मित्रो,
कल ही हमने वादा किया था कि इस बार टॉप १० कविताओं को एक-एक करके प्रकाशित करेंगे और सभी के साथ पेंटिंग भी जोड़ेंगे। आज हम दूसरे स्थान की कविता लेकर आये हैं। हाँ, इस कविता की कवयित्री 'मंज़िल' जिन्हें निर्णय के उपरांत संपर्क किया गया था (कई बार)। मगर उन्होंने परिचय नहीं भेजा। अंत तक आस थी। ऑरकुट पर स्क्रैपाचार किया गया मगर उनका उत्तर आया कि उन्हें नाम और पहचान नहीं चाहिए। अतः हम बिना उनके परिचय के ही उनकी कविता प्रकाशित कर रहे हैं।
कविता- "छाया"......जय-पराजय...उत्सव
कवयित्री- मंज़िल
पूरी सड़क दिन भर के टूटे,
पीले पत्तों से भरी थी.
पाँव के नीचे चीखते वो पत्ते,
कभी कुछ दूर तक,
हमारे साथ दौड़ते ..
फिर दम तोड़ देते.
दोनों ओर पेड़ों की
नंगी शाखों से
चांदनी गिर रही थी...
सफ़ेद...ठण्डी खाली सड़क
परछाइयों के जाले...बुनती
पता नहीं
कैसी हवा थी वह कि ...
पागलों की तरह भागती तो
बदन
कभी सिहर जाते
कभी देर तक कांपते रहते..
आनंद से...
सबसे बड़ा युद्ध
मनुष्य के भीतर चलता है...
अनवरत...
सपनों का
आकाँक्षाओं का
भावनाओं का
विचारों का
युद्ध...
'मंज़िल',
सब की ....
जैसे हो एक...
भयानक उन्माद,
अपरिमित आनंद
जय-पराजय...उत्सव..!
कितना कुछ सीखना बाकी है ?!!
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- 6, 8, 8
औसत अंक- ७॰33
स्थान- पाँचवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ४॰४५, ६
औसत अंक- ५॰२३
स्थान- पंद्रहवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-बधाई, रचना अच्छी लगी। आगे बढ़ने की संभावनाएँ निहित हैं। दो अलग भावस्थितियों को जोड़ने की प्रक्रिया पर श्रम करना होगा। ‘गैप’ रह गया है।
अंक- ७॰१
स्थान- प्रथम
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता बाँधती है, मनोविज्ञान है और दर्शन भी। कविता गहरी है और पाठक को बिम्बों की भूलभुलैया से ले कर उसके मन की तह तक पहुँचाती है।
कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १६/२०
पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
चित्र- उपर्युक्त चित्र को चित्रकार तपेश महेश्वरी ने बनाया है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
कृपया दूसरो को चीजों को अपना कह कर ना छापें. यह कविता प्रियंवद की कहानी "खरगोश" का एक हिस्सा है.
मैं तो समीक्षा लिखने जा रहा था, पर अवनीश जी की टिप्पणी ने ह्रदय को अंदर तक भेद दिया ॰॰॰॰
अगर ये सच है तो हमारे इतने सारे माननीय जज़ इस "चोरी" को क्यो नही पकड़ पाये,
जो दर्द कल तक सुनीता दी' दिल्ली के मंच पर भोग रही थी, वैसा आज हिन्दयुग्म और मुझको महसुस हो रहा है।
जो अवनीश जी ने कहा है, अगर वह सच है तो कवयित्री का "नाम-यश से दूर रहना" पुर्वाभास प्रतीत होता है ।
मन कराह रहा है । यथाशीघ्र हिन्दयुग्म को वस्तुस्थिति साफ करनी चाहिये ।
आर्यमनु, उदयपुर ।
मैने अवनीश गौतम के बात पर पाया की -
"
प्रियाम्वाद,a wellknown short story writer and novelist. we jahan quaid hain, Parchain Nach [novel], bosidani, khargosh, ek pavitr ped [short stories]
"
Net se mila...itana.
लेकिन बता पाना मुश्किल है कि यह कविता उन्के रचना का अन्श है या नही ?
अवनीश गौतम यदि कुछ प्रमाण दे सके तो बेह्तर होगा ?
शेष हिन्दयुग्म पर है ???
अवनश तिवारेी
ये तो समझ आता है कि अपनी ही कविता को कोई दो जगह प्रकाशित करवाये। लेकिन ये खेदजनक है अगर कोई किसी दूसरे की रचना को अपने कहे। अवनीश जी व अन्य, अगर किसी ने ये कहानी पढ़ी है तो उसके बारे में बताये।
और कवयित्री से उम्मीद है कि वो अपनी सफाई देना चाहे?
ये कविता पढ़ कर औरपूरा प्रसंग जान कर और शैलेष जी से बात करने के बाद मैंने प्रियंवद जी को फोन किया और ये कविता सुनायी. वे हैरान कि ये तो उनकी कहानी खरगोश का अंश है. मैंने उन्हें बधाई दी कि देखिये आपकी कहानियों में भी कितनी कवितांए छुपी हुई हैं कि लोग उन्हें छाप कर पुरस्कार तक ले रहे हैं.
..सुनिश्चित करने के लिये कोई भी प्रिंयवद का कहानी संग्रह "खरगोश" पढ सकता है. अगर वह मेरे पास हुआ तो कल उसका वह पेज इस मंच के पटल पर होगा.
अफ़सोस!!!
चोरी का मामला साफ़ हो चुका है। हिन्द-युग्म ने खेद सहित पूरी जानकारी यहाँ प्रकाशित की है।
मुझे चोरी की इस घटना का बहुत अफ़सोस है । अवनीस जी की जागरूकता तथा उनका अध्ययन प्रशंसा के काबिल है । मुझे नहीं पता इस प्रकार का कार्य करके किसी को क्या हासिल होता है । युग्म के संचालकों का दायित्व और
बढ़ जाता है ।
agar sambhav ho aur inka blog kaa koi pataa aap kaepaas ho to usae yahan prakshit kar de
अत्यंत दुःखद।
आज मंजिल जी ने जो हरकत की है वह बहुत ही शर्मनाक है ...हम सब,.. जजों के द्वारा दिए गए फेसले को सर्वोपरी मानते है ..तथा उस कवि की कविता को श्रेष्ठ ...मगर जब कोई कवि दूसरो की कविता को अपना बता कर भेजता है, और फिर ख़ुद से ही छिपता फिरता है...टू फिर उससे क्या उम्मीद की जाए ..ऐसे लोगों को चाहिए.. की, यदि वह अच्छी कविता न लिख पाते हो, तो मायूस न हो कर यूनी पाठक जैसे विकल्प अपनाने कहिये ..जिससे उन्हें अच्छी कविता लिखने की भी प्रेरणा मिलेगी ... मगर किसी ने सच कहा है की जो भी होता है अच्छा होता है ...शेलेश जी तथा अवनीश गौतम जी की बुद्धिमानी से सच्चाई का पता चल गया ...और हरी.एस.बाजपेयी तथा दिव्या श्रीवास्तव जी की कविता को उपयुक्त स्थान मिला ..मैं उनको बधाई देना चाहूँगा....तथा उम्मीद करूँगा की आगे हमे और कोई मंजिल से सामना नही करना पड़ेगा ....
''मंजिल की जुस्तजू में हम निकल तो गए ...
मगर मंजिल की हकीकत हमको पता नही ...''
यह कृत्य खेद जन्य है| अवनीश जी का आभार कि हिन्द-युग्म के मंच पर एक बडा अपराध आपकी पठनीयता के कारण पकडा जा सका|
*** राजीव रंजन प्रसाद
वास्तव में शर्मनाक और सोचनीय
अपनी मूल रचना ही प्रकाशित करे...दुसरों की रचना को नही.....यह बहुत ही शर्मनाक घटना है...भविष्य मे ऐसा अपराध ना करे...
अवनीश जी को धन्यवाद ...!!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)