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Monday, November 01, 2010

ख्वाब कब तक मेरे ज़वाँ रहते


प्रतियोगिता की बारहवीं कविता के रचनाकार डॉ अनिल चड्डा यूनिप्रतियोगिता के नियमित प्रतिभागियों मे से एक हैं। इनकी कविताएं हिंद-युग्म पर पहले भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी पिछली कविता फ़रवरी माह की प्रतियोगिता मे छठे स्थान पर रही थी।

ग़ज़ल: ख्वाब कब तक मेरे ज़वाँ रहते

ख्वाब कब तक मेरे   ज़वाँ  रहते,
रस्ते हमेशा तो नहीं  आसाँ  रहते।

मरने पर  तो  ज़मीं  नसीब नहीं
जीते-जी कहो फिर कहाँ रहते।

शौक फर्मा रहे वो आग से खेलने का,
आबाद कब तक ये  आशियाँ रहते।

 अपना बना कर  ग़र न लूटते हमें,
जाने कब तक  मेरे राजदाँ  रहते।

काबू में रहती मन की बेईमानी अगर,
गर्दिशों में भी  हम  शादमाँ  रहते ।

सीखा न था मर-मर के जीना कभी,
आँधियों   के हम   दरमियाँ रहते ।

लाख सामाँ करो ’अनिल’ की बर्बादी का,
हम   तो  खुश रहते,   जहाँ  रहते ।


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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

भारतीय नागरिक - Indian Citizen का कहना है कि -

शानदार

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“अपना बना कर ग़र न लूटते हमें,
जाने कब तक मेरे राजदाँ रहते।“ बेमिसाल शे’र है जनाब आपका! बहुत अच्छे अश’आर लिखे हैं आपने...बधाई. अश्विनी रॉय

manu का कहना है कि -

अच्छा लिखा है...

मगर ग़ज़ल कहीं से भी नहीं है.....

दुनिया भर के खटके हैं...

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

khayaal achhe hain craft me bahut kami hai ....manu ji se sehmat

बाल भवन जबलपुर का कहना है कि -

अलग अंदाज़ है
बधाई
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पंकज जी को सुरीली शुभ कामनाएं : अर्चना जी के सहयोग से
पा.ना. सुब्रमणियन के मल्हार पर प्रकृति प्रेम की झलक
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डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

मनुजी एवँ आतिशजी,

यदि आप कमियों के बारे में मार्गदर्शन भी कर देते तो मैं उन्हे सुधारने की कोशिश करता ।

सदा का कहना है कि -

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

kavi kulwant का कहना है कि -

nirala andaaz...

M VERMA का कहना है कि -

रस्ते हमेशा तो नहीं आसाँ रहते।

आसाँ रास्ते की तलाश क्यूँ है? सुन्दर लिखा है

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