फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, October 15, 2010

टप्पल मे कौशल किशोर की कविता


कौशल किशोर की एक कविता हमने पिछले माह प्रकाशित की थी। इस माह इनकी यह कविता नवें स्थान पर रही है। प्रस्तुत कविता टप्पल के हालिया जमीन के अनुदान विवाद पर किसानों के आक्रोश को अपना विषय बनाती है।

पुरस्कृत कविता: टप्पल मे

टप्पल में
धरने पर जो बैठे हैं
वे सरकार के विरोध में खड़े है।
सरकार चाहती है
धरना खत्म हो
किसान जायें अपने घर
शान्ति आये
ले और देकर
मामला रफा और दफा हो जाय।
पर किसान हैं
बैठ गये तो बैठ गये
पलहत्थी मार जमीन पर
टेक दी है लाठी
रख दिया है गमछा
सज गया है चौपाल
नेता हो या मंत्री
अफसर हो या संतरी
जिसको आना है यहीं आये
हम नहीं हटेंगे।
कहते हैं -
साठ साल से हम हटे हैं
हटते ही रहे हैं
हटना है तो सरकार हटे
हम तो डटे हैं
अब यहीं डटेंगे
आखिर क्यों दे अपनी ऊपजाऊ जमीन
कंपनियों को
कि वे आयें
और बनायें चमचमाती सड़कें
मॉल और मल्टी पलेक्स
सजे उनके बाजार
दौड़े उनकी गाड़ियाँ
भरे उनकी तिजोरियाँ
वे खेलें खेल में खेल
उनके इस खेल के लिए
क्यों छोड़े हम खेत
और लगा दें अपने भविष्य पर ताला
मुआवजा तो तैयार भोजन है
खाया और हजम
फिर तो सब खतम
जीवन और सपने सब
इसीलिए
अब लाठी चले या गोली
पानी की तेज धार हो
या आंसू गैस
हम नहीं हटने वाले
ऐसी ही जिद्द है इनकी
जिस पर अड़े हैं
टप्पल में
धरने पर जो बैठे हैं
वे सरकार के विरोध में खड़े हैं।
__________________________________________________________________
पुरस्कार -  विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता |


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

5 कविताप्रेमियों का कहना है :

ASHOK BAJAJ का कहना है कि -

बेहतरीन पोस्ट .आभार !
महाष्टमी की बधाई .

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“अब लाठी चले या गोली
पानी की तेज धार हो
या आंसू गैस
हम नहीं हटने वाले
ऐसी ही जिद्द है इनकी
जिस पर अड़े हैं
टप्पल में
धरने पर जो बैठे हैं
वे सरकार के विरोध में खड़े हैं।“ कौशल जी आपने किसानों के धरने को कामयाब बना दिया. सरल एवं सुन्दर अंदाज़ में लिखी यह कविता अपने मकसद में कितनी सफल रही है...इसका निर्णय तो शायद सरकार ही कर पाए मगर इस सुन्दर कृति के लिए आप अवश्य ही साधुवाद के पात्र हैं. अश्विनी कुमार रॉय

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

सुन्दर कविता है, मगर किसान को फायदा किसी में नहीं है ना जमीन रखने में ना ही जमीन देने में।
जमीन दे दी तो पैसा कितने दिन चलेगा, और जमीन अपने पास रखी भी तो कौन सा किसान हल चलाकर करोड़पति बन जाता है, अंततः खेती का जो बुरा हाल है हमारे देश में उस हिसाब से जमीन तो दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से दे पाती है। फायदा केवल नेताओं को होता है जमीन दे दी तब तो सीधा फायदा है ही। अगर नहीं दी तो इस बात की दुहाई देकर वोट तो नेता ले ही जाएँगें।

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

M VERMA का कहना है कि -

अब लाठी चले या गोली
पानी की तेज धार हो
या आंसू गैस
हम नहीं हटने वाले
यह है जीजिविषा .. यह है हक की लड़ाई .. शायद यही तो जीवन है

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)