प्रतियोगिता के छठवें स्थान की कविता के रचयिता अनुज शुक्ला गंगा और कैमूर की पहाड़ियों के बीच मीरजापुर के एक छोटे से गाँव में पैदा हुए और वहीं की पाठशाला से प्रारम्भिक अध्ययन की शुरूआत की। १२वीं इलाहाबाद के सी.ए.वी. कॉलेज से और ग्रेजुएशन के लिये ई.सी.सी. में दाखिला लिया। यहीं से मन के ऊपर इलाहाबादी प्रभाव से राजनैतिक और साहित्यिक गतिविधियों मे सहभागिता शुरू हो गई। इस दरम्यान छात्रसंघ का प्रतिनिधित्व। वर्तमान समय में मीरजापुर के इलाके में सामाजिक कार्यों में व्यस्त सब में खुद को ढूँढ़ते हुए।
पुरस्कृत रचना- तुम्हारा अतीत
रोटी के चन्द टुकड़ों को
ढाल बनाकर और
पाँच गज कपड़े की आड़ में
हमारे ऊपर आक्रमण कर
तुम विश्व विजयी बन गये
और इतिहास के यशश्वी पुरोधाओं में
अपने नाम को शामिल कर
सदियों के लिये हमें गुलामी
की जंजीरों में बाँध दिया।
तुम्हारी डाइनिंग टेबल पर रखी
मिनरल वाटर की बोतलें और-
उनके ऊपर लगी इम्पोर्टेड शील
बार-बार तुम्हारे अतीत के दोगलेपन
को दर्शाती है,
तुम्हारे बंगले के किसी कमरे में
रात को एम.टी.वी. देखती
तुम्हारी लड़की और
किसी नाइट क्लब में,
किसी की बाहों में स्काच के-
नशे में झूमती तुम्हारी बीबी
और उनके तंग कपड़ों से
तुम्हारे अतीत का वहशीपन-
चित्कार रहा है।
चाँदी के चन्द सिक्कों की बदौलत
किसी अबला की आबरु को
वियाग्रा के दम पर
तार-तार करने वाले सिकन्दर,
महिला उत्थान वाले कार्यक्रमों के
चीफ़गेस्ट व
सामाजिक सुधारों के तथाकथित ठेकेदार
तुम्हारी घिनौनी ज़रूरतों की बदौलत
कवियों को विकल्पहीन होना पड़ा और पड़ रहा है
तुम्हारे अतीत कि जड़ों में लगी
दीमक
तुम्हारे वर्तमान और भविष्य
के पेड़ को सुखा देगी
प्रथम चरण मिला स्थान- तेरहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- समीर लाल के कविता-संग्रह 'बिखरे मोती' की एक प्रति।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या कहने ,बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है भावों की.
सुंदर रचना .. बधाई !!
सबसे पहले मैं वह चीज़ बताना चाहूँगा जो मुझे आपकी कविता में अच्छी लगी. वह है आपकी कविता के पीछे की सोच यानि concept बहुत अच्छा है. लेकिन मुझे थोडी सी कमी यह लगी की रवानगी बिलकुल भी नज़र नहीं आई. अगर कविता छोटी होती तो ज्यादा रवानगी की ज़रुरत नहीं महसूस होती लेकिन जब हम लम्बी कविता लिखते हैं तो ज़रूरी हो जाता है कि श्रोता को बांधने के लिए एक रवानी बनी रहे.
श्रुरात काफी अच्छी दी है
रोटी के चन्द टुकड़ों को
ढाल बनाकर और
पाँच गज कपड़े की आड़ में
हमारे ऊपर आक्रमण कर
तुम विश्व विजयी बन गये
और इतिहास के यशश्वी पुरोधाओं में
अपने नाम को शामिल कर
सदियों के लिये हमें गुलामी
की जंजीरों में बाँध दिया।
आज की सामाजिक दशा के यथार्थ को दर्शाया है.
बधाई
कविता कम, उग्र भाषण अधिक प्रतीत हो रहा है, चीख चिल्लाहट से भरा भाषण , हाथ हिला हिला कर दिया जाने वाला भाषण
मुहम्मद अहसन
अहसन भाइ आज चिल्लाने कि जरुरत है ताकी बहरे लोगो तक हमारी आवाज पहुच सके. आप लोगो के मार्गदर्शन मे धिरे-धिरे लिखना सिख जाउन्गा, अपना किमती सलाह देते रहे .
अनुज शुक्ला
steek abhivykti.
ateet se ladne ka madda deti aapki kavita na sirf josh jagati hai balki hosh sambhyalna ki baat bhi karti hai. iswar aapki lekhni me is ooj ko banaye rakhe.
Kavita bhatakti hai.
तुम्हारे वर्तमान और भविष्य
के पेड़ को सुखा देगी
बहुत ही सुन्दर रचना ।
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