प्रतियोगिता की 6वीं कविता एक ग़ज़ल है। यह ग़ज़ एक वरिष्ठ शायर खन्ना मुजफ्फरपुरी की है। इनके बारे में बहुत अधिक जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है।
पुरस्कृत कविताः ग़ज़ल
शहर में दिन न घर में रात मिली
तन्हा-तन्हा मुझे हयात मिली
घर में सूरज भी चाँद भी हैं मगर
तीरगी से कहाँ निजात मिली
बीज बोये थे अम्न के लेकिन
खेत में फ़स्ले-हादसात मिली
लोग कहते थे मेरे जैसा उसे
कोई लहजा मिला न बात मिली
अपना-अपना नसीब है 'खन्ना'
किसको कितनी ये कायनात मिली
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
मिले आसाँ जिंदगी तो ये मुश्किल,
'मजाल' लगता खैरात मिली!
बीज बोये थे अम्न के लेकिन
खेत में फ़स्ले-हादसात मिली
बीज के साथ साथ कोई हादसात के बीज भी बोता है
जब अमन का तलबगार थक हार को रात में सोता है
poori kee poori ghazal kabile tareef hai .....
keya khub likha h..............badhiyana.......
बीज बोये थे अम्न के लेकिन
खेत में फ़स्ले-हादसात मिली
लोग कहते थे मेरे जैसा उसे
कोई लहजा मिला न बात मिली
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
हर शेर उम्दा है. प्रभावशाली गज़ल.
अपना-अपना नसीब है 'खन्ना'
किसको कितनी ये कायनात मिली
जियो खन्ना साब
क्या बात कह गए
------आशीष
bahut umda...:) shukriya
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