राजनीति
तिमिर लक्ष्य पर
बढ़ता रथ
भटकी पथ से
हर शपथ
कैसे ?
कौन ?
बताये राह
विवेक सभी का
लहू से
लथपथ
*
उपालंभ
जिस जाडे में
जिस्म जला
जिंदा रखा
तुम्हारी यादों को
उसी में .......
मधुमास तापते
तुम
मेरा नाम तक
भुला बैठे |
*
हंसी
ठहाके महान
पर कुर्बान
उस मुस्कान पर
जो टिकी है
आंसुओं के बांध पर
*
समय
एक और
दिन उगा
काल के
कबूतर ने
जीवन जंगल से
एक और
दाना चुगा
*
विवशता
छाया
लिपट सकती
चूम सकती
नदी को
लेकिन उसमें
नहा नहीं सकती
नदी
छू सकती
महसूस कर सकती
छाया को
लेकिन अपने साथ
बहा नहीं सकती
*
घुटन
कांटें की
चुभन पर
चिल्लाने वालों
कभी सोचा है
उसका दम
घुट रहा है
तुम्हारे जिस्म में
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर कविताएँ
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
उस मुस्कान पर
जो टिकी है
आंसुओं के बांध पर
बहुत अच्छी कवितायें विनय जी ! किस किस को गिनायें !
बहुत सुन्दर विनय जी
एक और
दिन उगा
काल के
कबूतर ने
जीवन जंगल से
एक और
दाना चुगा
एक और
दिन उगा
काल के
कबूतर ने
जीवन जंगल से
एक और
दाना चुगा
bahut hi badhiya charikaye
मुझे हंसी विवशता और घुटन बहुत सुन्दर लगी..
बधाई
सादर
शैलेश
ठहाके महान
पर कुर्बान
उस मुस्कान पर
जो टिकी है
आंसुओं के बांध पर
सुन्दर कविताएँ!!!बधाई..हिन्द-युग्म
कांटें की
चुभन पर
चिल्लाने वालों
कभी सोचा है
उसका दम
घुट रहा है
तुम्हारे जिस्म में
acchi lagi saari rachnaaye.
गागर में सागर भर दिया है . बधाई .
over all good agreeable poems. cheers.
तुमने भुला दिया ...नदी छाया को साथ बहा नहीं सकती .. अनोखी और सुन्दर कवितायेँ ...!! बहुत बधाई ..!!
कांटें की
चुभन पर
चिल्लाने वालों
कभी सोचा है
उसका दम
घुट रहा है
तुम्हारे जिस्म में
बहुत खूब लिखा आपने,बधाई
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