आज हिन्द-युग्म के मंच पर एक शर्मनाक घटना घटी। आज हिन्द-युग्म पर अक्टूबर माह की प्रतियोगिता में आई दूसरी कविता प्रकाशित की गई। कविता की रचयिता मंज़िल से उनका डाक-पता, फ़ोटो व परिचय आदि माँगे गये थे, मगर हफ़्तों उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। फ़िर हिन्द-युग्म के एक साथी शैलेश भारतवासी ने उन्हें ऑरकुट पर खोजकर स्क्रैप किया तो उनका उत्तर आया कि 'वो नाम व पुरस्कार नहीं चाहतीं'। हमने सोचा कि शायद इंटरनेट पर पतों, चित्रों के दुरूपयोग हो जाने का डर हो। इसलिए हमने इसे यहाँ बिना कोई जानकारी के ही छाप दी। हम किसी भी हाल में प्रतिभा को नकारने से डरते हैं, बचते हैं। छापते ही तुरंत अवनीश गौतम जी का कमेंट आ गया कि यह कविता प्रसिद्ध कथाकार प्रियंवद की कहानी 'खरगोश' का हिस्सा है। फ़िर हमने अवनीश जी से संपर्क साधा और कहानी को स्कैन करके माँगा। लेकिन वो फ़िलहाल दफ़्तर में थे और यह काम कल से पहले संभव नहीं था। फ़िर हिन्द-युग्म के वरिष्ठ सदस्य सूरज प्रकाश से संपर्क किया गया, उन्होंने बताया कि प्रियंवद जी से उनकी सीधी बातचीत है। जब सूरज जी ने कविता की यह पंक्तियाँ प्रियंवद जी को सुनाई तो उन्होंने कहा कि यह तो मेरी कहानी का हिस्सा है।
मतलब साफ़ है कि इंटरनेट बहुत से लोग सकारात्मक प्रयासों का भी मनोबल तोड़ने की कोशिश में हैं। कोई भी जज दुनिया की करोड़ों कविताएँ, कहानियाँ आदि नहीं पढ़ सकता। वह तो भला हो हमारे भाग्य का कि हमारे पास अवनीश गौतम जी जैसे पाठक-लेखक हैं। जानकारी के लिए बता दें अवनीश गौतम जी प्रियंवद की इसी कहानी 'खरगोश' पर बनने वाली फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखने वाली टीम से जुड़े हैं। यह लेखक की ही जिम्मेदारी है कि वो मौलिक रचनाएँ प्रस्तुत करें। चोरी की रचना भेजना मूल लेखक और प्रयास दोनों का अपमान है।
हम यह कविता नहीं हटा रहे हैं, ताकि आगे इस तरह की हरक़त करने वाले चोरों को सबक मिल सके।
आदरणीय प्रियंवद जी से पूरा हिन्द-युग्म परिवार माफ़ी चाहता है कि उनकी कहानी का यह अंश किसी और नाम से प्रकाशित हुआ।
हम तथाकथित लेखिका मंज़िल का ईमेल-पता (gbc_images@yahoo.com) और उनके ऑरकुट प्रोफ़ाइल का लिंक प्रकाशित कर रहे हैं ताकि जो उस लेखिका से स्पष्टीकरण लेना चाहें ले सकते हैं।
हिन्द-युग्म लेखिका से भी स्पष्टीकरण, क्षमायाचना की अपेक्षा रखता है।
दूसरे स्थान का पुरस्कार रद्द करते हैं। अब पुरस्कृत लेखकों का नाम ऊपर की ओर बढ़ जायेगा। टॉप १० में दसवें स्थान पर हरि एस॰ बाजपेई का नाम और टॉप २० में दिव्या श्रीवास्तव का नाम सम्मिलित किया जाता है।
सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद।
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाकई शर्मनाक घटना .........अवनीश जी बधाई के पात्र है जिनकी वजह से सत्य सामने आया। झूठी वाह-वाही लूटने की प्रवृति से लोगों को बचना चाहिये।
सही है जी. लेकिन इस ढंग के कार्यो की पुनरावृति रोकने के लिए भी कुछ किया जाना चाहिए. अविनाश जी बधाई के पात्र है.
अच्छा किया आपने.साधुवाद.
अवनीश जी को साभार, जिन्होने इस चोरी को सबसे पहले पकड़ा ।
दूसरे मैं शैलेश जी से क्षमा चाहता हूँ, माननीय जजों पर की गई टिप्पणी तात्कालिक प्रक्रिया थी, जिसके लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ।
आर्यमनु, उदयपुर ।
कोई बात नही,जो हो गया सो हो गया.
चोरी पकडी गयी, सामने आ गयी ,यही बडी बात है. आपने अच्छा किया कि चौर्य कर्मी का नाम पता भी जग-जाहिर कर दिया. होना भी चाहिये.
जिन्होने चोरी पकडने में मदद की उन्हे धन्यवाद.
हिन्दयुग्म पर चोरी की ये घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है । लेकिन आपका इस पोस्ट के माध्यम से लेखिका के ईमेल पते और आर्कुट प्रोफ़ाइल जैसी व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करना नितांत अनुचित है । मैं कडे स्वर में इस कृत्य की निन्दा करता हूँ ।
हिन्द-युग्म को संयमित व्यवहार करते हुये अपने आचरण का ख्याल रखना चाहिये ।
हिन्द-युग्म के सभी प्रयासों की मैने खुले दिल से सराहना की है परन्तु आज हिन्द-युग्म नैतिकता से थोडा भटक गया सा लगता है ।
आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे ।
चोरनी का चित्र
चाहेंगे देखना
परंतु असली हो
कहीं वो भी चोरी
का ही न हो।
अविनाश जी को साधुवाद।
आदरणीय नीरज रोहिल्ला जी,
हम सदैव ही रचनाओं को रचनाकारों के पूरे विवरण के साथ प्रकाशित करते रहे हैं। हमने सर्वप्रथम मंज़िल जी की कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि हिन्द-युग्म को लगता था कि वो असुरक्षा के दृष्टिकोण से मना कर रही हैं, लेकिन पूरी बात तब समझ में आई जब उनकी यह कविता प्रकाशित हो गई।
आप हिन्द-युग्म में विश्वास बनाये रखें और हमेशा हमें मार्गदर्शन देते रहें।
धन्यवाद।
आपको अपने ऑर रचनाकार के तई मामले को निपटाना चाहिए था .मगर आप सभी ने तो हल्ला बोल दिया .यह नैसर्गिक न्याय के विपरीत तो है ही न्रिसंश कबीलाई मानसिकता का भी परिचायक है.नीरज जी की इस बात मे भी दम है की रचनाकार की निजता को अनावृत्त करने का अधिकार आप को नही है.अब बचा ही क्या ? द्रोपदी का चीर हरण तो हो चुका -हालाकि वह इसकी जिम्मेवार ख़ुद है पर थोडा सय्यम बरतना समीचीन होता .रही बात साहित्यिक चोरी की तो यह एक घृणित कार्य तो है ही .पर कभी कभी ऐसा भी होता है की लोग उस मूल स्रोत से चोरी करते हैं जहाँ से दीगर लोग भी टीप चुके रहते है .मगर चूँकि यहाँ प्रियंवद जी की सत्यनिस्त्था असंदिग्ध है ऐसा नही हुआ होगा .
अवनीश जी बधाई के पात्र है जिन्होने इस चोरी को पकडा और हिन्द युग्म भी जो नवोदित रचनाकारों को आगे बढने का अवसर प्रदान करता है।
मैने भी एक रचना लिखी थी, जो मैने आँरकुट पर प्रकाशित कर दी, तपन भैया का धन्यवाद करता हूँ जिन्होने मुझे हिन्द युग्म के नियमो से अवगत कराया।
सुमित भारद्वाज
बेहद शर्मनाक रहा सब.... अविनाश जी की मुश्तैदगी को सलाम
नीरज जी और अरविन्द जी हेतु-
"द्रोपदी का चीर हरण" कहावत का उपयोग॰॰॰॰॰॰॰और वो भी एक ऐसी स्त्री के लिये, जिसका कृत्य पहले ही जगज़ाहिर हो चुका था ।
कम से कम तुलना से पूर्व उसके कर्म काण्ड पर भी पूरी तरह से गौर फरमा लेना चाहिये, आप मुझसे आयु और अनुभव दोनो में वरिष्ठ है, फिर भी आपकी टिप्पणियों से दुःख हुआ ।
ये सही है कि स्त्री जाति सम्मान पाने की हकदार शुरू से रही है, पर क्या सभी ने वह सम्मान पाया??
सूर्पनका भी स्त्री थी, पर कृत्य निन्दनीय था, तो नाक गँवानी पडी ।
हो सकता है, आप मेरे कथन से समर्थन न रखे, फिर भी वाल्तेयर के कहे अनुसार आपके प्रत्तुतर का सम्मान करँगा।
आर्यमनु, उदयपुर ।
अवनीश जी की पठनीयता का सम्मान और आभार करते हुए मैं चोरी की इस घटना को शर्मनाक मानता हूँ| अंतरजाल पर साहित्यकार वैसे भी डरते डरते आते हैं और उस पर इस तरह की घटनायें विश्वास तोडने का ही कार्य करती हैं| प्रियंवद जी से क्षमायाचना आवश्यक थी| नीरज जी आपकी बात का पूरा सम्मान रखते हुए मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ कि यहाँ केवल मौलिकता बनाये रखने के लिये और इस घटना के दोषी को मंच के पाठको के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास भर है| कोई रचना पुरस्कृत होती है तब भी तो रचनाकार मंच के सम्मुख उसके पूरे नाम पते और टेलीफोन नं के साथ प्रस्तुत किया जाता है तो फिर इस तरह के तत्वों से सावधान करना भी पीडित मंच का अधिकार बन जाता है| आपकी बात का अन्यथा लिया जाना संभव ही नहीं, आपका सुझाव अन्य संदर्भों में सटीक है| अरविन्द जी इसे कृपया रचनाकार का चीर हरण जैसी संज्ञा न दें| यह केवल उस व्यक्ति को सम्मुख लाने का प्रयास भर है जिसके कारण "हिन्द युग्म" मंच की छवि धूमिल हो सकती थी| रचनाधर्मिता प्रभावित हो कर लिखने का हक तो देती है चोरी का अधिकार नहीं देती| सारा प्रकरण खेद जनक था< इसकी पुनरावृत्ति न हो एसी व्यवस्था की जानी चाहिये|
*** राजीव रंजन प्रसाद
आर्यमनु जी ऑर राजीव जी ,
निसंदेह साहित्यिक चोरी एक अधम नैतिक अपराध है .मगर नारी की निजता का ख़ास रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए .कुछ भाई 'चोरिनी' के फोटो तक भी जा पहुंचे ऑर उसके नकली असली के फर्क की फतासी मे खो गए .आप को मैंने व्यक्तिगत कुछ नही कहा ,लेकिन जो वातावरण बन रहा था ,वह शिष्ट परम्पराओं को कहीं अतिक्रमित करता लग रहा था .रही बात द्रोपदी का तो वह पौराणिक उद्धरण सहज था ,द्रोपदी ने भी कुछ गलती की थी पर ऐसी नही कि सरे आम चीर हरण का त्रास झेले. 'सबसे कठिन जाति अवमाना'- हमने उस मोहतरमा को अपनी बिरादरी से बाहर कर दिया, बहुत है .फिर भी मेरी टिप्पणी से किसी का मन दुखा है तो क्षमा प्रार्थी हूँ ,दरअसल चिट्ठे की मूल प्रवृति ही है अपने मन की बात बेलौस कह देना .इहाँ न गोपनीय कछू राखउ .
चरैवेति ..चरैवेति ......
मनु जी के लिए एक टीज़र-क्या सचमुच सूर्पनखा की नाक ही काटी गयी थी ,या इसका निहितार्थ कुछ ऑर भी हो सकता है -हिंट यह है कि नाक सम्मान की सूचक है ?
अरविन्द जी को पुनः प्रणाम ।
हिन्दयुग्म ने कोई ऐसा कार्य नही किया, जो किसी नारी के सम्मान को ठेस पहुँचाये, रही बात निजता को अनावृत करने की तो यह तो हर अपराधी के साथ होना चाहिये, (और होता भी है ) सिर्फ अपने से अलग कर लेना॰॰॰॰॰यह कोई सज़ा नही होती ।
हो सकता है आप मेरे से इत्तफाक न रखे, किन्तु माननीय, "लक्ष्मण" ने भी सिर्फ यहां "नाक" काटने की चेष्टा ही की है,दण्डात्मक कार्रवाही तो हुई ही कहाँ है, मात्र उस महोदया का परिचय मात्र करवाया गया है, जो ज़रुरी भी है, और कुछ नही तो कम से कम सभी से रुबरू तो हो॰॰॰॰॰॰
भवदीय,
आर्यमनु, उदयपुर ।
इस प्रकार के कृत्य की मै निन्दा करता हूँ।
पर महोदया के ईमेल को सर्वजनिक किया जाना उचित नही है। भले उन्होने गलती की है किन्तु आपको यह काम अपने स्तर तक रख कर करना चाहिए न सामूहिक रूप से।
कोई आप को अपना ईमेल व्यक्तिगत विश्वास के साथ देता है यदि आप उसे सर्वाजनिक करते है तो निश्चित रूप भागी प्रतिभागी का आप पर से विश्वास उठेगा।
अरविंद जी,
बिल्कुल नारी की निजता का खास ध्यान रखना चाहिये। पर मैं तो इतना ही कहूँगा कि अगर "मंज़िल जी" तक ये बात पहुँच चुकी है तो उन्हें कम से कम माफी तो माँगनी ही चाहिये। वरना ये तो बेशर्मी ही कही जायेगी। गलती की माफी यदि माँग लें तो मुझे लगता है कि ये उनके लिये अच्छा ही रहेगा और यहाँ हर कोई माफ कर देगा। इसमें मुझे कोई संदेह नहीं।
प्रमेंद्र भाई, मंज़िल जी ने पहले ईमेल बताने से मना किया था। तब उनका पता किसी को नहीं बताया गया। तब ऐसा लगा कि उनके विचार बहुत अच्छे हैं। लेकिन उनका सामने न आना इस समय नाटक लग रहा है।
ऐसी शर्मनाक घटना की पुन्राव्रिती ना ्हो इसके लिये हमे अवनीश जी की तरह चौकन्ना रहना होगा....
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रणधीर..
ye to bahot accha hua... kabse hum inki kavitaon ko orkut communities me darjano ke hisab se chhapte dekh rahe they... kis tarah log ye kaam karte hain... meri samjh se bahar hai...
यह काफी शर्मनाक और कष्ट देने वाली हरकत है...निंदनीय है .
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