ग़ज़ल- प्रेमचंद सहजवाला
रास्तों से गपगपाते चल दिये
बारहा ठोकर भी खाते चल दिये
हमसफ़र कोई मिला तो खुश हुए
राग उल्फत का सुनाते चल दिये
वक़्त जब बोला कि मंज़िल दूर है
बेवजह हम खिलखिलाते चल दिये
गर्मियों में छांव में बैठे कहीं
सर्द रुत में थरथराते चल दिये
हर हकीक़त से गले मिलते रहे
ख़्वाब से भी तो निभाते चल दिये
हाथ में परचम तमन्ना के लिए
ये कदम आगे बढ़ते चल दिये
---प्रेमचंद सहजवाला
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
हर हकीक़त से गले मिलते रहे
ख़्वाब से भी तो निभाते चल दिये
bahut hi achchha laga
badhai
rachana
अच्छी गजल
आलोक सिंह "साहिल"
वक़्त जब बोला कि मंज़िल दूर है
बेवजह हम खिलखिलाते चल दिये
गजब प्रेम जी !
आप गजल के प्रेमचन्द बन सकते है!
वक़्त जब बोला कि मंज़िल दूर है
बेवजह हम खिलखिलाते चल दिये
हाथ में परचम तमन्ना के लिए
ये कदम आगे बढ़ते चल दिये
Yeh do sher achhe lage premchand ji..
Very good Ghazal!
हर हकीक़त से गले मिलते रहे
ख़्वाब से भी तो निभाते चल दिये
कुब भला मंजूर बनना था गधे
दोस्तों हम हिनहिनाते चल दिए
प्रेमचंद सहजवाला जी,
आपकी पिछली गजलो की तुलना मे इस मे कुछ कमी है
ये अच्छी गजल है पर दिल को छू ना सकी।
कुछ गजल की जगह गीत जैसी लग रही है
सुमित भारद्वाज
वैसे काफिया 'आते' और रदीफ चल दिये सही तरह निभा रखा है
लेकिन आंतिम शे'र मे वो बिगड गया और 'ते' रह गया
शायद आप बढाते लिखना चाहते थे
सुमित जी, अन्तिम शेर इस प्रकार है -
हाथ में परचम तमन्ना के लिए
ये कदम आगे बढ़ाते चल दिए .
केवल टाइप की गलती के कारण 'बढ़ाते' की जगह 'बढ़ते' आ गया. क्षमा चाहूँगा.
प्रेमचंद जी आपकी ग़ज़ल एक लयात्मक रूप में ढली हुयी है पढ़कर अच्छा लगा
आप में पहले शेर में बारहा शब्द का प्रयोग किया है इसका अर्थ हो सके तो बता दीजियेगा
प्रिय त्रिपाठी जी, 'बारहा' का अर्थ = अक्सर, कई बार.
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