कल दोपहर के भोजन के बाद १५ मिनट की झपकी लेने के लिए हाथ-पाँव फैलाया ही था कि कोरियर वाले ने दरवाजा खटखटाया। वो हरेप्रकाश उपाध्याय का कविता-संग्रह लेकर आया था। आप सबको पता है कि भारतीय ज्ञानपीठ लोकोदय ग्रंथांक नाम से उभरते रचनाकारों का पहला संग्रह प्रकाशित करता है। साल २००८ के लिए ज्ञानपीठ ने ७ कविता-पुस्तकों को प्रकाशन के लिए चुना था, जिसमें हरे प्रकाश उपाध्याय की 'खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ' संग्रह भी शामिल था। मैंने सोचा कि सोकर १५ मिनट खराब करने से बढ़िया है कि इस संग्रह को पढ़कर आनंद के कुछ गोते लगा लूँ।
मैंने यह संग्रह हरे प्रकाश से इसलिए भी मँगाया था कि हिन्द-युग्म पर इसमें चुनिंदा कविताएँ प्रकाशित करूँ ताकि नये लिखने वालों को प्रेरणा और मार्गदर्शन भी मिले। पढ़ते-पढ़ते ४३वें पृष्ठ पर पहुँचा, जिसपर एक कविता छपी थी 'हमारे गाँव में लड़कियाँ'। उसे पढ़ा, दुबारा पढ़ा। पढ़कर कुछ याद आ रहा था। लेकिन समझ नहीं पा रहा था कि क्या? दीमाग पर काफी ज़ोर देने के बाद समझ में आया कि शायद इस कविता को पहले कहीं पढ़ा है। बहुत ज़ोर लगाया तो ऐसा लगा कि हिन्द-युग्म पर ही पढ़ा है। लेकिन फिर खुद ही अपनी बात को खारिज किया कि जब हरे प्रकाश अपनी कोई कविता हमें भेजी ही नहीं, फिर मैंने हिन्द-युग्म पर कब प्रकाशित कर दिया? मैं उनके ब्लॉग पर पहुँचा, वहाँ भी यह कविता नहीं थी।
थोड़ी देर बात मेरे दीमाग की बत्ती जली और याद आया कि इसी तरह की कविता पिछले साल के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विवेक पाण्डेय ने प्रकाशित करने को भेजी थी। मैंने महिला दिवस २००८ का विशेष अंक खोलकर पढ़ा, तो पाया कि दोनों कविताओं के अक्षर-अक्षर समान हैं। पढ़ने का सारा मज़ा किरकिरा हो गया था। मैंने हरेप्रकाश को फोन लगाया, उनको बताया कि आपका संग्रह मिल गया है और आपकी यह कविता विवेक कुमार पाण्डेय नाम से हिन्द-युग्म पर प्रकाशित है। मैंने कहा कि यह कैसे संभव है? उन्होंने बताया कि साहित्यिक-त्रैमासिक 'कथन' में यह कविता ४-५ साल पहले प्रकाशित हुई थी, विवेक ने वहीं से लिया होगा। मैंने जीमेल में विवेक पाण्डेय का नं॰ तलाशा और उनको मामला बताया। उन्होंने कहा कि वे अपने एक और मित्र के साथ मिलकर कविता लिखते हैं। हो सकता है उन्होंने कहीं पढ़ी हो और यह कविता मुझे दी हो। मैंने कहा कि उनसे पूछकर बताइए।
यह संभव हो भी सकता है। क्योंकि मनीष वंदेमातरम् (जो युग्म के कवि भी हैं) मेरे बहुत से मित्रों के लिए प्रेम कविताएँ लिखते हैं जिन्हें हमारे दोस्त लोग किसी लड़की को इम्प्रेस करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। सीना तानकर कहते हैं कि यह कविता मैंने तुम्हारे लिए लिखी है, तुम्हारी याद में लिखी है। किसी अन्य की रचना का इस तरह का इस्तेमाल तो बहुधा होता है और यह लेखन खासा प्रचलित है। लेकिन किसी अन्य की रचना कहीं पढ़कर अपने नाम से किसी वैश्विक मंच पर भेजना तो बहुत खतरनाक है। हमारे पुराने पाठकों को याद होगा कि डॉ॰ मीनू नाम की एक कवयित्री ने यूनिकवि प्रतियोगिता में प्रियंवद की बहुचर्चित कहानी 'खरगोश' का एक हिस्सा कविता की शक्ल में भेज दिया था, जिसके प्रकाशित होते ही उस कविता के पहले पाठक अवनीश गौतम ने बता दिया था कि यह प्रियंवद की कहानी का हिस्सा है। जिसके बाद सूरज प्रकाश ने फोन करके प्रियंवद को यह घटना बताई थी। बाद ने हिन्द-युग्म ने एक खेद-पत्र प्रकाशित किया था।
मुझे यह बताते हुए अच्छा भी लग रहा है कि इसे इंटरनेट की उपयोगिता ही कहेंगे कि इस तरह की चोरिया पकड़ में आ जा रही हैं। इस तरह की घटनाएँ नई नहीं हैं, लेकिन इंटरनेट पर लेखक, पाठक के आ जाने से आप चोरी को बहुत दिन तक नहीं छुपा सकते।
फिर मैंने 'कथन' के उस समय के संपादक रमेश उपाध्याय का संपर्क-सूत्र जुगाड़ा और उनसे फोनकर पूछा कि 'हमारे गाँव में लड़किया' आपने कब प्रकाशित की थी, ज़रा अपनी फाइल देखकर बता दें। उन्होंने ढूँढ़कर बताया कि इसे उन्होंने कथन के अप्रैल-जून २००४ के अंक में प्रकाशित किया था।
इसके बाद हमारे पास विवेक कुमार पाण्डेय का माफीनामा भी आ गया है, हम प्रकाशित कर रहे हैं।
(हम यह माफीनामा इसलिए भी प्रकाशित कर रहे हैं, क्योंकि यह विवेक की इच्छा है। हमारा उद्देश्य कि आगे कोई और यह गलती न दोहराये।)
मैं अपने पाठकों-कवियों से अपील करूँगा कि कृपया अपनी स्वरचित रचनाएँ ही अपने नाम से कहीं प्रकाशित करें या करवायें। हो सकता है कि आपको कुछ समय के लिए वाहवाही मिल जाये, लेकिन आप लम्बे समय तक निंदा के भागी बन जायेंगे। यदि आपकी चोरी प्रमाणित हो जाती है और लेखक तथा प्रकाशक चाहे तो आप के ख़िलाफ़ कॉपीराइट का मुकदमा दर्ज़ करा सकता है और हज़ारों-लाखों रुपयों का जुर्माना के चक्कर में पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए विवेक कुमार पाण्डेय ने हरे प्रकाश उपाध्याय की इस कविता को १ साल से अधिक समय तक अपने नाम से इस्तेमाल करने की गलती की है।
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25 कविताप्रेमियों का कहना है :
धन्यवाद. इस तरह चेतावनी देना आवश्यक है. इस पोस्ट की स्थाई कड़ी रचनाकार पर भी टांगता हूं.
साथ ही, उन उत्साही रचनाकारों के लिए भी कुछ लिखें जो अपनी एक ही रचना तमाम इंटरनेट पत्रिकाओं में एक साथ प्रकाशनार्थ भेज रहे हैं, और एक ही रचना दर्जन भर से ज्यादह जगहों पर प्रकाशित हो रही है - अर्थहीन रूप से. रचनाकार भी अपवाद नहीं है.
SAHI FARMAAYA AAPNE ... IS TARAH KI GHATANAAYEN MAN KO DUKHIT KARTI HAI..SAHITYA KI CHORI .... SABSE BADA PAAP HAI YE TO ...
AABHAAR AAPKA
ARSH
किसी अन्य की रचना को अपने नाम से छपवाना पूरी तरह गलत है. आपने बिलकुल सही कदम उठाया है. मैं दिव्यनर्मदा में भी तत्सम्बन्धी सूचना देकर सतर्कता बरतूँगा.
एक रचना को एक से अधिक जगहों पर छपने के सम्बन्ध में अपने-अपने पक्ष हैं. लेखक को पारिश्रमिक मिले तो वह रचना अन्यत्र नहीं छापना चाहिए किन्तु बिना पारिश्रमिक जो रचना छपी हो वह कुछ अंतराल बाद कहीं और उपयोग की जाये तो कितना सही है, कितना गलत यह विचारणीय है. जाल पत्रिका खुद प्रतिबन्ध लगाये तथा सतर्क रहे यह उसका अधिकार है पर पूर्व प्रकाशित अच्छी या प्रासंगिक रचना कोंई अन्य मांगे तो भेजने पर लेखक को दोषी क्यों मानें?
विषय विशेष या अवसर विशेष की रचनायें साल दर साल कई बार तो बिना मांगे भी संकलित कर छाप दी जाती है. नयी पत्रिकाएं सामग्री का अभाव होना पर यह तरीका अपनाती हैं. लेखं को तो पारिश्रमिक मिलाता नहीं तो नाम पाने से क्यों वंचित किया जाये?
मनीष जी की तरह मैं भी दूसरों के लिए लिखने का ठेका खूब लेता हूं...सिर्फ प्रेम पत्र ही नहीं, किसी कार्यक्रम में बोलने के लिए शुरुआती या आखिरी पंक्तियां, दूर के/की दोस्त को भावुक करने के लिए कोई धांसू सा शेर वगैरह वगैरह....
ये घटना तो बेहद आम है भाई....क्या पता, देश या विदेश के किसी कोने में लोग हिंदयुग्म को अपनी जागीर बता रहे हों.....आपको कुछ नाम पता हो तो बताईए ना....
रचनाओं को लेकर इंटरनेट भी चेक एंड बैलेंस का काम करता है। यह कभी भी कहने के लिए ये पोस्ट उदाहरण के तौर पर पेश किए जा सकेंगे।
चोरी तो चोरी है , साहित्य की , बिजली की... उसकी भऱ्त्स्ना होनी ही चाहिये रही बात लेखक के द्वारा अपनी ही रचना के प्रयोग कि तो सऱ्च इऩ्ज्न नेट पर तो हर प्रयोग बता देगा विवेक रन्जन श्रीवास्तव
Mr Shailesh Kumar Bharatvasi you should be ashemed of using any persons name like this. It is like personnel allegation. Be aware that you are not THEKEDAR of hindi litrature forum. Mr. Vijay Kumar sapatti has not stolen any poem from any where, it is up to any platform to publish or not. You have mentioned his name as if he has stolen poetry from some where.
If any poem which is a theft has been published in your blog you are also responsible. Despite that, you are playing blame game. Shame on you. Vijay ji Dont worry, Hindi Yougm is not such platform to be given attention.
MVSL Murthi
Hyderabad
मित्र MVSL Murthi साहब!
कम से कम इतना तो पढ़ लिये होते कि मैं किस परिप्रेक्ष्य में क्या कह रहा हूँ। रवि रतलामी जी की टिप्पणी पर आपने शायद ग़ौर नहीं फ़रमाया।
In my tenth papers, we used to have one question on comprehension. That means, read the paragraph and then give answers.
Mr. MVSL Murthi, please ask Vijay Sampatti and yourself to study comprehension again.
Kindly read the post and not just the comments.
Mr Tapan Sharma dont be so intellegent. My comment is against dirty intention of Hindi yougm. You people tried to create controversy and insulted a person. Whats wrong if a person is published at many forums? Why you have published then? Mr Tapan and Mr Bharatvasi You people are equally responsible to publish theft article. Make an appology for that and also you should be sorry to Mr. Sapatthi too.
MVSL Murthi
Hyderabad
विजय जी,
किसी को किसी भी तरह की वार्निंग देने से पहले यह ज़रूर सोच लिया करें कि आप कोई भी बात किस आधार पर कह रहे हैं। आप शायद भूल रहे हैं कि हिन्द-युग्म प्रत्येक रचना के ईमेल द्वारा प्राप्त होने के बाद 'प्राप्ति की सूचना' (Acknowledgement Letter) भेजता है (ईमेल में उत्तर के द्वारा)। और यह सुनिश्चित करवाता है कि यह रचना अप्रकाशित है और हमारी अगली सूचना तक अन्यत्र प्रकाशित नहीं करेंगे और यह सारी औपचारिकताएँ मैंने हिन्द-युग्म के सम्पादक की हैसियत से आपके ईमेल के उत्तर में भी की थी और आपने सुनिश्चित भी किया था। कृपया अपने ईमेल जाँच लें। और अपनी कम्पनी को भी हमारे ईमेल दिखाएँ (आपके पास ईमेल न हों तो वे हमारे पास सुरक्षित हैं)।
shailesh , i am trying to say saomething else, you are taking it to somewhere else.
i am concerend for my name being used as reference in this topic. you are relating it to the old issue.
please delete your comment using my name or edit it without name .. there is no point in giving my name as reference.
हिन्द-युग्म की समर्पित साहित्यिक सेवा पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती । रवि जी की टिप्पणी के सन्दर्भ में कही गयी बातें इतनी दूर तक नहीं जानी चाहियें ।
विवाद का फौरी समाधान हो, इसी आशा के साथ ।
और हां, नियमों का पालन तो किया ही जाना चाहिये ।
देश तमाशा चिट्ठे का...
ये साहित्यप्रेमी लोग भी लाठियां भांजने लगे और केस करने लगे...
हा हा हा...
निखिल
देख तमाशा चिट्ठे का...
ये साहित्यप्रेमी लोग भी लाठियां भांजने लगे और केस करने लगे...
हा हा हा...
निखिल
shri nikhil ji
baat lathiyan ya case ki nahi hai .. main sahitya se prem karta hoon aur hind yugm , hindi sahitya ki ek acchi patrika hai .. mera gussa sirf itna hai ki mera naam ek defaming statement me use kiya gaya , jo ki mujhe sweekar nahi hai ..
aur main use reference ko hataane ke liye kah raha hoon ..
ab aur kuch nahi kahunga .. na hi koi comment karunga ..
aap sabka
vijay
विजय जी,
मै इसे अपमान जनक टिप्पणी नही समझता, मेरी सलाह ये है हम सब साहित्य की कदर करते है इसलिए हमे टिप्पनियो को नजर अंदाज कर देना चाहिए और सुधार के लिए सुझाव रखने चाहिए और कानूनी रास्ता नही अपनाना चाहिए
विजय जी,
मै इसे अपमान जनक टिप्पणी नही समझता, मेरी सलाह ये है हम सब साहित्य की कदर करते है इसलिए हमे टिप्पनियो को नजर अंदाज कर देना चाहिए और सुधार के लिए सुझाव रखने चाहिए और कानूनी रास्ता नही अपनाना चाहिए
सुमित भारद्वाज
मैं व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करूँगा लेकिन इतना समझता हूँ कि कॉमन सेंस डिग्री से नहीं आती है।
MVSL साहब, जहाँ तक सप्पति जी के ’केस’ का सवाल है, बात सम्पत्ति जी की कविता कहीं प्रकाशित करने या न करने की नहीं, बात नियम का उल्लंघन करने की है। सप्पति जी मुझसे बड़े हैं इसलिये माफी माँगने में मुझे कोई शर्म नहीं है लेकिन कोई कारण नजर नहीं आता।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात, विवेक जी से भूल हुई उन्होंने माफी माँगी लेकिन न तो वो नाराज़ हुए न ही उन्होंने अपनी खीझ उतारी। ये उनकी स्पोर्ट्समैनशिप कही जायेगी। मैं तो यही चाहूँगा कि वे दोबारा और हर बार प्रतियोगिता में हिस्सा लें और जीतें। और मुझे यकीन है कि वे ऐसा करेंगे भी। आप लोगों से भी यही आग्रह है कि गुस्सा थूकें।
धन्यवाद,
तपन शर्मा
विजय जी,
नमस्कार,,,,,
सचमुच आपके संवेदनशील स्वभाव को देखते हुए ये सही नहीं लगता,,,,परंतु यदि नियम की बात आ जाए ,,तो भले ही वे नियम सही हों या गलत,,,,,स्वीकारने चाहिए..,,इस बारे में अपना ही उदाहरण दे सकता हूँ,,,इसी महीने हिंद युग्म पर एक रचना भेजी थी,,,अपने दुसरे नाम से,,,इत्तेफाक से इसका परिणाम आने से पहले ही कही और प्रकाशित हो गई,,,जब यहाँ परिणाम आया तो शायद तीसरे या चौथे नंबर पर मैंने अपना नाम देखा,,,,
फ़ौरन ही मैंने यहाँ फोन करके बोला के ये मेरा ही एक नाम है,,,,और ये मेरी ही रचना है,,,,, हालंकि शायद गूगल सर्च से पता नहीं चलता,,,क्यूंकि नाम अलग अलग थे,,,,,
मगर दिल नहीं माना ,,,,,सो बताया के ये अभी हाल ही में कहीं प्रकाशित हो चुकी है,,,,,
यदि आप चाहे तो इसे हटा सकते है,,,चाहे तो एकदम आखिर में छाप दें,,,,,नियंत्रक महोदय ने हमारा नाम ही हटा दिया बजाय सबसे आखिर में छपने के,,,,,,,
ठीक भी है,,,,,नियम आखिर नियम है,,,भले ही अच्छा महसूस ना हुआ हो,,,
या हो सकता है के उसे छाप दिया जाता तो और भी buraa लगता,,,,के पता नहीं क्यों मेरे लिए नियम तोडा ,,,क्यों मेरी तरफ दारी की गयी,,,,,
क्या मैं नियम से ऊंचा हूँ,,,,
ये अजीब बाते मन में जरूर आतीं,,,
ये शायद युग्म ही है जो आपने अपने कमेंट छापे ,,,,,और बाकायदा उनका उत्तर दिया गया,,
बहुत सी जगह ऐसी भी देखि हैं,,,,,,के इनसे अधिक सभ्य टिप्पणिया भी फ़ौरन डिलीट कर दी जाती हैं,,,,,अभद्र कह कर,,,
ऐसी हालत में आपकी टिपण्णी देख कर सुखद लग रहा है,,,,,
बाकी मेरी आपसे प्रार्थना है के आप अपने दिल पर ना लें,,,,,अपनी संवेदनशील भावनाओं पर काबू रखे,,,,,और उसे एक सुंदर कविता का रूप दें,,,,,,
मुझे आपके ब्लॉग पर उस dard bhari कविता का इन्तेजार रहेगा,,,,,
आज कई दिन बाद युग्म पर रचना पढने एवम् अगर रचना टिपण्णी के लायक लगे तो टिपण्णी देने का मन हुआ,पर रचना के स्थान पर कोहराम खुला,यह पोस्ट खोलने पर।मेरे विचार
-इन टिपण्णियों की अगर मुझे जजमेंट करनी पड़े तो
प्रथम स्थान- मनु
द्वितीय- तपन को दूंगा।
१० वर्ष से- मसि-कागद नामक पत्रिका का संपादन कर रहा हूं जाहिर है ऐसी घटनाओं से दो चार हुआ हूं।
मुझे-व युग्म के इस लेख में टिपण्णीत दो समस्याएं-
१-दूसरे की रचना को अपने नाम से प्रकाशित करवाना
२ एक रचना को कई जगह प्रकाशित होना -करवाना
पहली घटना घोर निंदनीय है-ऐसे व्यक्ति का नाम अवश्य देना चाहिये।
दूसरी घटना ऐसे है कि आपकी कार की लाइट खराब हो गयी और आप पर एक चौराहे पर पुलिस द्वारा चालान कर दिया गया तो आम-तौर पर अगले चौराहे पर ट्रेफ़िक पुलिस उसी दि चालान नहीं करती ,हालांकि कानून के अनुसार कर सकती है-कानून तो कहता है कि आप गाड़ी ठीक करवाकर ही आगे ले जा स्कते हैं ।
तो जब पुलिस वाले जो आम तौर पर सहृदयता दिखलाते हैं तो,शैलेस को भी एक बार-श्री वि--- का नाम हिन्द युग्म पर इस बारे में देने के बाद दोबारा नाम न देकर केवल यह कह देना चाहिये था कि एक साहिब ने युग्म अर ऐसा किया था और उसका जिक्र युग्म तारीख-----में है।जैसाउन्होने अपनी टिपण्णी के अन्त में किया भी है ’पूरी बात यहाँ देखें।’लिखकर किया है
नियम मानने चाहियें -लेकिन एक और बात जैसा सलिल जी ने कहा जब तक युग्म या अन्य पत्रिका मानदेय न दे तब तक प्रतियोगिता के अतिरिक्त अन्य पोस्ट पर अप्रकशित रचना का नियम थोड़ा बदल लें-जैसे
१-कोई रचना तब पोस्ट की जा सके जब-उसे अनयन्त्र प्रकाशित हुए ६ महीने या एक साल हो गया हो। यह केवल मेरी सलाह भर है,माने-न माने-क्योंकि-कोई रचना एक बार छप कर मर नहीं जाती अगर ऐसा होता तो हम पुराने लेखकों की रचनाएं पढते ही नही।हां कालजयी होना रचना के अपने दम पर निर्भ्र्र करता है
अन्त में बहुत लम्बी टिपण्णी हेतु मुआफ़ी दें
शैलेश-श्री-वि का नाम हटा ही दें तो बेहतर होगा।
श्याम सखा’श्याम’
साथियो,
मेरा आशय किसी तरह के विवाद को जन्म देना नहीं था। उद्देश्य मात्र इतना था कि रवि रतलामी जिस संदर्भ में नई पोस्ट लिखे थे, उसे पुख्ता कर सकूँ। एक ही रचना के कई ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन से बहुत से ई-पत्रिकाओं के संपादक दुखी और परेशान हैं। मैं इतना बताना चाह रहा था कि ऐसी एक घटना पर हिन्द-युग्म पहले भी कार्यवाई कर चुका है और भविष्य में भी करता रहेगा। उस घटना को उदाहरण के तौर पर यहाँ लगाया गया है।
लेखक-पाठक-नियंत्रक के इस वार्तालाप से किसी का भी दिल दुखा हो तो हम खेद प्रकट करते हैं। निवेदन है कि इस पोस्ट से एक सीख लें और कम से कम आप इस तरह का काम न करें। इंटरनेट पर एक रचना कहीं भी प्रकाशित होती है (वो चाहे आपका ब्लॉग हो, पत्रिका हो, पोर्टल हो या कुछ और) सर्च इंजन आपको वहाँ पहुँचा देता है, चूँकि इंटरनेट पर हिन्दी के पाठकों की संख्या सीमित है इसलिए एक ही रचना कई जगह न परोसें।
मुझे एक प्रशन पूछना है,,,यदि कोई बता सकें तो,,,
पूरी रचना का तो खैर अंदाजा लग ही जाता है के चोरी की है या,,,अपनी है,,,
मगर कविता का कोई एक अंश या शेर यदि जाने अनजाने किसी से एकदम मेल खा रहा हो तो,,, उसके लिए क्या कानून है,,,,हम अपनी सफाई कैसे दे सकते हैं के ये हमारा अपना लिखा है,,,,चुराया हुआ नहीं है,,,
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