tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post2793921625369635817..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: विद्रोही आँचशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-28911123425158307052016-11-02T10:57:02.079+05:302016-11-02T10:57:02.079+05:30ज्योत्सना जी निश्चित ही एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, व...ज्योत्सना जी निश्चित ही एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, विचारक व आलोचक भी हैं । मेरे समक्ष आईं उनकी सभी रचनाओं में ऊर्जस्विता और शब्दसौन्दर्य का विलक्षण संसर्ग सदैव अभिनंदनीय रहा है । उपरोक्त रचना के प्रति भी ज्योत्सना जी को साधुवाद ।।डॉ. जय प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/06922456197053613425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61284567445691989322016-11-02T10:56:52.741+05:302016-11-02T10:56:52.741+05:30ज्योत्सना जी निश्चित ही एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, व...ज्योत्सना जी निश्चित ही एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, विचारक व आलोचक भी हैं । मेरे समक्ष आईं उनकी सभी रचनाओं में ऊर्जस्विता और शब्दसौन्दर्य का विलक्षण संसर्ग सदैव अभिनंदनीय रहा है । उपरोक्त रचना के प्रति भी ज्योत्सना जी को साधुवाद ।।डॉ. जय प्रकाश गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/06922456197053613425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77749789752016966842011-05-16T04:52:44.653+05:302011-05-16T04:52:44.653+05:30कविता अच्छी लगी..........कविता अच्छी लगी..........RITESHhttps://www.blogger.com/profile/12638830087594080684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-32862114975852270742010-11-05T12:54:20.357+05:302010-11-05T12:54:20.357+05:30अब तक की गई प्राय:सभी टिप्पणियों से सहमत होते हुए ...अब तक की गई प्राय:सभी टिप्पणियों से सहमत होते हुए मैं कविता में प्रयुक्त"वैमनस्यता" शब्द की असाधुता पर ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा:यहाँ "वैमनस्य"का प्रयोग व्याकरण के अनुकूल होता!<br />-आशुतोष माधवmaadhavhttps://www.blogger.com/profile/09754609408471908497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-32259797682076411732010-11-03T06:33:54.868+05:302010-11-03T06:33:54.868+05:30विद्रोही आँच से बढता
सामाजिक तापमान,
अंतस को भर दे...विद्रोही आँच से बढता<br />सामाजिक तापमान,<br />अंतस को भर देता है,<br />उमस और घुटन से...<br />samsamyik ek utkrisht rachna udwelit kerti huiरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-51140264166685718982010-11-02T10:09:02.608+05:302010-11-02T10:09:02.608+05:30ज्योत्स्ना सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति ! बधाई !
इस...ज्योत्स्ना सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति ! बधाई !<br />इसी तरह लिखती रहें ...अपर्णाhttps://www.blogger.com/profile/13934128996394669998noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-306348695183015502010-11-01T19:36:25.705+05:302010-11-01T19:36:25.705+05:30बहुत हुआ...अब तो उल्टियाँ(विद्रोह) आ ही जानी चाहिए...बहुत हुआ...अब तो उल्टियाँ(विद्रोह) आ ही जानी चाहिए..<br /><br />सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-64719493808145790262010-11-01T19:23:11.702+05:302010-11-01T19:23:11.702+05:30कागज़ दर कागज़ गुम होती फ़ाइलें
समस्या भी यही है समाध...कागज़ दर कागज़ गुम होती फ़ाइलें<br />समस्या भी यही है समाधान भी . सब्कुछ एक पंक्ति में कह्ने के लिये बधाई <br />aakarshangiri.blogspot.comआकर्षण गिरिhttps://www.blogger.com/profile/17903357121891483288noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-91941870679825655262010-11-01T10:04:17.013+05:302010-11-01T10:04:17.013+05:30सटीक ,समसामयिक विशःाय पर रचना के लिये ज्योत्स्ना प...सटीक ,समसामयिक विशःाय पर रचना के लिये ज्योत्स्ना पांडेय जी को बधाई।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48809921643265410942010-11-01T07:48:26.456+05:302010-11-01T07:48:26.456+05:30शोभा जी,
ज्योत्सना जी की बेहतरीन और पुरस्कृत कविता...शोभा जी,<br />ज्योत्सना जी की बेहतरीन और पुरस्कृत कविता अपने ब्लॉग पर लगा कर आपने हमें पढ़ने का तो अवसर दिया ही, साथ ही साथ हमें ये भी जानने का अवसर दिया कि आप में अच्छे लेखन कि समझ है और आप उसकी क़द्र करती हैं और यही आपके व्यक्तित्व की खूबी है.<br />हमें अच्छा लगा.<br /><br />कुँवर कुसुमेश <br />ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.comKunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-60214725120688767972010-10-31T23:00:27.955+05:302010-10-31T23:00:27.955+05:30“ऐसे में,बढ़ी हुई उमस,
और अधकचरी, अपाच्य योजनाओं
क...“ऐसे में,बढ़ी हुई उमस,<br />और अधकचरी, अपाच्य योजनाओं<br />के कारण,उबकाइयां आती हैं...<br />समय रहते उपचार न हुआ ,<br />तो, उल्टियां भी आ सकती हैं,<br />फदकते हुए आक्रोश की...” आपकी कविता में विद्रोह तो है परन्तु सारा सिलसिला अंतहीन प्रतीत होता है. उबकाई और उल्टी आना स्वाभाविक है. यह सब इंगित करता है कि कवि विद्रोह ही कर सकता है, व्यवस्था में परिवर्तन नहीं ला सकता. विद्रोही शब्दों की कारीगरी बहुत अच्छी है जिसके लिए आपको बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉयअश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Royhttps://www.blogger.com/profile/01550476515930953270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-89486405793181085802010-10-31T20:41:37.770+05:302010-10-31T20:41:37.770+05:30ज्योत्सना जी की यह कविता सम-सामयिक ज्वलंत मुद्दे स...ज्योत्सना जी की यह कविता सम-सामयिक ज्वलंत मुद्दे से नज़रें मिला रही है। इसमें न केवल वर्तमान की दशा का बे-वाक चित्रण है, बल्कि भाविष्य का भी भयावह दृश्य उजागर हुआ है!<br /><br />ऐसे में,<br />बढ़ी हुई उमस,<br />और अधकचरी, अपाच्य योजनाओं<br />के कारण,<br />उबकाइयां आती हैं...<br /><br />समय रहते उपचार न हुआ ,<br />तो, उल्टियां भी आ सकती हैं,<br />फदकते हुए आक्रोश की...<br /><br /> ज्योत्सना जी की यह बात भी सही है कि-<br />यदि कभी-कभार<br />सरकारी योजनाओं के छींटे,<br />तपते अंतस पर पड़ भी जाएँ<br />तो, भाप बन कर उड़ जाते हैं...<br /><br />हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.com