फरवरी माह की प्रतियोगिता से हम शीर्ष १० गीतों का प्रकाशन कर चुके हैं। हमने उद्घोषणा की थी कि इन १० कविताओं के अतिरिक्त हम मोहम्मद अहसन की कविता भी प्रकाशित करेंगे, जो ११वें स्थान पर रही और निर्णायकों ने खूब सराहा।
पुरस्कृत कविता- उस वर्ष.......
उस वर्ष न ऊंची पहाड़ियों पर बर्फ़ पड़ी
न निचली घाटियों में फूल खिले
न चीड़ वन में आँधियाँ आयीं
न देव वन में चांदनी छिटकी
न बुरांस के जंगलों में चटक रंग छिटका
न मैदानों में सरसों फूली
न पलाश वन में अग्नि फूटी
न मरुस्थल में मधु बरसा
न समुद्र की लहरें चट्टानों से टकराईं
न गंगा की लहरों से संगीत उपजा
उस वर्ष तुम्हारा प्रेम मुझ से रूठा हुआ था
प्रथम चरण मिला स्थान- बारहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- ग्यारहवाँ
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
उस वर्ष तुम्हारा प्रेम मुझ से रूठा हुआ था
सचमुच.......कवी की कल्पना का कोई छोर नहीं है
बहूत ही सुन्दर, अद्भुद, नवीन कल्पना है
अच्छा महज उसी वर्ष क्योँ ?अगले वर्ष क्यों नहीं ?उसके अगले वर्ष क्यों नहीं ?उसके अगले ,अगले वर्ष भी क्योँ
नहीं ????????????????????
नीलम जी की बात पर हंसी अ गई,,,,
ठीक ही तो कह रही हैं,,,,,,,!!!
और दूसरी बात कविता के भाव मुझे तो अच्छे लगे,,,
हाँ ,ये नहीं पता चला के उसी वर्ष ही क्यों,,,,,,
पर अच्छी कविता,,,
...इसलिए की उसके बाद का साल अभी नहीं आया, अर्थात ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव....किसी की खुशियाँ अच्छी लग्न तो ठीक है पर किसी का दुःख-दर्द अच्छा लगे या उस से सहानुभूति हो...?
पुरानी बातें याद करते हुए लिखी गई कविता लगती है अहसन भाई... बहुत खूब
ऐसा भी संभव है की उस वर्ष के बाद कोई और मिल गयी हो...बहरहाल इस पर शोध के लिए १ अप्रैल को जाच आयोग गठित किया जाना चाहिए...
अहसन भाई ,
अपने दोनों कान पकड़ कर आपसे माफ़ी मागती हूँ ,हुआ यूं की आप की कविता पढ़ते ही अपने college के दिन याद आये तो कुछ hooting करने का मन किया,
मगर हम उल्लू तो हैं नहीं ,इसलिए....... ,कविता बेहद संजीदा है ,ऐसी ही कवितायें मिलें पढने को baar baar हिंदी ,उर्दू ,और अंग्रेजी के झगडे के ब-गैर
आमीन
नीलम जी
बात हिंदी-उर्दू के झगडे की नहीं है. बात इतनी सी है की हिंदी अपने आप में इतनी सशक्त भाषा है कि बिना उर्दू शब्दों का प्रयोग किये सुन्दर और सरस कवितायेँ लिखी जा सकती हैं. मैं यही प्रयोग करता रहता हूँ.
मनु जी और दूसरे महानुभाव ,
आप को कविता अच्छी लगी , बहुत धन्यवाद
magar hum to urdu ke bina hindi likh hi nahi sakte ,hindi ne sabhi bhaasaaon ko aatmsaat kiya hai aur isse uski rooh ya aatma me kahin bhi koi antar nahi aaya hai .
so nice
नीलम जी से पूरी तरह सहमत,,,,केवल मैं या नीलम जी ही नहीं,,ऐसा ज्यादातर के साथ है,,,
मैं क्यूंकि इस तरह की मुक्त कविता के बजाय,,,ग़ज़ल लिखता हूँ,,,सो यदि कोई शब्द ऐसा अटकता है के एकदम आम शब्द ना होकर अधिक शुद्ध हिंदी या अधिक शुद्ध उर्दू का हो,,,( या जरूरी नहीं के आम शब्द भी हो पर मेरा ध्यान ही ना गया हो ),,,
तो मैं उर्दू की तरफ जाना पसंद करता हूँ क्यूंकि ग़ज़ल का वास्तविक ठिकाना तो हमने वही से जाना है,,,आपने अपनी कविता में सही शब्द चुने हैं ,,,,पर ये सभी ग़ज़ल में,,,शेर या नज़्म में,,,इतना सूट नहीं करते,,,जितना आपकी कविता को करते हैं,,,,,
यदि हमें आपसे कोई इस के अलावा शिकायत होती तो वो बात कहते,,,,,
कविता अच्छी लगी,,,सो अच्छी कह रहे है,,,,,,
खराब लगती तो खराब कहते,,,,,
बाकी मुझे भी लोग कहते हैं के कुछ मुश्किल उर्दू के शब्द डाले हुए हैं,,,,,
पर ग़ज़ल की जरूरत होती है,,,,,बाकी के शब्दों के साथ मेल खाते हुए ही लिखना पड़ता है,,,
खैर आप दोबारा से बधाई लें,,,,,
इस विषय पर तो आपसे कभी भी ,,, बल्कि हजार बार असहमती जतायेंगे ही,,,,
मनु साहब,
ग़ज़ल भले तकनिकी तौर से किसी भी ज़बान में लिखी जा सकती हो लेकिन उस की बुनयादी रूह फ़ारसी में बसती है जो कि वक़्त के साथ गैर तकसीम शुदा हिन्दुस्तान में उर्दू में मुन्ताकिल हो गयी. ग़ज़ल का लुत्फ़ आज भी उर्दू में ही है, दुष्यंत कुमार एक मुस्तासन्ना शख्स हैं जिन कि हिंदी गजलें दिल को छूती हैं. लेकिन जहाँ तक हिंदी नज़्म की बात है उस में उर्दू के चंद अल्फाज़ म'अमूली बात है लेकिन ये इस क़दर न हों कि हिंदी नज़्म की शिनाख्त ही खो जाए .
आप को मेरी हिंदी नज़्म पसंद , आई शुक्रिया
ये ज़ुबां के झगड़े, ये नज़र के तन'आज़े
दिलों के जाम उठाओ , इन्हें यूं भुलाओ
- अहसन
ये ज़ुबां के झगड़े, ये नज़र के तन'आज़े
दिलों के जाम उठाओ , इन्हें यूं भुलाओ
- अहसन
cheeerss,,,,,,,,
अच्छी कविता
वैसे हमे हिन्दी और उर्दू मे फर्क नही करना चाहिए, क्योकि आम बोलचाल मे पता ही नही चलता कौन सा हिन्दी शब्द है कौन सा उर्दू
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