग़ज़ल के जादू में हम सब खो गये
अब आप टिप्पणी का मजा लीजिये.
bahut dino bad ek sundar gazal
kishor
दोस्तो एक राज़ भी खोल दूं
यह योगेन्द्र मौदगिल मेरा छोटा भाई है,लेकिन गज़ल लेखन में मेरा सीनियर है,कमबख्त मुझसे बढिया गज़ल कहता है
श्याम सखा श्याम मौदगिल
तो.....श्याम जी, इस ग़ज़ल लेखन में योगेन्द्र जी का कितना.......हाथ है....(या नहीं)? Just joking. आप दोनों को ही बधाई.
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