सितंबर माह की यूनिप्रतियोगिता मे तेरहवें पायदान की कविता प्रियंका चित्रांशी की है। इनकी पिछली कविता जनवरी माह मे प्रकाशित हो चुकी है।
कविता: अक्षरों से बातें
अक्षरों
सुनो मेरी बात
आओ मेरे पास
मैं तुम्हारे लिए वेणी बनाउंगी
खयालो से भी नाज़ुक
जलपरी से भी खूबसूरत
ज़ज्बातो के जेवर पहना
एक अनुपम, अद्वितीय बाला बना
सोलह श्रृंगार कर
तुम्हे दुल्हन सा सजाऊँगी
तेरे रूप पे कुर्बान
कुछ फक्कड़, कुछ अनजान लोग
होंगे तेरे कद्रदान
करेंगे तुम्हारी पहचान
रत्न को परखते जोहरी के मानिंद
कुछ खुसरो, तकी मीर या ग़ालिब जैसे
रहस्यवाद और छायावाद में गुसल करते
प्रसाद, निराला और पन्त जैसे
तुझे भक्तिमार्ग में ले जा रहीम, रसखान
मीरा में बदल दें तो
प्रसिद्धि मिल जायेगी
ये सारे
अलग-अलग नामो से पुकारेंगे तुम्हे
इन सब से प्यार करना
किसी के ह्रदय पर कविता बन राज करना
किसी के उर नज़्म बन समाँ जाना
कोई शायरी कह आवाज दे शायद
तो किसी के लिए भीनी ग़ज़ल बन.....
जुबाँ से फिसल जाना
सभी के मन के अथाह सागर में
एक कोमल स्थान तो मिलेगा तुझे
ऐसा वादा है मेरा
एक निशब्द, अनजाना
लेकिन फिर भी जाना-पहचाना
अर्थयुक्त रिश्ता बन
बिन सवालों का जवाब तलाशे
दिल में राज करोगे तुम सारे
ऐसा नसीब सबका नहीं होता
कोई किसी के इतने करीब भी नहीं होता
मेरे निश्छल स्वभाव को पहचानो
चले आओ ......
कोई विनिमय नहीं
व्यापार नहीं
मेरा क्या ?
एक दिल ही है जों
बहल जाएगा
तुम्हारी इज्ज़त में इजाफा हो जायेगा
तो हे अक्षरों, शब्दों, मात्राओं, चन्द्र-बिंदियों
चले आओ
साथ में अल्प विराम और पूर्ण विराम
को भी लाओ
अब कैसी ये दूरी ?
कैसा फासला?
कैसा संकोच ?
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रियंका जी,
"होंगे तेरे कद्रदान
करेंगे तुम्हारी पहचान
रत्न को परखते जोहरी के मानिंद"
उधर आपने ‘जौहरी’ का नाम लिया, इधर बंदा हाज़िर...!
अक्षरों को सृजन-यज्ञ में सहभागी बनने हेतु भेजा गया आपका यह आमंत्रण सुन्दर है। बधाई!
कुछ-कुछ ऐसी ही एक रचना 30 अक्टूबर'10 को मैंने अपने ब्लॉग ‘जौहरवाणी’ पर पोस्ट की है। अंतर सिर्फ़ इतना है कि आप अक्षरादि... को बुला रही हैं, जबकि मैं विदा कर रहा हूँ। इस रोचक संयोग को अवश्य देखें। यह रही लिंक-http://jitendrajauhar.blogspot.com/2010/10/blog-post_30.html#comments
प्रियंका जी,
यदि बुरा न मानें तो विनम्रतापूर्वक एक बात कहूँ: बहुवचनीय संबोधन-शब्दों में अनुस्वार-प्रयोग वर्जित होता है।
अक्षरों का आवाहन पसंद आया...
कविता के कथ्य में नवीनता झलक रही है...बधाई
बहुत सुंदर कविता है प्रिया .अक्षरों को तुम्हे बखूबी अपने वश में करना आता है यही तुम्हारी लेखनी की खूबी है ...लिखती रहो :)
ek behad pyara sa khayal lekar likhi gayi hai ye kavita....kuch chhoti chhoti see baten hain jinka dhyan rakha jana chahiye tha..jaise
jazbaat apne aap me bahuvachan hai ..use "jazbaaton" likhne ki zaroorat nahi thi ...aur kisi ek vyakti/vastu ko ..ek hi kavita me "tere" aur "tumhare " dono tareeke se likha jana thoda sa khatkata hai...
kshma prarthi...
आप सभी का दिल से शुक्रिया...... आगे से इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखेंगे. खुश हूँ की लोगों ने सिर्फ पढ़ा ही नहीं बल्कि तकनीकी बारीकियों की तरफ ध्यान भी दिलाया. जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar जी आपके करना हमें अनुस्वार का ज्ञान हुआ.mahendra वर्मा जी आपको :-) स्वप्निल कुमार 'आतिश' आपके हर सुझाव का पालन किया जायेगा :-)
दिवाली मुबारक हो
शब्दों से संबोधन प्यारा लगा, न्यारा लगा! शब्द किस तरह कवि के मन की सुन्दरता को सशरीर , सजीव प्रस्तुतीकरण में सहायक होते है......."अक्षरों से बाते" एक सचित्र उदहारण है.
दीपावली की शुभ कामनाए.
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
बहुत अच्छी लगी रचना मा शारदे की क्रपा आपकी लेखनी पर बनी रहे। हिन्द युग्म परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
I just released http://shraddhanjali.in/. Here are 14 hindi Kavita at present all written by me. Have a look.
नमन
मुझे कविता बहुत पसंद आई....कुछ सज्जनों ने कुछ तकनीकी बारीकियाँ बतायीं....उससे आपको भविष्य में लाभ पहुँचेगा
मेरा क्या ?
एक दिल ही है जों
बहल जाएगा
तुम्हारी इज्ज़त में इजाफा हो जायेगा
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
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