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Sunday, August 22, 2010

तीरगी से कहाँ निजात मिली


प्रतियोगिता की 6वीं कविता एक ग़ज़ल है। यह ग़ज़ एक वरिष्ठ शायर खन्ना मुजफ्फरपुरी की है। इनके बारे में बहुत अधिक जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है।

पुरस्कृत कविताः ग़ज़ल

शहर में दिन न घर में रात मिली
तन्हा-तन्हा मुझे हयात मिली

घर में सूरज भी चाँद भी हैं मगर
तीरगी से कहाँ निजात मिली

बीज बोये थे अम्न के लेकिन
खेत में फ़स्ले-हादसात मिली

लोग कहते थे मेरे जैसा उसे
कोई लहजा मिला न बात मिली

अपना-अपना नसीब है 'खन्ना'
किसको कितनी ये कायनात मिली

पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Majaal का कहना है कि -

मिले आसाँ जिंदगी तो ये मुश्किल,
'मजाल' लगता खैरात मिली!

M VERMA का कहना है कि -

बीज बोये थे अम्न के लेकिन
खेत में फ़स्ले-हादसात मिली
बीज के साथ साथ कोई हादसात के बीज भी बोता है
जब अमन का तलबगार थक हार को रात में सोता है

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

poori kee poori ghazal kabile tareef hai .....

manoj verma"manu" का कहना है कि -

keya khub likha h..............badhiyana.......

सदा का कहना है कि -

बीज बोये थे अम्न के लेकिन
खेत में फ़स्ले-हादसात मिली

लोग कहते थे मेरे जैसा उसे
कोई लहजा मिला न बात मिली

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

हर शेर उम्दा है. प्रभावशाली गज़ल.

Ashish का कहना है कि -

अपना-अपना नसीब है 'खन्ना'
किसको कितनी ये कायनात मिली

जियो खन्ना साब
क्या बात कह गए

------आशीष

ranjana का कहना है कि -

bahut umda...:) shukriya

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