तेरे मकबूल हाथों में जिंदगानी दे दी,
मैंने अपनी मुह्होबत की निशानी दे दी
तू करम है, तेरे नाम का दम भरता हूँ,
मैंने सिये हुए होठों को ज़बानी दे दी
एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी
कितना मुश्किल था मुह्होबत का मुक्कमल होना
तूने देखा मेरे ज़ज्बात को, रवानी दे दी
तू फ़रिश्ता है, मासूम सा दिल रखता है
तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगेहबानी दे दी
निगेहबानी - सुरक्षा
मनुज मेहता
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
तू फ़रिश्ता है, मासूम सा दिल रखता है
तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगेहबानी दे दी
bahut sunder shabdh
visit my new post if possible
regards
us maasoom fariste ko humne bhi dekhaa ,aapki documentary movie me aapke introduction me .may god bless him ,and your family.
एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी
बढ़िया है ...पर कुछ पंक्तिया सामान्य लगी.
"तू फ़रिश्ता है, मासूम सा दिल रखता है
तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगेहबानी दे दी"
इस शे'र की सोच (thought/idea) मुझे बड़ी पसंद आई | मगर 'मासूम' और 'निगेहबानी' देना, लगा जैसे साथ साथ नहीं जा रहे | हाँ, वो मासूम है, माना, ....... निगेहबानी दे दी ये भी ठीक है, .....
मगर यदि कोई निगेहबानी दे रहा है तो उसका उतना सशक्त होना ... या इस तरह से कुछ .. पहले मिसरे में दिखना चाहिए था|
शायद!
Also liked your choice of words and art of expression, good attempt.
RC
एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी
बढ़िया है....पुराने लोगों को फिर से लिखता देख अच्छा लगता है....
bahut achha...likha hai aapne......
तू फ़रिश्ता है, मासूम सा दिल रखता है
तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगेहबानी दे दी
!!
bahut dino baad aj maine Hindiyugm khola aur itni achhi rachna padhne ko mili....
keeep it up!!
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randhir kumar...
उम्दा गज़ल।
दिल बाग-बाग हो गया।
कभी-कभार किसी गज़ल को पढकर लगता है कि यह हर मामले मे मुसल्लम है।
बधाई स्वीकारें।
वैसे तो सारे शे'र पसंद आये पर ये वाला सबसे अच्छा लगा
एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी
सुमित भारद्वाज
मेरी इस ग़ज़ल को आप सब ने सराहा, प्यार दिया इसके लिए तहे-दिल से शुक्रिया, दीपाली जी को मैं कहना चाहूँगा की मेरा प्रयास जारी रहेगा और कोशिश करूंगा की अगली ग़ज़ल में कुछ असामन्य दे सकूं.
आर सी जी को भी मेरी तरफ़ से शुक्रिया की उन्होंने इतना समय निकाल कर प्रतिक्रिया पोस्ट की, जैसा की आपने कहा की फ़रिश्ता मासूम है पर सशक्त होना चाहिए, वो है जनाब, फ़रिश्ता तो मासूम ही होगा तभी तो वो फ़रिश्ते जैसा है और यहाँ फ़रिश्ते ने अपनी नज़र-ऐ-इनयात की हैं मेरे घर पर और जहाँ फ़रिश्ते किनाज़र हो वहां सुरक्षा तो होगी ही न. वो जहाँ एक तरफ़ मासूम है वही सुरक्षा देने वाला भी है. आयरनी है यहाँ.
हर शेर बहुत अच्छा है ये बहुत सुंदर लगा
एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी
सादर
रचना
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