डॉ॰ अनिल चड्डा न हारने वाले लोगों में से हैं। हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता में लगभग हर बार ही हिस्सा लेते हैं, और परिणामों से विचलित भी नहीं होते। फरवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में भी इन्होंने भाग लिया और छठवाँ स्थान बनाया।
पुरस्कृत कविता: मैने अकेलेपन से दोस्ती कर ली
अकेलापन
द्वार पर बिना दस्तक दिये ही
मेरे घर में घुस आया
और जबरन मेरे साथ
बिस्तर पर लेट गया
मैंने लाख कोशिश की
उसे धक्के दे कर
घर से निकालूँ
पर वो
विचित्र प्राणी की तरह
मुझसे चिपका ही रहा
मैं बालकनी में जा
कुर्सी पर बैठ
लोगों की आवाजाही देखने लगा
शायद अकेलापन
मुझमें से निकल
खुद भी हवाखोरी में
मशगूल हो जाये
पर
लोगों की अफरा-तफरी
देखते ही बनती थी
किसी को बात करने की तो क्या
रुकने की भी फुर्सत नहीं थी
लोग अकेले ही
दौड़े ही चले जा रहे थे
अनजानी मंजिल की ओर
अपने-अपने में ही मस्त
मुझे लगा
इनको तो पहले से ही
अकेलेपन ने जकड़ रखा था
फिर मेरा अकेलापन
कैसे दूर करेंगे
मैं अकेलेपन के साथ ही
कमरे में लौट आया
पर अकेलापन घर के
हर कोने तक
मेरे साथ चला आता था
कौन बाँटता मेरा अकेलापन
बीवी किटी पार्टी में व्यस्त थी
बेटा-बहू काम पर गये थे
और बच्चे स्कूल
वापिस आ कर भी
उन्हें मेरे लिये फुर्सत कहाँ
वो व्यस्त थे
अपने ही कामों में
खेलने-खिलाने में
सीरियल के मोह में
और मैं
अकेला ही भटकता रहूँगा
अपने ही घर में
मैंने चाहा
पड़ोसी की मदद लूँ
पर वो भी तो
इसकी छाया से ग्रसित
इसी लड़ाई में जूझ रहा था
फिर मेरी क्या सहायता करता
सो मैंने
अकेलेपन से ही
दोस्ती कर ली
मेरे अकेलेपन ने
मुझे समझा दिया था
कि आजकल के दौर में
इससे जूझना व्यर्थ था।
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छा लिखने का प्रयास,,
अच्छी रचना बहुत-बहुत बधाई!
एक अकविता जिसे किसी महा मुर्ख सम्पादक ने कविता समझा और छापा ...................................................................................
अकेलेपन से दोस्ती....कितनी सशक्त विवशता
आज की आबोहवा ने अकेलेपन को ही जीवन साथी बना दिया है...नए सामाजिक दंश को अभिव्यक्त करती इस कविता के लिए बधाई.
..इस कविता का मुख्य पात्र भी बेचैन आत्मा है.
सोचने कि जरूरत ही नहीं थी..
आपको पहले ही दोस्ती कर लेनी थी..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)