गली में आज सन्नाटा है,
ना ही कोई आहट ना ही कोई शोर,
मेरी हाथ की घड़ी में
शाम अभी बस ढली ही है,
फिर गली इतनी गुमसुम क्यूं
मिसेज गिल भी अपनी कुर्सी डाले नहीं मिली
बच्चों का शोर, किलकारियां,
आज क्या हुआ है यहाँ
लड़कियों की चहलकदमी और उनके लिए
नुक्कड़ पर
हर शाम जमने वाली लड़कों की टोली
जिनका चेहरा एक आदत सी बन गई है
अपने वक्त पर नहीं मिले.
आज न कोई पार्किंग को लेकर झगड़ा,
न कोई खुले मेंनहाल पर चर्चा.
पूरी गली दूर तक खामोश है
अलबत्ता छोटे मन्दिर में कोई दिए जला गया है
दीवाली भी तो नज़दीक है,
देर रात तक टेलीविज़न से आती
रीयलिटी शो की आवाजें
सन्नाटा लील गया है आज.
गली के मोड़ का पनवाड़ी भी नदारद है,
सोचा थोड़ा आगे तक हो आऊं
शायद कोई मिल जाए
पर यहाँ भी
गली के कैनवास पर
अंधेरे का रंग लिए सन्नाटा हर कोने पसरा पड़ा है.
श्रीवास्तव जी के घर के बाहर
कुछ चप्पलें उतरी हुई हैं,
सुख हो ! रब्बा
तभी रात का पहरेदार दिखा,
उसने भी दूर से ही बुझा सा सलाम किया,
मैंने उससे पुछा,
आज रौनक को क्या हुआ,
ओह!!!
कल गली के लड़के मुंबई गए थे- घूमने,
वहां के लोगों ने
दो को मार दिया.
मनुज मेहता
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
28 कविताप्रेमियों का कहना है :
ओह!!!
कल गली के लड़के मुंबई गए थे- घूमने,
वहां के लोगों ने
दो को मार दिया.
bahut marmik
कविता मैं मार्मिकता तो है परन्तु ग़लत बातो का चित्रण हुआ है .....मुंबई के लोगों को ग़लत अर्थ में लिया गया है . मैं मुंबई मैं ही हूँ और स्तिथि ऐसी नहीं है की मुंबई के लोगों पर प्रश्न उठाया जाए . कुछ लोगों की वजह से मुंबई के लोगों को दोष देना बिल्कुल ग़लत है और इन सब बातो से समाज और लोगों के मन मैं और बुरे विचार पनपते हैं और समाज का और विघटन होता है . मुंबई के आम लोगों का इस सब से कोई लेना देना नहीं है. वास्तविकता यह है की यह सब राजनितिक षडयंत्र और चाल है जिसमें अंततः पिसना आम आदमी को ही है चाहे वो मराठी हो या उत्तर भारत से
निपुण आप बिल्कुल ठीक कह रहें हैं ,जैसे मीडिया राज को कव्हरेज दे रहा है यही तो उसका मंसूबा है राज ठाकरे का ,घिनौनी राज नीति को बढावा न देना चाहिए न मीडिया में न साहित्य में ,नियंत्रक ध्यान देन -a
बिल्कुल सही है | मै भी मुम्बई से ही हूँ " निपुनजी" की तरह |
मुम्बई में जो हुया उसपर वंहा के लोगों को इस तरह से देखना या समझना स्वाभाविक ही है |
मूक दर्शक बने सब लोग कहीं ना कहीं जिमेद्दार हैं |
-- अवनीश
मैं मुम्बई में नहीं हूँ। न ही कभी मुम्बई गया हूँ । यह भी समझ सकता हूँ कि सभी मुम्बई वासी एक जैसे नहीं होते।
मगर यह भी सच है कि तश्वीर कभी झूठ नहीं बोलती। मनुज मेहता को मैं एक फोटोग्राफर की तरह जानता हूँ। पहली बार उनकी कलम से खींची तश्वीर पढ़ने को मिली---------जिसे पढ़कर कहा जा सकता है कि वाह! क्या चित्र खींचा है। अब यह तश्वीर मुम्बई वासियों को विचलित करती है तो इसमें तश्वीर खींचने वाले का क्या दोष ? जिस गली में दो-दो मौतें होंगी वहाँ का दृश्य तो ऐसा ही होगा न ।
---देवेन्द्र पाण्डेय।
मैं यह नहीं कहता कि जो हुआ सही हुआ......बेशक वो सब ग़लत था ........ परन्तु मीडिया कि वजह से हद्द से जयादा दिखाया गया . वो सब तो टी आर पी के लिए था .परन्तु इससे मुंबई कि छवि ख़राब हुई जबकि मुंबई के आम लोग ऐसा नहीं सोचते घटना हुई वो ग़लत थी और उसके पीछे कुछ ही लोग थे ...और उसके साथ उनके राजनीतिक स्वार्थ निहित थे ....परन्तु मैं यह भी मानता हूँ कि इन घटनाओ के पीछे कुछ ऐसा था जो किसी को नहीं दिखा ..... बिना कुछ कारण ऐसी हलचल नहीं होती.........
एक बात और कहना चाहूँगा कि ऐसी कवितायेँ और लेख यहाँ प्रकाशित नहीं होने चाहिए क्युकी इनका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है |
मनुज जी... सामयिक कविता है.. और मार्मिक भी है। सच ही लिखा है आपने..
वैसे कविता में मुम्बईवासियों के लिये कुछ कहा हो..ऐसा तो मुझे कहीं से नहीं लगा। वैसे मुम्बईवासी ये तो मानेगा ही कि गुंडा’राज’ है? नफरत की राजनीति की भेंट गरीब टैक्सी ड्राईवर भी चढ़ रहे हैं। हाँ, मीडिया जरूरत से ज्यादा दिखाता है, पर सच तो ये है ही।
bahut bhavuk hai...
मैं यह नही कहता की हर मुंबई वासी एक सा है जैसे हर मुस्लिम एक सा नही ही, पर जो हुआ उसके ख़िलाफ़ किस मुंबई वासी ने आवाज उठाई? कौन सी NGO सामने आई और किस मुंबई के MP या MLA ने राज ठाकरे के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की? सिर्फ़ यह कह देने से की हर मुंबई वासी एक सा नही समाधान तो नही हुआ न. अगर देहली में मुमाबी वालो के ख़िलाफ़ इस तरह का अभियान छेद दिया जाए तो? अगर बजरंग दल यहाँ यह जिम्मा उठा ले की कोई भी मुंबई वासी यहाँ काम नही कर सकता तो? हम भी यही कहेंगे हमारा तो लेने देने नही है औ हर कोई एक जैसा नही होता. यह प्रश्न अवनीश जी उर निपुण जी से है.
गीता-ओ-कुरान जला दो, बाइबल का भी करो प्रतिवाद, आओ मिल कर लिखें हम एक महाराष्ट्रवाद.
बहुत सामयिक रचना है....देश गृह-युद्ध की ओर बढ़ रहा है और हमें इस पर बेहद सतर्क रहना होगा....शब्दों के जरिये ही सही....
आपकी सूनी गली टीस पैदा कर गई....क्या करें....हर ओर यही आलम है....
गली के कैनवास पर
अंधेरे का रंग लिए सन्नाटा हर कोने पसरा पड़ा है.
poori kavita acchi hain ,par ye line mujhe vishesh roop se achchi lagi ,
til ka taad banaane waale to har gali me mil jaayenge ,sahi waqt par sahi aawaj uthaane waale kahaan se aayenge ,badhai sweekaaren manuj ji
manuj ji ki kavita me dard hai,kintu mai maafi chahugi mujhe wo ek samachar sa laga jise kaivita ka roop diya gaya ho,
kafi samayik rachna hai,bhaw behad marmik.
ALOK SINGH "SAHIL"
कविता अच्छी है..पर थोडी विवादास्पद है...
सम्पूर्ण मुंबई वालो के लिए ऐसा नही कहना चाहिए....
वैसे कविता अत्यन्त मार्मिक और हृदयस्पर्शी है.
मनुज जी की बातों से मैं भी दरकार रखता हूँ। यकीनन पूरे मुंबई वाले दोषी नहीं है, लेकिन जो पीटे, जो मरे उनका क्या दोष था। और उन पीटने वालों, मरने वालों को किसने सहारा दिया, पीटे हुए हाल में वापल लौटा दिया गया कहकर कि उत्तर भारतीय हो, भागो। मेरे अनुसार तो मुंबई में रहने वाले वे उत्तर भारतीय भी दोषी हैं,जिन्होंने घर में समाचार देखा, फिर कहा कि ओह!!! कोई बात नहीं , मैं तो सुरक्षित हूँ!
और हाँ मैं मानता हूँ कि मीडिया टीआरपी के लिए बहुत कुछ करती है, लेकिन कभी उन लोगों से भी पूछिए जो महज परीक्षार्थी थे और ऎसे लौटे मानो मकतल से लौटे हों। सच्चाई पर परदा डालने या फिल्टर लगाने से सच्चाई का जोर घट नहीं जाता।
भले हीं मीडिया "राज" को कवरेज दे रही हो,भले हीं राजनीति गंदी हो और भले हीं हम भले मानुस के जैसे कीचड़ से अलग रहना चाहते हों,लेकिन इस बात को कौन झुठला सकता है कि गलत नहीं हो रहा। समाज का विघटान मनुज जी या हम में से किसी की भी कविता से नहीं होता, समाज का विघटन कायरता और पशुता से होता है।ध्यान देंगे!!!!
यह तो हर व्यक्ति मानता है कि बहुत ग़लत हो रहा है , परन्तु मुंबई मैं बैठा उत्तर भारतीय इंसान क्या मराठी माणूस के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दे???? जबकि वो जानता है कि असली अपराधी कोई और है ..... ४-५ मोटर बाईक आती हैं कुछ लोग मारपीट करते हैं या कोई झुंड आता है लोगों का . ये सब भाड़े के लोग ही हैं . इस बात को उत्तर भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति से परिचित लोग तो जानते ही होंगे कि ये काम कैसे किए जाते हैं
मुझे लगता है कि इस समय वो लोग कहाँ हैं जो मुंबई में उत्तर भारतीयों का दल बना के उसके नेता बनते हैं ......क्या उनके चुप रहने का मतलब उनके राजनीतिक स्वार्थ हैं ????????
इस घटना के बाद मैं भी बहुत दुखी था साथ ही मेरे आस पास के मराठी लोग भी उतने ही......क्युकी वो भी सच जानते थे.....
मुझे बस इस कविता की आखिरी पंक्तियाँ पढ़ कर बड़ा दुःख हुआ
"वहां के लोगों ने
दो को मार दिया."
गलती आपकी भी है निपुण।
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।
निपुण जी मेरा सवाल तो अभी भी वहीँ है. भाड़े के टट्टू तो हर जगह हैं, चाहे वो बम्ब ब्लास्ट की बात हो या कश्मीर का मुद्दा, राज ने तो यह साफ़ कर दिया है की महाराष्ट्र मराठिओं का है और उत्तर भारतियों का वहाँ कोई हक़ नही है. मुझे तो यह समझ नही आता की मुंबई के सियासतदान कर क्या रहे हैं, इतने घिनोने अपराध के बावजूद राज को जमानत मिल गई है. शायद हर कोई डरता है राज की गुंडागर्दी से और ऐसे में यह कह देना की आम आदमी का कोई लेना देना नही यह सबूत देता है की हर कोई कायर है. फिर मैं और आप भी अपवाद नही हैं.
विश्व दीपक तनहा जी मैं आपकी हर बात से सहमत हूँ. शायद इसलिए भी की मैं ख़ुद मीडिया से जुदा हुआ हूँ. अगर यह मान भी लें की मीडिया ने राज को ज्यादा कवरेज दी है तो कुछ ग़लत तो नही दिखाया उसे कोई भगवान् तो नही बनाया, निंदा ही की गई है, या लोग यह चाहते हैं की जो भी ग़लत हो रहा है उसे धक् दिया जाए? ये वही लोग कह सकते हैं जो ख़ुद इस बात से खुश हैं. कम से कम मीडिया ने आज आम भारतवासी को सतर्क तो कर दिया है की मुंबई जन खतरे से खली नही है, जो आदमी रेलवे स्टेशन से ही बाहर न निकल पाये तो क्या फायेदा जाने का. वो दरिंदा आख़िर चाहता क्या है? उत्तर भारतियों की मदद के बिना वो राज्य है क्या? फ़िल्म इंडस्ट्री की बात करें तो वहाँ भी नॉन महाराष्ट्रियन ही हैं.
मनुज जी ,
राज कौन होता है मुंबई किसकी है यह फ़ैसला लेने वाला ?
सच यह है की उसकी यहाँ की राजनीति मैं कोई पकड़ नहीं है तो उसने यह मुद्दा उठाया ताकि वो कुछ बेरोजगार लोगों को जिन्होंने जयादा दुनिया नहीं देखि उकसा सके .
रही बात सियासत दानो की तो वो इसलिए खामोश हैं क्युकी राज के इस गंदे खेल से उनको राजनीतिक फायदा होगा (वोट बैंक के रूप मैं ). इस बात जयादा तूल दे के उन सब का फायदा है जो की आम लोगों को कुचल कर अपने राजनितिक फायदे करते हैं .
मुंबई मैं उत्तर भारतीयों के सबसे बड़े संगठन के अध्यक्ष का भी आपने कोई बयां नहीं सुना होगा क्युकी वो भी अभी सत्ता मैं हैं और उनको अपने टिकेट की जयादा चिंता है .
मैं आप सब की बैटन से पूरा सहमत हूँ परन्तु बस मुझे बस यही लगा की वो पंक्ति कुछ दूसरे तरीके से कही जा सकती थी जिससे उसका भावः तो वही रहता और सरे जनमानस पर प्रश्न नहीं उठता .
अगर कुछ ग़लत कहा हो मैंने तो माफ़ी चाहूँगा
यहाँ पर मेरा इरादा किसी की भावनाओ को आहात करने का नही था बस मैं इन चीजों की तह तक जाने का प्रयास कर रहा था
यहाँ टिपण्णी देने के बजाये ऐसा क्यों न करे?
एक इमेल बनाते हैं जिसमे यह लिखेंगे के यह जो महाराष्ट्र में हो रहा है हम नौजवानों को अच्छा नहीं लग रहा | हम नहीं चाहते कोई खून खराबा हो, हम चाहते हैं के सारे प्रदेश के लोग मिल जुल कर रहे. और मुम्बई की जनता भी यही चाहती है.
जिसकी हिन्दी और सियासती ज़बान अच्छी हो, आप लोगों में से, ऐसा इमेल बनाये और हम सब दोस्तों में अनोंय्मुस की तरह फॉरवर्ड करे |
हम कितने बकवास इमेल फॉरवर्ड करते हैं, चलिए आज एक अच्छा काम करते हैं | और अपने दोस्तों से यह भी गुजारिश करे के उस इमेल को और आगे जितने ज़्यादा हो सके लोगों तक भेजे.
आइये इस बूँद से शुरुआत करते हैं, पूरा विश्वास है सागर ज़रूर बनेगा |
(इस देश के नौजवानों को इस तरह छिपकर टिप्पणियों में बहस करता देख दुःख हो रहा है| |अब ये न कहो के ये नेक काम लिखने वाला ही क्यों न करे | जैसा मैंने कहा, वक्तव्य अच्छा असरदार हो जो मेरा नही)
सोरी पुराने anonimus जी मैंने आपका copyrite लिया | भाईयो बहनों मैं दूसरा अनोंय्मुस हूँ वो नही जो टिपण्णी करते है
निपुण जी आपको माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नही है, आप समझदार हैं, चीज़ों को देख समझ पा रहे हैं पर उनका क्या जिन्होंने अपनी रोज़ी रोटी तक कोहो दी, मैं जानता हूँ ऐसे लोगों को जो वहां से भगा दिए गए क्यूंकि वो उतर भारत के थे. मैं मान सकता हूँ की पूरे महाराष्ट्र की तुलना में यह बहुत थोड़ा और कम जगह हुआ पर हुआ तो सही, जो हताहत हुए उसकी भरपाई तो ये राज ठाकरे नही करने वाला. मैं अगर कुछ बुरा कह गया हूँ तो माफ़ी चाहूँगा.
दैनिक जागरण-समाचार पत्र में आज एक खबर पढ़ी-- जिसे ईंटरनेट से भी पढ़ा जा सकता है--खबर जौनपुर जिले की है---
चिकत्सक बन्धुओं का शव पंहुचते ही बिलख पड़ा जनसैलाब
मुम्बई में मनसे व्दारा चलाये जा रहे हिंसक आंदोलन के दौरान हुई हत्या के दौरान मारे गये चिकत्सक बंधुओं के शव शुक्रवार को जब कल्याणपुर गांव पंहुचा तो वहाँ उपश्थित जन सैलाब की आंखों से आंसू छलक पड़े।--------
-----------------------।
-खबर पढ़कर इस कविता की फिर याद आई और मन हुआ यहाँ टाइप कर दूँ।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
बहुत ही दुखद समाचार है यह तो देवेन्द्र जी, मन एक बार फिर चलनी हो गया है. मन तो चाहता है की ऐसा कने वाले क सूई पर चढा दिया जाए. पर हाय हमारी व्यवस्था और विवशता.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)