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तस्वीरों में हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2008


हिन्द-युग्म ने २८ दिसम्बर की दोपहर २ बजे से हिन्दी भवन, आईटीओ में अपना वार्षिकोत्सव मनाया। जिसकी विस्तृत रपट आप पढ़ चुके हैं। आइए कैमरे के माध्यम से देखते हैं वहाँ की रूहत और रंगत।

मंच की शोभा प्रदीप शर्मा, प्रो॰ भूदेव शर्मा, राजेन्द्र यादव(मुख्य-अतिथि),
डॉ॰ सुरेश कुमार सिंह और डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' (संचालक)


सभा को संबोधित करते सेंट्रल बैंक के सहायक महाप्रबंधक श्रीधर मिश्र


अतिथियों को ध्यान से सुनते हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी


काव्य-पाठ करतीं युवा कवयित्री रूपम चोपड़ा


हिन्द-युग्म के परिचय की स्लाइड


काव्य-पाठ करते यूनिकवि पावस नीर


फुरसत के पलों में सुनीता चोटिया और नीलम मिश्रा


काव्य-पाठ करते यूनिकवि निखिल आनंद गिरि


काव्य-पाठ करते कविहृदयी फोटोग्राफर मनुज मेहता


अल्का सेहरावत, शिवानी सिंह


काव्य-पाठ करते यूनिकवि गौरव सोलंकी


चोखेरबाली की मॉडरेटर सुजाता तेवतिया के साथ सुनीता चोटिया
इनके पीछे हैं श्री तथा श्रीमती महेन्द्रू


काव्य-पाठ करतीं कवयित्री शोभा महेन्द्रू


कार्यक्रम के बाद मुख्य-अतिथि से उनकी प्रतिक्रिया लेते शैलेश भारतवासी


कार्यक्रम की शुरूआत से पहले की तस्वीर


॰॰॰॰॰और भी तस्वीरे हैं, जिन्हें लेकर हम अगली पोस्ट में उपस्थित होंगे।

पूरी गली दूर तक खामोश है


गली में आज सन्नाटा है,
ना ही कोई आहट ना ही कोई शोर,
मेरी हाथ की घड़ी में
शाम अभी बस ढली ही है,
फिर गली इतनी गुमसुम क्यूं

मिसेज गिल भी अपनी कुर्सी डाले नहीं मिली
बच्चों का शोर, किलकारियां,
आज क्या हुआ है यहाँ

लड़कियों की चहलकदमी और उनके लिए
नुक्कड़ पर
हर शाम जमने वाली लड़कों की टोली
जिनका चेहरा एक आदत सी बन गई है
अपने वक्त पर नहीं मिले.
आज न कोई पार्किंग को लेकर झगड़ा,
न कोई खुले मेंनहाल पर चर्चा.

पूरी गली दूर तक खामोश है
अलबत्ता छोटे मन्दिर में कोई दिए जला गया है
दीवाली भी तो नज़दीक है,
देर रात तक टेलीविज़न से आती
रीयलिटी शो की आवाजें
सन्नाटा लील गया है आज.
गली के मोड़ का पनवाड़ी भी नदारद है,

सोचा थोड़ा आगे तक हो आऊं
शायद कोई मिल जाए
पर यहाँ भी
गली के कैनवास पर
अंधेरे का रंग लिए सन्नाटा हर कोने पसरा पड़ा है.

श्रीवास्तव जी के घर के बाहर
कुछ चप्पलें उतरी हुई हैं,
सुख हो ! रब्बा

तभी रात का पहरेदार दिखा,
उसने भी दूर से ही बुझा सा सलाम किया,
मैंने उससे पुछा,
आज रौनक को क्या हुआ,

ओह!!!
कल गली के लड़के मुंबई गए थे- घूमने,
वहां के लोगों ने
दो को मार दिया.

मनुज मेहता

तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगेहबानी दे दी


तेरे मकबूल हाथों में जिंदगानी दे दी,
मैंने अपनी मुह्होबत की निशानी दे दी

तू करम है, तेरे नाम का दम भरता हूँ,
मैंने सिये हुए होठों को ज़बानी दे दी

एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी

कितना मुश्किल था मुह्होबत का मुक्कमल होना
तूने देखा मेरे ज़ज्बात को, रवानी दे दी

तू फ़रिश्ता है, मासूम सा दिल रखता है
तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगेहबानी दे दी


निगेहबानी - सुरक्षा
मनुज मेहता