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Monday, February 23, 2009

शांति दूत


हे कृष्ण
ये परम्परा शुरु हुई थी तुमसे
और इसीलिए शायद आज भी जीवित है

आज भी असफल होते हैं शांति-दूत
आज भी बजता है युद्ध का बिगुल
और आज भी शान्ति स्थापित करने के लिए
भेजे जाते हैं
टैंकों पर सवार
हथियारों से लैस.....
योद्धा

लेकिन क्यों आज
दोनो पक्षों में से
किसी पक्ष से
मध्य में खड़ा होकर कोई योद्धा
अपने हथियार डालते हुए यह नहीं पूछता
कि शायद जो उधर खडा है वो मेरा अपना है
क्यों आज मध्य में खड़े किसी रथ पर
कोई कृष्ण किसी अर्जुन को
गीता का सन्देश नहीं देता

समस्या तुम्हारी उसी युग में समाप्त हो गई थी
लेकिन
हमारे प्रश्नों के उत्तर
नहीं मिल पा रहे हैं आज भी

क्यों आज असम्भव हो रहा है
यह निश्चित कर पाना
कि कौन सा पक्ष धरूँ
और कौन सा अधर्म करूँ?

यूनिकवि- गुलशन सुखलाल

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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

संगीता स्वरुप ( गीत ) का कहना है कि -

गुलशन जी,
बहुत अच्छा रूपक लिया है.
क्यों आज असम्भव हो रहा है
यह निश्चित कर पाना
कि कौन सा पक्ष धरूँ
और कौन सा अधर्म करूँ?

गहरी सोच लिए प्रश्न है .
सुंदर रचना के लिए बधाई.

Divya Narmada का कहना है कि -

हनुमान एवं अंगद श्री राम के शांति दूत बनकर लंका गए और असफल होकर लौटे थे. आपने दोनों को भुला दिया.

sanjivsalil.blogspot.com

Riya Sharma का कहना है कि -

अपने हथियार डालते हुए यह नहीं पूछता
कि शायद जो उधर खडा है वो मेरा अपना है

गुलशन जी !!!!

वास्तव में आज भी कुछ प्रश्न अधूरे हैं उत्तर के अभाव में ..
दमदार,अर्थपूर्ण अद्भुत भाव !!!!

सादर !!!

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

बहुत अच्छा गुलशन जी, ये पंक्तियाँ वास्तव में पसंद आई :

लेकिन क्यों आज
दोनो पक्षों में से
किसी पक्ष से
मध्य में खड़ा होकर कोई योद्धा
अपने हथियार डालते हुए यह नहीं पूछता
कि शायद जो उधर खडा है वो मेरा अपना है
क्यों आज मध्य में खड़े किसी रथ पर
कोई कृष्ण किसी अर्जुन को
गीता का सन्देश नहीं देता

वैसे जो आचार्य जी ने कहा है उस पर भी ध्यान दें वैसे कविता बहुत अच्छी है .....

manu का कहना है कि -

कविता की ऑर
बढ़ते कदम...
पहली ठीक ठाक रचना के लिए
बधाई स्वीकार करें
वाकई अच्छा प्रयास....

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