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Thursday, March 18, 2010

तसले में उम्मीद पकाओ


प्रतियोगिता की आगे की कविताओं की तरफ़ बढ़ते हैं। आलोक उपाध्याय 'नज़र' हिन्द-युग्म के ऐसे कवियों में से हैं जो छंद में अपनी बात रखते हैं और निर्णायकों का ध्यान खींचते हैं। फरवरी २०१० की यूनिकवि प्रतियोगिता में इनकी कविता ने चौथा स्थान बनाया।

पुरस्कृत कविता: माँ की आँखें गीली-गीली

बच्चों के इशारे पेट तरफ़
मजदूर चले फिर सेठ तरफ़

तसले में उम्मीद पकाओ
मत देखो सूखे खेत तरफ़

प्यार की राहें और भी थीं
क्यूँ आये तुम रेत तरफ़

माँ की आँखें गीलीं-गीलीं
चले जो हम परदेस तरफ़

सारी दुनिया दुश्मन अपनी
हम-तुम दोनों एक तरफ़

मयख़ाने में जश्‍न मनेगा
उठा तू अँगुली शेख़ तरफ़

चाँद की सूरत बिकने वाली
हम भी देखें जेब तरफ़

नंगेपन को मत ले आना
आना जब इस देस तरफ़


पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

रवीन्द्र शर्मा का कहना है कि -

छोटी बहर में एक अर्थपूर्ण सुन्दर रचना ,
कथ्य और शिल्प दोनों सुन्दर .बधाई ...

rachana का कहना है कि -

bahut sunder likha hai
hum bhi dekhen jeb tarf

badhai
rachana

amita का कहना है कि -

bahut sunder rachna hai badhai

Unknown का कहना है कि -

बधाई रचना के लिए बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

आलोक उपाध्याय का कहना है कि -

आप सभी लोगो का धन्यवाद् .......

Akhilesh का कहना है कि -

ik baar phir chote se bahar mein badi gajal.

aalok aur ravindra ji ki gajalo ka intzaar rahta hai,.
\manu ji ne to jaise likhna hi band kar diya..

aalko bhai, gajal likhne ke liye jindagi ko jyada jina jaroori hai.. sayad aap aisa hi karte hai.

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