फटाफट (25 नई पोस्ट):

Saturday, January 10, 2009

ख्याल बचपने से कभी चंबल नहीं होते


प्रकाश बादल बे-बहर ग़ज़ल लिखते हैं, लेकिन इनके तेवरों से सदा से ही हमारे निर्णायकों को प्रभावित करते रहे हैं। इससे पहले भी इनकी एक इसी तरह की रचना प्रकाशित हो चुकी है।

पुरस्कृत रचना

चिकने चेहरे इतने भी सरल नहीं होते।
ये वो मसले हैं जो आसानी से हल नहीं होते।

कुछ ही पलों की चमक और खुशबू इनकी,
ये फूल किसी का कभी संबल नहीं होते।

भूखों में बाँट दीजिए जो बचा रखा है,
जीवन के हिस्से में कभी कल नहीं होते।

शायर वो क्या, क्या उनकी शायरी,
जो ख़ुद झूमती हुई ग़ज़ल नहीं होते।

कोख़ मां की किसी को न जब तलक मिले,
बीज कैसे भी हों, फ़सल नहीं होते।

विवशताओं ने पागल कर दिया होगा,
ख्याल बचपने से कभी चंबल नहीं होते।

जम गई होगी वक्त की धूल वरना,
आईने की प्रकृति में छल नहीं होते।

प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, ५॰७५, ७॰२५
औसत अंक- ५॰८३३३
स्थान- पाँचवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ४, ५॰८३३३ (पिछले चरण का औसत
औसत अंक- ५॰६१११
स्थान- दूसरा


पुरस्कार- कवि गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल' द्वारा संपादित हाडौती के जनवादी कवियों की प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह 'जन जन नाद' की एक प्रति।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

12 कविताप्रेमियों का कहना है :

Riya Sharma का कहना है कि -

चिकने चेहरे इतने भी सरल नहीं होते।
ये वो मसले हैं जो आसानी से हल नहीं होते।

सकारात्मक देखें तो..

वो मसले ही क्या
जो आसानी से हल हो जायें

आखरी पंक्तियाँ भी भावना प्रधान हैं

सुंदर लेख !!!

"अर्श" का कहना है कि -

प्रकाश जी को मेरे तरफ़ से ढेरो बधाई,बहोत खूब....


अर्श

Anonymous का कहना है कि -

प्रकाश जी, सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें |

Nikhil का कहना है कि -

अच्छा है...
निखिल

Unknown का कहना है कि -

वाह
बढ़िया हज़ल लिखी...
पढ़कर बहुत अच्छा लगा

सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

अगर ये बहर में होती तो ग़ज़ल कहलाती और शायद प्रथम आती,दूसरे स्थान के लिए बधाई

सुमित भारद्वाज

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

विवशताओं ने पागल कर दिया होगा,
ख्याल बचपने से कभी चंबल नहीं होते।
बहुत अच्छा प्रकाश जी..
बधाई..

manu का कहना है कि -

आओ मेरे बे-मीटरी दोस्त,
दोबारा यूनिकवि की बधाई स्वीकारो ...सुंदर विचार लिए अच्छी ग़ज़ल ...
पिछली बार तो आपकी फोटो भी छपी थी ..आज कहाँ है..?

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

प्रकाश जी
बहुत ही आजाद ख्यालों मैं लिखी सुंदर ग़ज़ल
मजा आ गया पढ़ कर

आप को बहुत बहुत बधाई

Anonymous का कहना है कि -

prakash ji,sachmuch kamaal likha hai aapne.badhai
ALOK SINGH "SAHIL"

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

भूखों में बाँट दीजिए जो बचा रखा है,
जीवन के हिस्से में कभी कल नहीं होते।

कोख़ मां की किसी को न जब तलक मिले,
बीज कैसे भी हों, फ़सल नहीं होते।

वाह ......!

प्रकाश जी
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल ....
मेरे तरफ़ से ढेरो बधाई...

शारदा अरोरा का कहना है कि -

काबिले तारीफ़ हैं ये पंक्तियाँ
'विवशताओं ने पागल कर दिया होगा
ख्याल बचपने से कभी चम्बल नहीं होते ' |

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)