यूनिकवि प्रतियोगिता के तीसरे स्थान पर हम सुरेन्द्र कुमार अभिन्न की कविता लेकर आये हैं। यमुना नगर (हरियाणा) में जन्मे अभिन्न अंग्रेजी भाषा और साहित्य में स्नातकोत्तर (एम.ए. व एम फिल्. ), यात्रा एवं पर्यटन प्रबंधन में स्नातकोत्तर (एम.टी.ए.) जैसी शिक्षाएँ ली हैं और आबकारी एवं कराधान अधिकारी के रूप में सेवारत हैं। सुरेन्द्र को अच्छा साहित्य (विधा चाहे कोई भी हो) पढना और उस पर चिंतन-मनन करना पसंद है।
पुरस्कृत कविता- अपने खिलाफ़
उजालों में पड़ी सच्चाई से मुंह मोड़ने वाले,
खोजेगा ख़ुद को अंधेरों के दरमियाँ कैसे
सुनाई न दी चीख जिसे मजलूम की,
समझेगा कुरान की वो खामोशियाँ कैसे
तोड़ेगा जब शाख से परिंदों के घोसले ,
बचायेगा मुसीबतों से अपना आशियाँ कैसे,
मैं ही गवाह हूँ अपने गुनाहों का चश्मदीद,
खोलूं खिलाफ अपने अपनी जुबान कैसे
पूछा न करो ख़त में के हम यहाँ कैसे,
समझ लो अपने शहर के हालत वहाँ कैसे
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५, ६, ६॰८, ७
औसत अंक- ५॰९६
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ७, ५॰९६ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰६५३
स्थान- तीसरा
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'समर्पण' भेंट करेंगे।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
हज़ल कह सकतें है आप इसे और हज़ल लिखना अच्छा साहित्य नहीं कहलाता या तो ग़ज़ल सीखें या छंद मुक्त लिखें नव गीत लिखना आप को जल्द आ जायेगा |ग़ज़ल के लिए प्रारम्भिक ज्ञान तो युग्म पर ही उपलब्ध है |निर्णायक भी ध्यान देन हज़ल को पुरस्कृत कर आप नव लेखकों को ग़लत लिखना की आदत डालेंगे जो साहित्य के लिए ठीक न होगा |
इस रचना की हर पंक्ति का पहला अक्षर ही उजालों'१२२
खोजेगा २१२,के अलावा भी ग़ज़ल सिखाने के लिए जितने दोष बताये जाते हैं वे सब इस रचना में हैं |इसलिए याने दोष सिखाने के लिए यह एक अच्छा उदाहरण हो सकती है|यह किसी दुर्भावना से नहीं ,मार्गदर्शन हेतु लिखा है मनीष
पूछा न करो ख़त में के हम यहाँ कैसे,
समझ लो अपने शहर के हालत वहाँ कैसे
Bahut badhiya Ghaal hai. Badhayi.
*Ghaal
Maaf kijiye. Ghazal likhna chaahti thi, typing mistake.
Ab aapne Ghazal likhi hai ya Hazal, aap ki marzi jo naam dein.
Mujhe phir bhi achchi hi lagegi :-)
"Congrates for this wonderful achievement, hope to see you on top one day, wish u all the best "
Regards
सुरेन्द्र जी, आपने बहुत सुंदर पद्य लिखा है. मुझे ग़ज़ल के बारे में कोई जानकारी नही है और मुझे लगता है की जो बात दिल को न छू सके उसे तुम ग़ज़ल के नियमों में लिखो तो भी कोई फायदा नही. आप लिखते रहिये. किसी ने कहा है की मैं एक ही समय में सबको खुश नही कर सकता. मेरा विचार है की कविता सिर्फ़ वो है जिसे पढ़कर अपना मन खुश हो जाए.
गज़ल निस्संदेह ही बहुत अच्छी है|
बस एक observation है - यूनिकवि प्रतियोगिताओं में गज़लें निरंतर ही बाज़ी मार रहीं है| इस बार की पुरुस्कृत कविताओं में से चार अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से तीन गज़ले हैं|
यदि पहली पंक्ति को ढीक कर ले और जुबान को जुबां कर ले तो ग़ज़ल हो जायेगी |
बधाई
-- अवनीश
मनीष जी, R.C.जी,सीमा जी,ममता जी,पुष्कर जी और अवनीश जी आप सब का अपना बहुमूल्य समय निकल कर मुझे पढने और अपनी अपनी योग्य टिप्पणियाँ देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.मनीष जी जैसा की आपने लिखा है की इस रचना को ग़जल नही हजल कह सकते है ........और हजल लिखना अच्छा साहित्य नही कहलाता ....मै आपके विचारों का स्वागत करता हूँ और आपके ग़ज़ल ज्ञान के आगे अपने आप को कहीं भी खड़ा नही पाता हूँ .. परन्तु मैंने न तो इसे ग़ज़ल लिखा न ही हज़ल , दिल से निकले कुछ शब्द मात्र थे जिनमे कुछ सवाल ख़ुद से थे कुछ दूसरो से ....
मनीष जी जहाँ तक ग़ज़ल का सवाल है ग़ज़ल किसी की बांदी नही है जो आज भी घूँघरू,गजरे पहन कर महफिल में समाज के ठेकेदारों का दिल बहलाए ..ग़ज़ल भी कविता की तरह सव्छंद है और होनी चाहिए ,मै मानता हूँ की तकनीकी रूप से ग़ज़ल में बहर-वजन ,काफिया रदीफ़ और मतला महत्वपूर्ण होते हैं ,मेरी रचना में तो ऐसा कुछ भी नही है .क्योंकि रचनात्मक क्षणों में भावों का प्रवाह प्रबल होता है और उस समय पिंगल पर ध्यान केंद्रित होने से रचना की आत्मा घायल हो जाती है,क्योंकि पिंगल साधन है साध्य नही ...ग़ज़ल या किसी भी विधा में त्रुटिहीन लिखना ...कलापक्ष से सही हो सकता है भाव पक्ष से कदापि नही यदि रचना पाठक का मन छूने में असमर्थ हो और वह कला पक्ष से स्वस्थ होते हुए भी अपने उद्देश्य में नाकाम रह जाती है.बाकि मै कोई स्थापित कवि या गजलकार नही हूँ आप जैसे महान लोगों को पढ़ कर.प्रभावित होकर कुछ टूटा फूटा लिख लेने की कोशिश कर लेते है .... मार्गदर्शन के लिए पुन: धन्यवाद ,
RC ji हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया, सीमा जी आप की शुभकामनाये बेकार नही जाएँगी,ममता जी आपका कथन " मुझे लगता है की जो बात दिल को न छू सके उसे तुम ग़ज़ल के नियमों में लिखो तो भी कोई फायदा नही. आप लिखते रहिये. किसी ने कहा है की मैं एक ही समय में सबको खुश नही कर सकता. मेरा विचार है की कविता सिर्फ़ वो है जिसे पढ़कर अपना मन खुश हो जाए." मेरे जैसे अनेक कविता प्रेमियों के लिए बहुत प्रेरणादायक साबित होगा,
पुष्कर जी आप की ओब्सेर्वेशन बिल्कुल सही है और आपका बहुत बहुत अभिनन्दन ,अवनीश जी आप ने जो कहा है वह बहुत सही कहा है जुबान को ज़ुबां होना चाहिए था .
are yaar...!!
ye 2 saal puranaa page kahaan se khul gayaa hamse...?
khair...
bhaaw paksh bahut sunder hai...
kalaa paksh utna nahin...
haan,
likhte rahiyegaa...
congrts sure ji, aap ki rachna bemisaal hai,
haardik badhai
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