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Sunday, October 31, 2010

विद्रोही आँच


प्रतियोगिता की सातवीं कविता ज्योत्स्ना पांडेय की है। ’चाँदनी’ उपनाम से कविता लिखने वाली ज्योत्स्ना का जन्म जनवरी 1967 मे सीतापुर (उ.प्र.) मे हुआ। लखनऊ की रहने वाली ज्योत्स्ना ने हिंदी मे परास्नातक किया है। कविता का शौक मुख्यतया स्वांत-सुखाय रहा। वर्तमान मे गांधीनगर (गुजरात) मे निवास कर रही ज्योत्स्ना की हिंद-युग्म पर यह प्रथम कविता है।
प्रस्तुत कविता बढ़ते हुए सामाजिक तापमान की कारक विसंगतियों की तलाश हमारे आसपास करने की कोशिश करती है।

पुरस्कृत कविता: विद्रोही आँच

विषमताओं की विवशता,
विभेद से उपजी वैमनस्यता,
कारक हैं
विसंगतियों से विद्रोह का..

विद्रोही आँच से बढता
सामाजिक तापमान,
अंतस को भर देता है,
उमस और घुटन से...

कब, क्या, क्यों और कैसे
जैसे कई प्रश्नों का समाधान,
कागज़-दर-कागज़ होते हुए,
बन्द हो जाता है,
निरुत्तरित फाइलों में...

यदि कभी-कभार
सरकारी योजनाओं के छींटे,
तपते अंतस पर पड़ भी जाएँ
तो, भाप बन कर उड़ जाते हैं,
ऊँची-ऊँची कुर्सियों के हत्थे तक..

ऐसे में,
बढ़ी हुई उमस,
और अधकचरी, अपाच्य योजनाओं
के कारण,
उबकाइयां आती हैं...

समय रहते उपचार न हुआ ,
तो, उल्टियां भी आ सकती हैं,
फदकते हुए आक्रोश की...
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar का कहना है कि -

ज्योत्सना जी की यह कविता सम-सामयिक ज्वलंत मुद्दे से नज़रें मिला रही है। इसमें न केवल वर्तमान की दशा का बे-वाक चित्रण है, बल्कि भाविष्य का भी भयावह दृश्य उजागर हुआ है!

ऐसे में,
बढ़ी हुई उमस,
और अधकचरी, अपाच्य योजनाओं
के कारण,
उबकाइयां आती हैं...

समय रहते उपचार न हुआ ,
तो, उल्टियां भी आ सकती हैं,
फदकते हुए आक्रोश की...

ज्योत्सना जी की यह बात भी सही है कि-
यदि कभी-कभार
सरकारी योजनाओं के छींटे,
तपते अंतस पर पड़ भी जाएँ
तो, भाप बन कर उड़ जाते हैं...

हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई!

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“ऐसे में,बढ़ी हुई उमस,
और अधकचरी, अपाच्य योजनाओं
के कारण,उबकाइयां आती हैं...
समय रहते उपचार न हुआ ,
तो, उल्टियां भी आ सकती हैं,
फदकते हुए आक्रोश की...” आपकी कविता में विद्रोह तो है परन्तु सारा सिलसिला अंतहीन प्रतीत होता है. उबकाई और उल्टी आना स्वाभाविक है. यह सब इंगित करता है कि कवि विद्रोह ही कर सकता है, व्यवस्था में परिवर्तन नहीं ला सकता. विद्रोही शब्दों की कारीगरी बहुत अच्छी है जिसके लिए आपको बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय

Kunwar Kusumesh का कहना है कि -

शोभा जी,
ज्योत्सना जी की बेहतरीन और पुरस्कृत कविता अपने ब्लॉग पर लगा कर आपने हमें पढ़ने का तो अवसर दिया ही, साथ ही साथ हमें ये भी जानने का अवसर दिया कि आप में अच्छे लेखन कि समझ है और आप उसकी क़द्र करती हैं और यही आपके व्यक्तित्व की खूबी है.
हमें अच्छा लगा.

कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com

निर्मला कपिला का कहना है कि -

सटीक ,समसामयिक विशःाय पर रचना के लिये ज्योत्स्ना पांडेय जी को बधाई।

आकर्षण गिरि का कहना है कि -

कागज़ दर कागज़ गुम होती फ़ाइलें
समस्या भी यही है समाधान भी . सब्कुछ एक पंक्ति में कह्ने के लिये बधाई
aakarshangiri.blogspot.com

रंजना का कहना है कि -

बहुत हुआ...अब तो उल्टियाँ(विद्रोह) आ ही जानी चाहिए..

सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति...

अपर्णा का कहना है कि -

ज्योत्स्ना सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति ! बधाई !
इसी तरह लिखती रहें ...

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

विद्रोही आँच से बढता
सामाजिक तापमान,
अंतस को भर देता है,
उमस और घुटन से...
samsamyik ek utkrisht rachna udwelit kerti hui

maadhav का कहना है कि -

अब तक की गई प्राय:सभी टिप्पणियों से सहमत होते हुए मैं कविता में प्रयुक्त"वैमनस्यता" शब्द की असाधुता पर ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा:यहाँ "वैमनस्य"का प्रयोग व्याकरण के अनुकूल होता!
-आशुतोष माधव

RITESH का कहना है कि -

कविता अच्छी लगी..........

डॉ. जय प्रकाश गुप्त का कहना है कि -

ज्योत्सना जी निश्चित ही एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, विचारक व आलोचक भी हैं । मेरे समक्ष आईं उनकी सभी रचनाओं में ऊर्जस्विता और शब्दसौन्दर्य का विलक्षण संसर्ग सदैव अभिनंदनीय रहा है । उपरोक्त रचना के प्रति भी ज्योत्सना जी को साधुवाद ।।

डॉ. जय प्रकाश गुप्त का कहना है कि -

ज्योत्सना जी निश्चित ही एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, विचारक व आलोचक भी हैं । मेरे समक्ष आईं उनकी सभी रचनाओं में ऊर्जस्विता और शब्दसौन्दर्य का विलक्षण संसर्ग सदैव अभिनंदनीय रहा है । उपरोक्त रचना के प्रति भी ज्योत्सना जी को साधुवाद ।।

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