प्यार की प्यास तो दोनो को थी
एक अतृप्त हो भटकता रहा
एक ने अपनी मंज़िल पा ली
रिश्तों के मरूस्थल
दोनो की राहों में थे
एक सूखी रेत से टकराता रहा
एक ने स्नेह की गागर छलका ली।
मर्यादाओं के काँटे
दोनो के जीवन में थे
एक बबूल बन चुभता रहा
एक ने फूलों से डाल सजा ली
स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली
ये अपना-अपना अंदाज़ नहीं तो
और क्या था शुभी
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर अंदाज़ सुन्दर लफ्ज़ बहुत बढ़िया लगी है आपकी यह कविता शोभा जी
वाह! शोभा जी, वाह! बहुत ही अच्छी लगी यह कविता मुझे.
ये अपना-अपना अंदाज़ नहीं तो
और क्या था शुभी
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।
sobha ji aapki kavita ne kaaljayi kavita hone ka khitaab paaya hai humse .
saadhuvaad aapko
जिंदगी के करीब से गुजरती हुई कविता।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
ये अपना-अपना अंदाज़ नहीं तो
और क्या था शुभी
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।
बहुत बढिया ... यथार्थ है यह रचना।
ये अपना-अपना अंदाज़ नहीं तो
और क्या था शुभी
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।
शोभा जी, बहुत अच्छा लिखा है। बार-बार पढ़ने योग्य।
क्या बात है जी,
घने दिनो बाद दर्शन हुए आपके, पर दर्शन सार्थक रहे जी, जबर्दस्त कथ्य है शब्द-माला में
अपना अपना अन्दाज है सही कहा जी...
सो भा गयी जी कविता..शोभा जी
जिंदगी के बारे में एक सच
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
प्रेम और पीड़ा को बयाँ करने का अन्दाज़ भी खूबसूरत ...
वाह !!! अतिसुन्दर भावपूर्ण मनमोहक रचना....
बहुत सही कहा आपने,अपने ही हाथों होता है कि हम कौन सा मार्ग चुने.....कर्म का या पतन का....इस रचना में कल्याणकारी शिक्षा भी मार्गदर्शक रूप में निहित है...अतिसुन्दर !!! ....प्रस्तुति हेतु आभार...
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।
भावपूर्ण ,प्रेममय सुन्दर कविता
बहुत बधाई शोभा जी
नेह नदी के तीर दो, रहते हरदम दूर.
कभी न मिलते, किन्तु हैं जीवन से भरपूर.
सम अंतर चाहे रहे, पर अंतर हो साफ़.
दोष किसी को बिन दिए, करें सभी को माफ़.
श्वास-आस की यात्रा, चले 'सलिल' के साथ.
कलकल कर लहरें रहीं, झूम मिलकर हाथ.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
"एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।"
बहुत दमदार रचना है....उम्दा दृष्टिकोण ....
कविता में क्या शानदार जीवन दर्शन बहाया है आपने शोभा जी,
बहुत बहुत बहुत,,,,,,बधाई,,,,,
ब्फ्हद तरीके से कही खूबसूरत बात,,,सहेजने योग्य,,
कितना सही लिखा है जीवन आपका है जैसा चाहें जियें .
बहुत सुन्दर
रचना
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